भ्रम | समर्पण | ठुकरा दो या प्यार करो | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems) “भ्रम”, समर्पण” और “ठुकरा दो या प्यार करो” लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

भ्रम | समर्पण | ठुकरा दो या प्यार करो | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता

भ्रम – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

देवता थे वे, हुए दर्शन, अलौकिक रूप था.
देवता थे, मधुर सम्मोहन स्वरूप अनूप था.
देवता थे, देखते ही बन गई थी भक्त मैं.
हो गई उस रूपलीला पर अटल आसक्त मैं.

देर क्या थी? यह मनोमंदिर यहाँ तैयार था.
वे पधारे, यह अखिल जीवन बना त्यौहार था.
झाँकियों की धूम थी, जगमग हुआ संसार था.
सो गई सुख नींद में, आनंद अपरंपार था.

किंतु उठ कर देखती हूँ, अंत है जो पूर्ति थी.
मैं जिसे समझे हुए थी देवता, वह मूर्ति थी.

समर्पण – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

सूखी सी अधखिली कली है
परिमल नहीं, पराग नहीं.
किंतु कुटिल भौंरों के चुंबन
का है इन पर दाग नहीं.

तेरी अतुल कृपा का बदला
नहीं चुकाने आई हूँ.
केवल पूजा में ये कलियाँ
भक्ति-भाव से लाई हूँ.

प्रणय-जल्पना चिन्त्य-कल्पना
मधुर वासनाएं प्यारी.
मृदु-अभिलाषा, विजई आशा
सजा रहीं थीं फुलवारी.

किंतु गर्व का झोंका आया
यदपि गर्व वह था तेरा.
उजड़ गई फुलवारी सारी
बिगड़ गया सब कुछ मेरा.

बची हुई स्मृति की ये कलियाँ
मैं समेट कर लाई हूँ.
तुझे सुझाने, तुझे रिझाने
तुझे मनाने आई हूँ.

प्रेम-भाव से हो अथवा हो
दया-भाव से ही स्वीकार.
ठुकराना मत, इसे जानकर
मेरा छोटा सा उपहार.

ठुकरा दो या प्यार करो – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं

धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आई
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आई

पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आई हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आई हूँ

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता  “भ्रम”, समर्पण” और “ठुकरा दो या प्यार करो”  अच्छा लगा होगा जिसे  सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)  जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

Image Source

Pixabay[1]

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