गांव मजे में हैं | हरभगवान चावला | हिंदी कहानी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कहानी गांव मजे में हैं लेकर आया हूँ और इस कविता को हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है.

तो शुरू करते हैं आज का पोस्ट जिसका नाम है- गांव मजे में हैं  हिंदी कहानी. अगर आपको कहानियां पढने में अच्छा लगता है तो मेरे ब्लॉग साईट पर आप पढ़ सकते हैं यहाँ आपको कई तरह की कहानियां देखने को मिलेगी. आप लिंक पर क्लिक करके वहाँ तक पहुँच सकते हैं. (यहाँ क्लिक करें)

गांव मजे में हैं | हरभगवान चावला | हिंदी कहानी
गांव मजे में हैं | हरभगवान चावला | हिंदी कहानी

गांव मजे में हैं | हरभगवान चावला | हिंदी कहानी

अचानक ही राजकुमार से मुलाकात हुई. बेटी की शादी के लिए कपड़े खरीदने शहर आया था. मुझे गांव छोड़े बीस-बाईस साल हो गए थे. दस साल से तो मैं कभी गांव गया ही नहीं था. हां, गांव की खबरें किसी न किसी माध्यम से पहुंचती रहती थीं.

राजकुमार के हालचाल जानने के बाद मैंने पूछा, “गांव कैसा है?’ ‘गांव एकदम मजे में है.’ ‘मजे में है? मैंने सुना था कि पीने के पानी तक का संकट है. तीन-चार साल से फसल न के बराबर हुई है.

गांव के बेरोजगार लड़के तेजी से नशे के जाल में फंस रहे हैं. आर्थिक तंगी के कारण दो लोगों ने आत्महत्या कर ली है.’ ‘ये सब बातें तो सही हैं.’ ‘फिर भी कह रहे हो, गांव एकदम मजे में है?’

‘हम अगर हर संकट को दिल से लगाकर बैठ जाते तो कब के मर जाते. दुख हमें भी होता है और बहुत होता है, पर दुख को दरिया बनाकर उसमें डूब जाएंगे तो पेट कैसे भरेंगे? हम दुख और सुख को बांट लेते हैं.’

आज भी चौकों और चौपालों में लोग मिलकर बैठते हैं, बातें करते हैं. बरगद के नीचे बैठ ताश खेलते हुए ठहाके लगाते हैं. औरतें पड़ोसियों के घरों में गप्पें लड़ाती हैं.

मैं किसी पड़ोसी के घर कब गया था- मैंने सोचा. शहर की इस पॉश कॉलोनी में रहते हुए ग्यारह साल हो गए. न मैं किसी को जानता हूं, न कोई मुझे. बड़े-से घर में एकदम अकेला हूं मैं.

‘हम जब छोटे थे तो तुम्हें याद है हरीश कि घर पर बनी सब्जी पसंद न आने पर क्या करते थे?’ ‘हां, याद है, किसी पड़ोसी के घर जाकर बदल लेते थे. वो रिवाज आज भी कायम है गांव में.’ मैं समझ गया कि सारी सुविधाएं मेरी कैद में हैं

और मैं सुविधाओं की कैद में बेबस, बेरस. गांव में लोग अभावों की संगति में रहते हैं, कैद में नहीं. उनके दुख, उनके सुख साझे हैं। वाकई ठीक कह रहा है राजकुमार- गांव एकदम मजे में है.

Conclusion:

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