स्वामी विवेकानंद -Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020

स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020

उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये

स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020
स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020

नाम (Name)

स्वामी विवेकानन्द

वास्तविक नाम (Real Name)

नरेन्द्रनाथ दत्त

पिता (Father)

विश्वनाथ दत्त

माता (Mother)

भुवनेश्वरी देवी

जन्म (Birth)

12 जनवरी 1863
(कोलकाता)

मृत्यु (Death)

4 जुलाई 1902 (उम्र 39)
बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज

शिक्षक (Teacher)

रामकृष्ण परमहंस 

राष्ट्रीयता (Nationality)

भारतीय

स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020
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स्वामी विवेकानंद की जन्म एवं बचपन (Birth and Childhood of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekananda) का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त (Narendra Nath Dutt)था। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था।

स्वामी विवेकानन्द का जन्म  कलकत्ता में एक कायस्थपरिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम वीरेश्वर रखा गया, लेकिन उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो पेशा से कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। स्वामी जी के दादाजी का नाम दुर्गाचरण दत्ता था जो  संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 साल की उम्र में छोड़ दिया और साधु बन गए। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था और उनकी माँ धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, प्रगतिशील और तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की।

स्वामी विवेकानंद -Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020
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स्वामी जी बचपन से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही और साथ में बहुत नटखट भी थे। वे अपने दोस्तों के साथ बहुत शरारत करते थें और मौका मिलने पर अध्यापकों के साथ शरारत करने से भी नहीं चूकते थे।

उनके घर में रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था।

कथा सुनाने वाले बराबर इनके घर आते-जाते रहते थे। उनके घर नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता ही रहता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। स्वामी जी परमहंस जी के सबसे प्रिय शिष्य थें । इन्हें पता था कि ये बालक एक दिन अपने देश के नाम को बहुत आगे ले जाएगा और ये बात बिलकुल सही भी निकली ।

माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथा सुनाने वाले पण्डित तक चक्कर में पड़ जाते थे।

स्वामी विवेकानंद की प्रारंभिक शिक्षा ( Elementary Education Of Swami Vivekananda)

आठ साल की उम्र में, सन् 1871 में, नरेंद्र ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया, जहाँ वे स्कूल गए। उनका परिवार 1877 में रायपुर चला गया। कलकत्ता में, 1879 में, अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये।

वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे। इनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी।

नरेंद्र को भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था, और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे। नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।

नरेंद्र ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्ययन किया। उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन (1860) का बंगाली में अनुवाद किया। 

ये हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे। पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा। विलियम हेस्टी (महासभा संस्था के प्रिंसिपल) ने लिखा, “नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।” अनेक बार इन्हें श्रुतिधर (विलक्षण स्मृति वाला एक व्यक्ति) भी कहा गया है।

स्वामी विवेकानंद -Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020
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स्वामी विवेकानंद के यात्रायें ( Tours Of Swami Vivekananda)

25 वर्ष की आयु में नरेन्द्र जी ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे और इसके बाद ही उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। विवेकानंद जी ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों का दौरा किया, चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुँचे । सन्‌ 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी।

स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। योरोप-अमरीका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।

वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परन्तु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला।

उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया।

तीन वर्ष वे अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।

“अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा” यह स्वामी विवेकानन्द का दृढ़ विश्वास था। अमरीका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को ‘गरीबों का सेवक’ कहते थे।

भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Death Of Swami Vivekananda)

विवेकानंद ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-“एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।” उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 7 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।

उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।

(स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda Biography In Hindi New 2020)


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-धन्यवाद 

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