कोई उम्मीद बर नहीं आती | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “कोई उम्मीद बर नहीं आती” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह शायरी पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी शायरी पढने में अच्छा लगता है तो आप यहाँ क्लिक करके और भी शायरी पढ़ सकते(यहाँ क्लिक करें).

कोई उम्मीद बर नहीं आती | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी
कोई उम्मीद बर नहीं आती | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

कोई उम्मीद बर नहीं आती – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद कयों रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाले-दिल पे हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती

जानता हूं सवाबे-ताअत-ओ-ज़ोहद
पर तबीयत इधर नहीं आती

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूं
वरना क्या बात कर नहीं आती

कयों न चीखूं कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती

दाग़े-दिल गर नज़र नहीं आता
बू भी ऐ बूए चारागर नहीं आती

हम वहां हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

मरते हैं आरजू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती

काबा किस मूंह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शरम तुमको मगर नहीं आती

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी कोई उम्मीद बर नहीं आती अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

इसे भी पढ़ें

Leave a Reply