सुबह | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “ सुबह ” लेकर आया हूँ और इस कविता को अशोक वाजपेयी (Ashok Bajpayee) जी ने लिखा है. यह एक गद्य शैली की कविता है. अशोक वाजपेयी जी ने गद्य शैली कविता को बढ़ावा दिया है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

सुबह | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता
सुबह | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

सुबह | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

सुबह थी .

उजाले, हलकी सुगबुगाहट और जागरण के साथ .

पर सबके लिए नहीं .

घूमनेवाले अधेड़ों,

स्कूल जानेवाले बच्चों के लिए थी :

चिड़ियों-तोतों के लिए थी

और शायद दूर तक फैली हुई हरियाली के लिए .

वनस्पतियों और वृक्षों को भी शायद पता था

कि सुबह हो गई है .

पर मेज को, गिलासों-तश्तरियों को,

कागजों के पुलिंदों और गरम मसालों को

कहाँ पता था कि सुबह है.

उन्हें कभी पता नहीं चलता.

अचार को कोई नहीं बताता कि

सुबह हो गई है और

उसे कुछ करना चाहिए-

उदाहरण के लिए कुछ देर

तेल-नमक से बाहर घूम आना चाहिए.

मिट्टी के गहरे अँधेरे में डूबी जड़ें

नहीं जान पातीं कि ऊपर-बाहर धूप खिल रही है.

सुबह सबकी सुबह नहीं है :

कुछ के लिए कभी सुबह नहीं है.

कुछ के लिए कोई सुबह नहीं है.

समय भी सबके लिए नहीं है.

कुछ समय के घेरे से ऐसे बाहर पड़े रहते

हैं जैसे हों ही न.

या कि समय ही न हो.

Image Sources: amarujala

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “सुबह” अच्छा लगा होगा जिसे अशोक वाजपेयी (Ashok Bajpayee) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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