मधुकरी | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) मधुकरी लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.

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मधुकरी | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता
मधुकरी | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता

मधुकरी – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता

सिखा दो ना, हे मधुप कुमारि !
मुझे भी अपने मीठे गान,
कुसुम के चुने कटोरों से,
करा दो ना, कुछ कुछ मधुपान !
नवल कलियों के धोरे झूम,
प्रसूनों के अधरों को चूम,
मुदित, कवि सी तुम अपना पाठ
सीखती हो सखि! जग में घूम;

सुना दो ना, तब हे सुकुमारि !
मुझे भी ये केसर के गान!

किसी के उर में तुम अनजान
कभी बँध जाती, बन चितचोर;
अधखिले, खिले, सुकोमल गान
गूँथती हो फिर उड़ उड़ भोर;

मुझे भी बतला दो न कुमारि!
मधुर निशि स्वजनों वे ये गान !

सूँघ चुन कर, सखि ! सारे फूल,
सहज बिंध बँध, निज सुख दुख भूल,
सरस रचती हो ऐसा राग
धूल बन जाती है मधुमूल;

पिला दो ना, तब हे सुकुमारि !
इसी से थोडे मधुमय गान;
कुसुम के खुले कटोरों से
करा दो ना, कुछ कुछ मधुपान !

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता मधुकरी अच्छा लगा होगा जिसे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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