नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poetry) “ज्योतिष्मती” लेकर आया हूँ और इस कविता को महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) जी ने लिखा है.
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ज्योतिष्मती – महादेवी वर्मा हिंदी कविता
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
प्रज्जवलित अग्नि है लहराती आभा सित.
सब द्विपद चतुष्पद प्राणि जगत है चंचल,
सविता ने सब को दिया कर्म का सम्बल,
नव रश्मिमाल से भूमण्डल-परिवेषित!
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
जो ऋत् की पालक मानव-युग-निर्मायक,
जो विगत उषायों के समान सुखदायक,
भावी अरुणायों में प्रथमा उदृभासित!
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
आलोकदुकूलिनि स्वर्ग-कन्याका नूतन,
पूर्वायन-शोभी उदित हुई उज्ज्वलतन,
व्रतवती निरन्तर दिग् दिगंत से परिचित!
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
उसके हित कोयी उन्नत है न अवर है,
आलोकदान में निज है और न पर है,
विस्तृत उज्ज्वलता सब की, सब से परिचित!
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
रक्ताभ श्वेत अश्वों को जोते रथ में,
प्राची की तन्वी आई नभ के पथ में,
गृह गृह पावक, पग पग किरणों से रंजित!
आ रही उषा ज्योति:स्मित!
Conclusion
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