ज्ञानेन्द्रियाँ | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) ज्ञानेन्द्रियाँ लेकर आया हूँ और इस कविता को हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

ज्ञानेन्द्रियाँ | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता
ज्ञानेन्द्रियाँ | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता

ज्ञानेन्द्रियाँ | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता

ईँधन की मानिंद भट्टियों में
झोंक दिए जाते हैं ज़िंदा इन्सान
तुम्हारी कविता को गंध नहीं आती

अंधेरे तक को कँपाती
गूँजती रहती हैं अबलाओं की चीख़ें
तुम्हारी कविता कुछ नहीं सुनती

भूख निरंतर मिटाती रहती है
हथेलियों की भाग्य और जीवन-रेखाएँ
तुम्हारी कविता कुछ नहीं देखती

शहर रोज़ लहू से तरबतर होता है
और तुम्हारी कविता के वस्त्र
उजले और बेदाग़ बने रहते हैं

कहाँ से लाते हो तुम
अपनी कविता की ज्ञानेन्द्रियाँ कवि ?

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता ज्ञानेन्द्रियाँ अच्छा लगा होगा जिसे हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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