
सुनीता की पहिया कुर्सी
Moral Hindi Story For Kids
नमस्कार दोस्तों! आज मैं आपको एक ऐसे छोटी लड़की की कहानी सुनाने जा रह हूँ जो ठीक से चल नही सकती, बोलाजाये तो वो पहिया वाली कुर्सी का प्रयोग करती है कहीं जाने आने के लिए।
लेकिन उसकी हिम्मत जरा सी भी कम नही हुई है। वो अपना सब काम करती है और सभी काम करने के उसके अपने तरीके हैं। तो शुरू करते एक छोटी सी बच्ची की कहानी जिसका नाम है- सुनीता।

सुबह सात बजे सुनीता जाग गई। सुनीता एक मिनट के लिए अपने बिस्तर पर बैठी हुई थी । वह उत्सुक थी कि उसे आज क्या करना है कि उसमें उसे मजा आये।
उसे याद आया कि उसे आजकल बाजार की यात्रा करनी थी। सोचने से पहले ही उसकी आँखें चमक उठीं। सुनीता आजकल अच्छा समय बिताने के लिए अकेले बाजार जाने की योजना बना रही थी।
उसने अपने पैरों को हाथ से पकड़ लिया और उन्हें बिस्तर से नीचे कर दिया। फिर बिस्तर की सहायता से वह अपनी पहिया कुर्सी पर चढ़ गयी। सुनीता पैंतरेबाज़ी करने के लिए एक कुर्सी की सहायता का उपयोग करती है।
आजकल वह चाहती थी कि सभी काम जल्दी से पूरा हो। हालांकि, कभी भी बदलते कपड़े, जूते आदि ले जाना उसके लिए बहुत ही कठिन काम है। हालाँकि, उसने खुद ही अपने दैनिक कार्यों के लिए कई तरीके खोजे हैं।
आठ बजे तक सुनीता शावर (नहाना) लेकर कपडे सब पहन कर तैयार हो गयी थी।

मां ने टेबल पर नाश्ता लगाया। वही सुनीता ने माँ को आवाज लगायी, “मां, अचार की बोतल लेते आना”।
मां ने टेबल पर नाश्ता लगाया। वही सुनीता ने माँ को आवाज लगायी, “मां, अचार की बोतल लेते आना”।
“कैबिनेट के भीतर रखी है ले लो”, मां ने कमरे से जवाब दिया ।
सुनीता खुद जाकर अचार लेकर आगयी और सुनीता ने नाश्ता करते हुए अपनी माँ से पूछा, “मां, बाजार से क्या लाना है?”
माँ ने कहा, “हाँ, बाजार से एक किलो चीनी लाने जाना है। क्या तुम खुद अकेले ये सब कर लोगी ? ”
सुनीता ने हँसते हुए कहा, “हाँ, क्यों नही कर पाऊँगी आराम से सब काम हो जायेगा ”।

सुनीता ने अपनी मां से बैग और नकदी पैसे ले ली और अपनी कुर्सी पर बैठकर वह बाजार की ओर चल पड़ी।
सुनीता को बहार सड़क पर घुमने में बहुत ही मजा आ रहा था और वो मजा लेते हुए बाजार जा रही थी। क्यूंकि आज छुट्टियों का दिन था तो बच्चे मैदान में खेल रहे थे और सुनीता को यह देख कर बहुत ही अच्छा लग रह था और वह बहुत आनंद के साथ ये सब देख रही थी ।

सुनीता एक पल के लिए उदास हो गयी क्यूंकि वहाँ मैदान में बच्चे रस्सी से कूद रहे थे और यह देख क्र उसे बहुत दुःख हुआ कि वो ये सब नहीं कर सकती है। वह वहाँ उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी, कूदना चाहती थी।
खेल के मैदान में उसने एक बच्ची को देखा, जिसे उसकी मां उसे वापस घर वापस ले जाने लेने के लिए थी। दोनों एक-दूसरे को देखने लगे ।

फिर सुनीता ने एक लड़के को देखा। कई बच्चे उस बच्चे को “छोटू-छोटू” कह कर चिढ़ा रहे थे। लड़के की ऊंचाई बाकी बच्चों की तुलना में बहुत छोटी थी। सुनीता को ये सब देखकर रहा नही गया।
खेल के मैदान पर वाली लड़की एक बार फिर कुछ दिनों बाद कपड़े की दूकान पर मिली। उसकी माँ वहाँ कुछ वस्त्रों को देख रही थी।
तो उस लड़की ने सुनीता से पूछा, “तुम्हारे पास ये क्या चीज है जो अजीब सी दिख रही है”।
“ये बस एक …” सुनीता ने जवाब देना शुरू ही किया था कि उस लड़की की माँ ने गुस्से में उसे सुनीता पास से हटा दिया।

“इस तरह के मत करो, फरीदा! अच्छा नहीं लगता है! ” मां ने उस लड़की फरीदा से कहा।
सुनीता ने दुखी होते हुए कहा, “मैं और बच्चों से बिल्कुल अलग नहीं हूं।” वह फरीदा की मां के व्यवहार को नहीं समझ पायी थी ।
अंत में सुनीता बाजार पहुंची। दूकान जाने के लिए उसे कई सीढियों पर चढ़ना था। यह उसके लिए बहुत परेशानी की बात थी। चारों ओर हर कोई बहुत जल्दी में था। किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
अचानक वह लड़का जिसे सब “छोटू” कहकर बुलाते थे उसके आगे आया और खड़ा हो गया। “मैं अमित हूं,” उसने खुद का नाम बताया, “क्या मैं आपकी थोड़ी सहायता कर सकता हूं?”
“मेरा नाम सुनीता है,” सुनीता ने राहत की सांस ली और अपना परिचय दिया। “क्या आप पीछे पेडल को थोड़ा धक्का देंगे?”
अमित ने कहा, “हाँ, हाँ, क्यों नहीं”। अमित ने कुर्सी को टेढ़ा करके कुर्सी के पहियों को पहली सीढ़ी पर चढ़ा कर रख दिया। फिर उसने पिछले पहियों को भी सीढ़ी चढ़ा दिया।

सुनीता ने अमित का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, अब मैं खुद दूकान में पहुंच जाऊंगी।
दूकान में पहुंचने पर सुनीता ने एक किलो चीनी मांगी। दूकानदार ने उसे देखकर मुस्कुराया। चीनी बैग ले जाने के लिए वह अपने हाथ आगे रखती है कि दुकानदार बैग को सुनीता की गोदी में रखता है।
सुनीता ने गुस्से में कहा, “मैं भी दूसरों की तरह अपनी चीजों को ले कर रख सकती हूँ।
सुनीता को दुकानदार का व्यवहार पसंद नहीं आया । सुनीता और अमित चीनी लेकर बाहर आए।
सुनीता ने कहा, “लोग मेरे साथ ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे मैं एक अजीब लड़की हूँ।
अमित ने कहा, “शायद आपकी पहिया वाली कुर्सी के कारण, वे इस तरह का व्यवहार करते हैं ।
सुनीता ने कहा, “लेकिन कुर्सी की सबसे विशेष बात यह है कि मैं बचपन से ही इस कुर्सी पर बैठती हूं और इसे चलाती हूं”।
अमित ने पूछा, “लेकिन आप इस पर क्यों बैठती हो?”
“मैं अपने पैरों के साथ नहीं चल सकती। मुझे इस कुर्सी के पहियों सहारे चलना पड़ता है। लेकिन अभी भी मैं दुसरे लोगों से पूरी तरह से अलग नहीं हूं। मई वो सब सारे काम कर सकती हूँ जो दुसरे लोग कर सकते हैं।” सुनीता ने कहा।
अमित ने अपना सिर ना में हिलाया और सुनीता से बोला, “मैं भी वो सारा काम कर सकता हूँ जो दुसरे बच्चे कर सकते हैं लेकिन मैं भी दुसरे बच्चे जैसा नहीं हूँ, थोरा अलग हूँ मैं भी। इसी तरह तुम भी दुसरे बच्चे से अलग हो।
सुनीता ने बताया, “नहीं! हम भी दुसरे युवाओं की तरह ही हैं।
अमित अपने सिर हिलाते हुए एक बार और ना बोला, “देखो, तुम पहिये वाली कुर्सी पर चलती हो । और मेरी ऊंचाई दुसरे की तुलना में कम है। हम प्रत्येक व्यक्तियों से पूरी तरह से तो नहीं पर कुछ अलग हैं।”
सुनीता ने एक बात सोचना शुरू कर दिया। सुनीता ने अपनी पहिया कुर्सी को आगे बढाया । अमित ने भी उसके साथ घूमना शुरू कर दिया।
सड़क पार करते समय सुनीता ने फरीदा को एक बार और देखा। अब फरीदा ने कोई सवाल नहीं उठाया । अमित तेजी से सुनीता की कुर्सी के पीछे चढ़ गया।

इसके बाद दोनों पहिये वाली कुर्सी पर सवार होकर सड़क पर आगे बढ़े । फरीदा उन पर सवार होकर दौड़ी ।
अब भी लोग सुनीता को घुर रहे थे लेकिन इसबार सुनीता बेफिकर थी और उसे किसी से कोई लेना देना नहीं था वो अपने दोस्तों के साथ खुश थी।
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-धन्यवाद

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