भावार्थ -इस श्लोक में आचार्य चाणक्य के द्वारा कहा गया है कि सर्वाधिक सुन्दरी होने के कारण से सीताजी का अपहरण हो गया, अति घमंड के कारण से रावण का सर्वनाश हो गया, अति दानशीलता के कारण से महाबली को शर्मसार होना पड़ा, इसलिए किसी भी कार्य की अति नहीं करना चाहिए।
व्याख्या – अत्यधिक सौंदर्ययुक्त होने के कारण सीताजी का अपहरण हुआ।
बलि नामक दैत्यों के शक्तिशाली राजा थे, वे बड़े दानवीर थे, उनके दान की भी अति हो गई।
वे सभी कुछ दान करने में भी हिचक महसूस नहीं करते थे।
सुना है कि वे इतने शक्तिसम्पन्न थे कि उनका अति फैला हुआ था।
वामन नामक एक बौना ब्राह्मण यज्ञ के वक्त दान लेने पहुंचा और उसने दान में तीन कदम भूभाग मांगा ।
इस अविचित्र मांग या दान को सुनकर शुक्राचार्य ने बली को सचेत किया कि वह दान या वचन न प्रदान करे ।
किन्तु दानशीलता के नशे में चूर होकर या महादानी होकर बली ने इस निर्देश की ओर ध्यान नहीं दिया ।
बौने ब्राह्मण ने अचानक पलक झपकते ही अपना विशाल रूप बना लिया और एक कदम में ही तीनों लोक भ्रमण कर लिये , दूसरे पग में बली के समस्त पुण्य कर्मों को जान लिया , तीसरे पग की पूर्ति करने में बली नाकाम हो गए और अपने मस्तक को सम्मुख कर दिया ।
बली को शीश झुकाकर लज्जित होना पड़ा , आचार्य चाणक्य ने ऐसे उदाहरणों को पेश कर यह बताया है कि किसी भी कार्य में अति करना लज्जित होने , अपमान सहने या वित्तिष्ट हो जाने के कारण से होता है । (Chanakya Niti In Hindi – Moral Story)