नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “हम” लेकर आया हूँ और इस कविता को डॉ० रामगोपाल शर्मा जी ने लिखा है.
आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता “हम” पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).
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हम | डॉ० रामगोपाल शर्मा | हिंदी कविता
हम मेघ, हमें जीवन प्यारा, पर बरसा आग भी सकते हैं.
रस-गीत न तुझको भाता हो, तो प्रलय-राग गा सकते हैं.
हम उस दधीचि के बेटे हैं,
संभव है, तुझको याद नहीं!
जिसकी हड्डी से वज्र बना
,मिलता ऐसा फ़ौलाद कहीं?
इस धरती पर हमने अब तक प्यासा न किसी को लौटाया.
यदि रण की तृषा लिए आए, तो बुझा उसे भी सकते हैं.
हमसे लड़ने को काल चला,
तो नभ-निचोड़ गंगा लाए.
सागर गरजा तो बन अगस्त्य,
उसके ज्वारों को पी आए.
भूचाल हमारे पैरों में, तूफ़ान बंद है मुट्ठी में.
हम शंकर हैं, प्रलयंकर बन, तांडव भी दिखला सकते हैं.
मत समझ हमारे हिमगिरि की,
कोई शीतलता खो देगा.
नदियों का पानी पी लेगा,
भू की हरियाली छीनेगा.
भीतर के ज्वालामुखियों की शायद तुझको पहचान नहीं.
हम उबल पड़े तो साँसों से पत्थर को पिघला सकते हैं.
Conclusion
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रितेश कुमार सिंहा जी को हिंदी की किताबें पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता है और कुछ-कुछ कहानी खुद से भी लिखते हैं जो वो हमारे साथ इस ब्लॉग पर शेयर करते रहते हैं. ये हमारे साथ शुरुआत से जुड़े हुए हैं. और ये हमलोगों के सामने कई तरह से कहानी और अलग प्रकार के टॉपिक पर लिखते हैं. इन्होने कंप्यूटर एप्लीकेशन से ग्रेजुएशन किया हुआ है तो ये टेक्निकल ब्लॉग भी शेयर करते हैं.