इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण

जैव प्रक्रम: पोषण कक्षा 10 बिहार बोर्ड भारती भवन उत्तर
जैव प्रक्रम: पोषण कक्षा 10 बिहार बोर्ड भारती भवन उत्तर

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. जैव प्रक्रम किसे कहते है?

उत्तर: वे सारी क्रियाएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुरक्षण होता है, जैव प्रक्रम कहलाती है।

2. बहुकोशिकीय जीवों में आक्सीजन की आवश्यकता विसरण द्वारा क्यों नहीं पूरी हो पाती है?

उत्तर: बहुकोशिकीय जीवों का शरीर के अंग जटिल होते है तथा सारी कोशिकाएँ सीधे पर्यावरण के संपर्क में रहती है इस कारण आक्सीजन की आपूर्ति विसरण द्वारा संभव नहीं है।

3. जीवों में पोषण की प्रमुख दो विधियों कौन कौन सी है?
उत्तर:
 (i) स्वपोषण, (ii) पर-पोषण 

4. हरे पौधों में किस प्रकार का पोषण पाया जाती है?
उत्तर:
 हरे पौधों में स्वपोषण प्रकार का पोषण पाया जाता है।

5. जंतुओं में पोषण की कौन सी विधि पाई जाती है?

उत्तर: जंतुओं में पर-पोषण की विधि पाई जाती है।

6. तीन प्रकार की परपोषण विधियों के नाम लिखें।

उत्तर: (i) मृतजीवी पोषण (ii) परजीवी पोषण (iii) प्रानिसम पोषण 

7. सम्पूर्ण प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखे।

उत्तर: 

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

8. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में उपोत्पाद के रूप में क्या बनता है?

उत्तर: प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में उपोत्पाद के रूप में आक्सीजन बनता है।

9. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया हरित लावक या क्लोरोप्लास्ट में ही क्यों होती है?

उत्तर: क्योंकि क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल वर्णक पाए जाते है।

10. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए किन किन पदार्थों की आवश्यकता होती है?

उत्तर: (i) क्लोरोफिल (ii) कार्बन डाई-आक्साइड (iii) जल (iv) सूर्य का प्रकाश 

11. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए पौधों CO2 कहाँ से प्राप्त करते है?

उत्तर: प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में पौधों को CO2 वायुमंडल से पत्तियों इ भीतर कोशिकाओं के विसरण द्वारा पहुचाते है।

12. कवक एवं जीवाणुओं में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया क्यों नहीं हो पाती है?

उत्तर: क्योंकि ये सूक्ष्म जीव है, जो घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में भोजन अवशोषित करते है।

13. पोषण के दृष्टिकोण से अमीबा तथा पैरामिशियम किस प्रकार के जंतु है?

उत्तर: पोषण के दृष्टिकोण से अमीबा तथा पैरामिशियम परजीवी पोषण जीव है।

14. मनुष्य का आहारनाल कौन-कौन से मुख्य भागों में बंटा होता है?

उत्तर: मनुष्य का आहारनाल अमाशय, पक्वाशय, पित्ताशय, छोटी आंत तथा बड़ी आंत आदि में बंटा होता है।

15. ग्रसनी में स्थित दो छिद्रों के नाम लिखे।

उत्तर: (i) निगलद्वार, (ii) कंठद्वार 

16. मनुष्य में पाचन आहारनाल के किस भाग से शुरू होता है?

उत्तर: मुँह से होता है।

17. मनुष्य के आहारनाल के किस भाग में पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है?

उत्तर: मनुष्य के आहारनाल के छोटी आंत में पचे भोजन का अवशोषण होता है।

18. क्लोरोफिल वर्णक कहाँ पाया जाता है?

उत्तर: क्लोरोप्लाष्ट में 

19. प्रकाश संश्लेषण-प्रक्रम द्वारा पौधे क्या निर्माण करते है?

उत्तर: भोजन 

20. मृतजीवी को क्या कहते है?

उत्तर: अपघटक 

21. जिस जीव के शरीर से परजीवी अपना भोजन प्राप्त करते है, वे क्या कहलाते है?

उत्तर: पोशी 

22. गोबरछत्ता में किस प्रकार का पोषण होता है?

उत्तर: मृतजीवी 

23. पत्तियों का कौन सा अंग CO2 युक्त वायु का प्रवेश द्वार है?

उत्तर: क्लोरोफिल अथवा हरितलवक

24. पोषण की दृष्टि से जंतुओं को क्या कहा जाता है?

उत्तर: स्वपोषी तथा परपोषी 

25. अमीबा में भोजन का पाचन कहाँ होता है?

उत्तर: रासधानी में 

26. मनुष्य में पाचन के लिए विशेष अंग को क्या कहते है?

उत्तर: आहारनाल 

27. मनुष्य के जीभ के ऊपरी सतह पर पायी जानेवाली संरचना को क्या कहते है?

उत्तर: स्वाद कलियाँ 

28. मुखगुहा से भोजन कहाँ पहुँचता है?

उत्तर: ग्रास नली में 

29. ग्रासनली की दीवार में तरंग की तरह होनेवाली सिकुड़न एवं फैलाव को क्या कहते है?

उत्तर: क्रमाकुंचन 

30. भोजन में मौजूद प्रोटीन को पेप्टोंन में कौन-सा एंजाइम परिवर्तित करता है?

उत्तर: पेप्सिन 

31. आहारनाल के सबसे लंबे भाग को क्या कहते है?

उत्तर: बड़ी आंत 

32. शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि क्या है?

उत्तर: यकृत ग्रंथि है

33. पाचन की क्रिया कहाँ पूर्ण होती है?

उत्तर: रेक्टम में 

34. छोटी आंत एवं बड़ी आंत के जोड़ पर अवस्थित नली को क्या कहते है?

उत्तर: सीकम 

35. अपचा भोजन अस्थायी तौर पर कहाँ संचित रहता है?

उत्तर: रेक्टम में 

लघु उत्तरित प्रश्न

1. जीवों के लिए पोषण क्यों अनिवार्य है?

उत्तर: जीवों के संचालन, वृद्धि, टूट-फूट को रोकने आदि कार्यों के लिए जीवों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा प्राप्त करने के लिए खाद्य पदार्थों की जरूरत होती है जो पोषण की क्रिया से जीव प्राप्त करते हैं।

2. पोषण की परिभाषा लिखें।

उत्तर: वह विधि जिससे जीव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।

3. स्वपोषण की किन-किन परिस्थितियों का होना आवश्यक है? इसके उपोत्पाद क्या हैं?उत्तर: स्वपोषी के लिए प्रकाश संश्लेषण आवश्यक है। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल नामक वर्णक से CO2 और जल के द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है।

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ हैं- सूर्य का प्रकाश, क्लोरोफिल, कार्बन डाईऑक्साइड और जल। इसके उपोत्पाद आणविक ऑक्सीजन हैं।

4. परपोषण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: जब कोई जीव अपने पोषण के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहता है, तब यह परपोषण कहलाता है। यह तीन प्रकार का होता है:

(i) परजीवी पोषण

(ii) मृतजीवी पोषण

(iii) प्राणीसम पोषण

5. मृतजीवी पोषण किसे कहते हैं?

उत्तर: जब कोई जीव अपना भोजन मृत तथा सड़ी-गली वस्तुओं से प्राप्त करता है, तो यह मृतजीवी पोषण कहलाता है। कवकों में इसी प्रकार का पोषण पाया जाता है।

6. परजीवी पोषण किसे कहते हैं?

उत्तर: जब कोई जीव किसी दूसरे जीव से अपना भोजन प्राप्त करता है, तो पोषण की इस विधि को परजीवी पोषण कहते हैं। ऐसे जीवों को परजीवी कहते हैं। मच्छर (बाह्य परजीवी) एवं पिताकृमि परजीवियों के उदाहरण हैं।

7. प्राणीसम पोशी जीव किसे कहते हैं?

उत्तर: वैसे प्राणी जिनमें प्राणीसम पोषण विधि से पोषण होता है, प्राणीसम पोशी कहलाते हैं। इसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या द्रव के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार का लक्षण अमीबा, मेढ़क, मनुष्य आदि में पाया जाता है।

8. प्रकाशसंश्लेषण से आप क्या समझते हैं?उत्तर: जिस प्रक्रिया के द्वारा हरे पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं, उसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। अर्थात, वैसी प्रक्रिया जिसमें हरे पौधे सूर्य की उपस्थिति में वायुमंडल से CO2 गैस तथा जमीन से जल एवं खनिज लवण खींचकर भोजन बनाते हैं, प्रकाश संश्लेषण कहलाती है। हरे पौधे में हरित लवक होते हैं जिनके कारण पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं। इसमें सूर्य की ऊर्जा की सहायता से प्रकाश संश्लेषण में सरल अकार्बनिक अनु CO2 और जल का पादप कोशिकाओं में स्थिरीकरण कार्बनिक अणु ग्लूकोज में होता है।
प्रकाश संश्लेषण का रासायनिक समीकरण:

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

9. पत्तियों को प्रकाश संश्लेषण अंग क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया शुरू से अंत तक क्लोरोप्लास्ट में ही होती है। क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल वर्णक पाए जाते हैं। ये अधिकांश पौधे की पत्तियों में पाए जाते हैं। इसलिए पत्तियों को प्रकाश संश्लेषण अंग कहते हैं।

10. भोजन के पाचन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: वह प्रक्रिया जिसमें एंजाइमों की सहायता से जटिल भोज्य पदार्थों को सरल अणुओं में अपघटित किया जाता है जिससे ये अवशोषित होकर हमारी कोशिकाओं में प्रवेश कर सकें, पाचन कहलाती है।

11. मनुष्य के मुखगुहा में कितनी जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती हैं? इनके नाम लिखें।

उत्तर:

(i) पैरोटिड ग्रंथि (Parotid gland)

(ii) सबमैन्डीबुलर लार ग्रंथि (Submandibular salivary gland)

(iii) सबलिंगुअल लार ग्रंथि (Sublingual salivary gland)

12. मनुष्य में अमाशय कितने भागों में बंटा होता है, उनके नाम लिखें।

उत्तर: अमाशय मनुष्य का प्रमुख पाचन अंग है। यह चौड़ी थैली के समान रचना है जो उदर-गुहा के बायीं और से शुरू होकर अनुप्रस्थ दिशा में फैली होती है।

इसे तीन भागों में बांटा जाता है:

(i) कार्डियक – अमाशय का अग्र भाग

(ii) फुन्डिक – अमाशय का मध्य भाग

(iii) पाइलोरिक – अमाशय का पिछला भाग

13. मनुष्य में छोटी आंत की लंबाई कितनी होती है? छोटी आंत के तीन भागों के नाम लिखें।

उत्तर: छोटी आंत आहार नाल या पाचन तंत्र का सबसे लंबा भाग है। इसका आकार बेलनाकार होता है। इस भाग में पाचन की क्रिया पूर्ण हो जाती है तथा पचे हुए पदार्थ का अवशोषण होता है। इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेमी होती है।

छोटी आंत के तीन भाग होते हैं:

(i) गृहणी (Duodenum)

(ii) जेजुनम (Jejunum)

(iii) इलियम (Ileum)।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. पोषण किसे कहते हैं? जीवों में होनेवाली विभिन्न पोषण विधियों का उल्लेख करें।

उत्तर: वह विधि जिससे जीव पोषक तत्त्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।

जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता है-

(i) स्वपोषण (Autotrophic nutrition): स्वपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं, स्वपोषी या ऑटोट्रॉप्स (autotrophs) कहलाते हैं।

(ii) परपोषण (Heterotrophic nutrition): परपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं।

परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

  1. मृतजीवी पोषण (Saprophytic nutrition): इस प्रकार के पोषण में जीव मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से अपना भोजन, अपने शरीर की सतह से, घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं।
  2. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition): इस प्रकार के पोषण में जीव दूसरे प्राणी के संपर्क में, स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
  3. प्राणिसम पोषण (Holozoic nutrition): वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, प्राणिसम पोषण (holozoic nutrition) कहलाता है।

2. प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया को संक्षेप में समझाएँ।

उत्तर: जिस प्रक्रिया के द्वारा पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं उस मूलभूत प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं। सभी हरे पौधों में पर्णहरित (chlorophyll) होता है जिसमें सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने की क्षमता होती है। सूर्य की ऊर्जा की सहायता से प्रकाशसंश्लेषण में सरल अकार्बनिक अणु- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और जल (H₂O) का पादप-कोशिकाओं में स्थिरीकरण (fixation) कार्बनिक अणु ग्लूकोस (कार्बोहाइड्रेट) में होता है। पौधे इस क्रिया द्वारा सिर्फ ग्लूकोस का ही उत्पादन नहीं करते हैं, वरन वे सूर्य-प्रकाश की विकिरण ऊर्जा का भी स्थिरीकरण रासायनिक ऊर्जा में करते हैं, जो ग्लूकोस अणुओं में संचित रहती है। संपूर्ण प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया को हम निम्नलिखित रासायनिक समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं।

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन उपोत्पाद (by-product) के रूप में बनता है, जो पौधों द्वारा वायुमंडल में छोड़ा जाता है।

3. एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।

उत्तर:

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

प्रकाशसंश्लेषण में क्लोरोफिल आवश्यक है – एक क्रोटन (croton) या कोलियस (Coleus) की चित्तीदार पत्ती को तोड़ें। उसकी हरी और सफेद चित्तियों (spots) को रेखांकित करें। इस पत्ती को बीकर में रखे पानी में डालकर कुछ देर उबालें और उबालने के पश्चात उसे गर्म ऐल्कोहॉल या स्प्रिट में डाल दें। अब इस ऐल्कोहॉल वाले बीकर को वाटर बाथ (water bath) में रखकर उबालें।

थोड़ी देर में आप देखेंगे कि स्प्रिट हरे रंग का होता जा रहा है; क्योंकि पत्ती में मौजूद हरा वर्णक क्लोरोफिल पत्ती से निकलकर धीरे-धीरे ऐल्कोहॉल में घुल जाता है। जब पत्ती रंगहीन, अर्थात हलके पीले रंग की या सफेद हो जाए तो बीकर को ठंडा होने के लिए छोड़ दें। ठंडा होने के बाद पत्ती को पानी में अच्छी तरह धो डालें। इसके बाद इस पत्ती को पेट्रीडिश (Petri dish) में रखकर उसपर आयोडीन की कुछ बूँदें डालें। आप पाएँगे कि पत्ती का हरी चित्तियोंवाला भाग गाढ़ा नीला रंग का हो जाता है, परंतु पत्ती का सफेद चित्तियोंवाला भाग नीला नहीं होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि सफेद भाग पर आयोडीन का कोई असर नहीं हुआ।

ऐसा क्यों हुआ? हरी चित्तियोंवाले भाग में चूँकि क्लोरोफिल मौजूद था, इसीलिए उस हिस्से में प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया हुई, जिससे उसमें मंड का निर्माण भी हुआ, परंतु पत्ती के सफेद चित्तियोंवाले भाग में क्लोरोफिल अनुपस्थित होता है, इसीलिए उस भाग में न तो प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया हुई और न ही मंड या स्टार्च का निर्माण हुआ। इससे यह साबित होता है कि बिना क्लोरोफिल के प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया संपन्न नहीं हो सकती।

4. प्रकाशसंश्लेषण के लिए CO₂ आवश्यक है, इसे साबित करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें।

उत्तर: प्रकाशसंश्लेषण के लिए CO₂ आवश्यक है- एक लंबी पत्तीवाले पौधे को, जो गमले में लगा हो, दो दिनों तक अँधेरे में रख दें। इससे इस पौधे में प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाएगी और पत्तियों में स्टार्च नहीं बनेगा। अब एक चौड़े मुँह की बोतल में थोड़ा-सा कास्टिक पोटाश (KOH) का सांद्र घोल ले लें। बोतल के कॉर्क को बीचोबीच काटकर दो टुकड़ों में बाँट दें और टुकड़ों के बीच पत्ती को इस प्रकार दबाकर डालें कि पत्ती का आधा भाग बोतल के अंदर हो और पत्ती का आधा भाग बोतल से बाहर। उपकरण को कुछ घंटों के लिए सूर्य की रोशनी में छोड़ दें। करीबन चार घंटों के बाद पत्ती को बोतल से बाहर निकालकर तोड़ लें एवं स्टार्च की मौजूदगी की जाँच करें। इसके लिए पत्ती को ऐल्कोहॉल में थोड़ी देर तक उबाल लें। जब पत्ती रंगहीन हो जाए तब इसे पानी से धोकर आयोडीन के घोल में डुबा दें।

आप पाएँगे कि पत्ती का वह भाग जो बोतल के बाहर था, गाढ़े नीले रंग का हो जाता है तथा जो भाग अंदर था, वह हलके पीले रंग का हो जाता है। इसका कारण यह है कि आयोडीन स्टार्च को नीला कर देता है। पत्ती का वह भाग जो बोतल के अंदर था, नीला नहीं होगा; क्योंकि पोटाश का घोल कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेता है जिससे पत्ती के भीतरी भाग में स्टार्च नहीं बन पाता है। इस प्रयोग से यह साबित होता है कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है।

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

5. अमीबा का भोजन क्या है? अमीबा में पोषण का वर्णन करें।

उत्तर: अमीबा एक सरल प्राणिसमपोषी जीव है। यह मृदुजलीय, एककोशीय तथा अनिश्चित आकार का प्राणी है। इसका आकार कूटपादों (pseudopodia) के बनने और बिगड़ने के कारण बदलता रहता है। इसके शरीर में पोषण के लिए कोई विशेष रचना नहीं होती है। ये अपने कूटपादों की मदद से ही भोजन ग्रहण करता है।

अमीबा का भोजन शैवाल (algae) के छोटे-छोटे टुकड़े, बैक्टीरिया, डायटम (diatoms), अन्य छोटे एककोशिक जीव तथा मृत कार्बनिक पदार्थ के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि हैं।

अमीबा में पोषण अंतर्ग्रहण, पाचन तथा बहिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा पूर्ण होता है।

अमीबा में भोजन के अंतर्ग्रहण के लिए मुख जैसा कोई निश्चित स्थान नहीं होता है, बल्कि यह शरीर की सतह के किसी भी स्थान से हो सकता है। भोजन जब अमीबा के बिलकुल समीप होता है तब अमीबा भोजन के चारों ओर कूटपादों का निर्माण करता है। कूटपाद तेजी से बढ़ते हैं और भोजन को पूरी तरह घेर लेते हैं। धीरे-धीरे कूटपादों के सिरे तथा फिर पार्श्व आपस में जुड़ जाते हैं। इस तरह एक भोजन-रसधानी (food vacuole) का निर्माण हो जाता है जिसमें भोजन के साथ जल भी होता है।

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

भोजन का पाचन भोजन-रसधानी में ही एंजाइमों के द्वारा होता है। पचा हुआ भोजन भोजन-रसधानी से निकलकर कोशिकाद्रव्य में पहुँच जाता है, वहाँ से फिर समूचे शरीर में वितरित हो जाता है। अमीबा में अपचे भोजन को शरीर से बाहर निकालने के लिए निश्चित स्थान नहीं होता है। शरीर की सतह के किसी भाग में एक अस्थायी छिद्र का निर्माण होता है जिससे अपचा भोजन बाहर निकल जाता है।

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

6. मनुष्य के आहारनाल की रचना का वर्णन करें।
उत्तर:

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

यह एक कुंडलित (coiled) रचना है जिसकी लंबाई करीब 8 से 10 मीटर तक की होती है। यह मुखगुहा से शुरू होकर मलद्वार तक फैली होती है। आहारनाल के विभिन्न भागों की संरचना तथा उनके कार्य निम्नलिखित हैं:

मुखगुहा: मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। यह ऊपरी तथा निचले जबड़े (jaws) से घिरी होती है। मुखगुहा को बंद करने के लिए दो (ऊपरी तथा निचले) मांसल होंठ (lips) होते हैं। मुखगुहा में जीभ तथा दाँत होते हैं।

जीभ मुखगुहा के फर्श पर स्थित एक मांसल रचना है। इसका अगला सिरा स्वतंत्र तथा पिछला सिरा फर्श से जुड़ा होता है। जीभ के ऊपरी सतह पर कई छोटे-छोटे अंकुर (papillae) होते हैं जिन्हें स्वाद कलियाँ (taste buds) कहते हैं। इन्हीं स्वाद कलियों के द्वारा मनुष्य को भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खारा, खट्टा, कडुआ आदि का ज्ञान होता है। जीभ अपनी गति के द्वारा भोजन को निगलने में मदद करता है।

मुखगुहा के ऊपरी तथा निचले जबड़े पर दाँत व्यवस्थित होते हैं। प्रत्येक दाँत जबड़े के मसूढ़े (gums) से जुड़ा होता है। दाँत का वह भाग जो मसूढ़े में धँसा होता है जड़ (root) तथा वह भाग जो मसूढ़े के ऊपर निकला होता है, सिर या शिखर (crown) कहलाता है। जड़ तथा शिखर के बीच का भाग ग्रीवा या गर्दन (neck) कहलाता है।

ग्रसनी: मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी (pharynx) कहलाता है। इसमें दो छिद्र होते हैं- (i) निगुलद्वार (gullet), जो आहारनाल के अगले भाग (ग्रासनली) में खुलता है तथा (ii) कंठद्वार (glottis), जो श्वासनली (trachea) में खुलता है। कंठद्वार के आगे एक पट्टी जैसी रचना होती है, जो एपिग्लौटिस (epiglottis) कहलाता है। मनुष्य जब भोजन करता है तब यह पट्टी कंठद्वार को ढंक देती है, जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जा पाता है।

ग्रासनली: मुखगुहा से लार से सना हुआ भोजन निगलद्वार के द्वारा ग्रासनली (oesophagus) में पहुँचता है। भोजन के पहुँचते ही ग्रासनली की दीवार में तरंग की तरह संकुचन या सिकुड़न और शिथिलन या फैलाव शुरू होता है जिसे क्रमाकुंचन (peristalsis) कहते हैं। इसी प्रकार की गति के कारण भोजन धीरे-धीरे नीचे की ओर घिसकता जाता है। ग्रासनली में पाचन क्रिया नहीं होती है। ग्रासनली से भोजन आमाशय (stomach) में पहुँचता है।

आमाशय: यह एक चौड़ी थैली जैसी रचना है जो उदर-गुहा के बाईं ओर से शुरू होकर अनुप्रस्थ दिशा में फैली होती है। आमाशय का अग्रभाग कार्डिएक (cardiac part) तथा पिछला भाग पाइलोरिक भाग (pyloric part) कहलाता है। इन दोनों के बीच का भाग फुण्डिक भाग (fundic part) कहलाता है।

छोटी आँत: छोटी आँत आहारनाल का सबसे लंबा भाग है।यह बेलनाकार रचना है। आहारनाल के इस भाग में पाचन की क्रिया पूर्ण होती है। मनुष्य में इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है। भिन्न-भिन्न जंतुओं में छोटी आँत की लंबाई अलग-अलग होती है। लंबाई सामान्यतः भोजन के प्रकार पर निर्भर करता है। जैसे शाकाहारी जंतुओं में छोटी आँत की लंबाई अधिक होती है ताकि सेल्यूलोस का पाचन ठीक से हो सके। मांसाहारी भोजन का पाचन अपेक्षाकृत सरल होता है। इसीलिए, मांसाहारी जंतुओं की छोटी आँत की लंबाई कम होती है।

छोटी आँत तीन भागों – ग्रहणी (duodenum), जेजुनम (jejunum) तथा इलियम (ileum) में बँटा होता है।

यकृत: यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि (भार = करीब 1.5 kg) है जो उदर के ऊपरी दाहिने भाग में अवस्थित है। यकृत कोशिकाओं से पित्त का स्राव होता है। स्रावित पित्त का संचय पित्ताशय (gall bladder) नामक एक छोटी थैली जैसी रचना में होता है। यकृत से कई छोटी-छोटी यकृत नलिकाएँ (hepatic ducts) निकलती हैं। यकृत नलिकाएँ पित्ताशय से निकलनेवाली नलिका के साथ जुड़कर एक मूल पित्तवाहिनी (common bile duct) बनाती है। पित्त गाढ़ा एवं हरा रंग का क्षारीय द्रव है। इसमें कोई एंजाइम नहीं होता है।

बड़ी आँत: छोटी आँत आहारनाल के अगले भाग बड़ी आँत (large intestine) में खुलती है। बड़ी आँत दो भागों में बँटा होता है। ये भाग कोलन (colon) तथा मलाशय या रेक्टम (rectum) कहलाते हैं। छोटी आँत तथा बड़ी आँत के जोड़ पर एक छोटी नली होती है जो सीकम (caecum) कहलाता है। सीकम के शीर्ष पर एक अँगुली जैसी रचना होती है, जिसका सिरा बंद होता है। यह रचना ऐपेंडिक्स कहलाती है।

7. मनुष्य के आहारनाल में पाचन की क्रिया का वर्णन करें।

उत्तर: पाचन की प्रक्रिया एक जटिल और व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें भोजन को छोटे, घुलनशील और अवशोषण योग्य अणुओं में परिवर्तित किया जाता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:

  1. मुखगुहा (Buccal Cavity):
    चबाना: दांत भोजन को छोटे टुकड़ों में चबाकर मसलते हैं।
    लार का स्त्राव: लार ग्रंथियों से लार निकलती है जिसमें एंजाइम एमाइलेज (सलाइवरी एमाइलेज) होता है जो स्टार्च को माल्टोज में तोड़ता है।
    लार का कार्य: लार भोजन को नम करता है और इसे एक नरम गाढ़े मिश्रण (बोलस) में परिवर्तित करता है, जिसे निगलना आसान होता है।
  2. ग्रासनली (Esophagus):
    भोजन का परिवहन: चबाया हुआ भोजन (बोलस) ग्रासनली के माध्यम से आमाशय में पहुंचता है।पेरिस्टालिसिस: ग्रासनली की मांसपेशियों की सिकुड़न और फैलाव की तरंगों (पेरिस्टालिसिस) से भोजन आमाशय की ओर धकेला जाता है।
    कोई पाचन नहीं: ग्रासनली में कोई पाचन नहीं होता, यह केवल भोजन को आमाशय तक पहुंचाने का कार्य करती है।
  3. आमाशय (Stomach):
    भोजन का मंथन: आमाशय की मांसपेशियां भोजन को मंथन करती हैं जिससे यह एक चूर्णित और मिश्रित रूप (काइम) में परिवर्तित हो जाता है।
    जठर रस का स्त्राव: आमाशय की ग्रंथियों से जठर रस (गैस्ट्रिक जूस) स्त्रावित होता है जिसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) और पेप्सिन एंजाइम होते हैं।
    प्रोटीन का पाचन: पेप्सिन एंजाइम प्रोटीन को छोटे पेप्टाइड्स में तोड़ता है।
  4. छोटी आँत (Small Intestine):
    भोजन का पाचन: यह पाचन का मुख्य स्थान है।
    पित्त और अग्न्याशयी रस का स्त्राव: यकृत (लिवर) से पित्त रस (बाइल) और अग्न्याशय (पैंक्रियास) से अग्न्याशयी रस (पैंक्रियाटिक जूस) छोटी आँत में मिलते हैं।
    पित्त का कार्य: पित्त वसा (फैट) के बड़े बूँदों को छोटे बूँदों में तोड़ता है (इमल्सिफिकेशन) जिससे वसा का पाचन आसान हो जाता है।
    अग्न्याशयी रस का कार्य: इसमें एंजाइम्स होते हैं जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा का पाचन करते हैं।
    अवशोषण: भोजन का पाचन पूर्ण होने के बाद अवशोषण होता है। पाचन किए गए पोषक तत्व छोटी आँत की दीवारों से अवशोषित होकर रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं।
  5. बड़ी आँत (Large Intestine):
    जल और लवण का अवशोषण: अवशिष्ट भोजन से जल और लवण का अवशोषण होता है।
    अपशिष्ट का संग्रहण: शेष अपशिष्ट मल के रूप में मलाशय में एकत्र होता है।
  6. मलाशय (Rectum):
    मल का संग्रहण: मलाशय में एकत्र मल समय-समय पर गुदा द्वार से बाहर निकल जाता है (विसर्जन)।

इस प्रकार, मनुष्य के आहारनाल में पाचन की प्रक्रिया में भोजन को छोटे, घुलनशील और अवशोषण योग्य अणुओं में परिवर्तित किया जाता है जो शरीर की ऊर्जा और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं।

8. मनुष्य के आहारनाल का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ। वर्णन की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर:

इकाई 1. जैव प्रक्रम: पोषण 7 Moral

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