तीन गाठों की एक रस्सी – नमस्कार दोस्तों! आज कि ये “तीन गाठों की एक रस्सी” हिंदी कहानी गौतम बुद्ध के प्रसंगो में से एक है जिसमे बुद्ध बताना चाहते हैं कि हम अक्सर किसी भी समस्या का निदान ही चाहते हैं पर उसका कारण जानने की कोशिश नहीं करते.
हमारे साथ कुछ मिनटों के लिए जुड़े रहिये और एक छोटी सी हिंदी कहानी का मजा लीजिये और गौतम बुद्ध के सन्देश को जीवन में उतारने के लिए खुद को प्रेरित कीजिए.
तो शुरू करते हैं आज का पोस्ट जिसका नाम है- तीन गाठों की एक रस्सी –हिंदी कहानी. अगर आपको कहानियां पढने में अच्छा लगता है तो मेरे ब्लॉग साईट पर आप पढ़ सकते हैं यहाँ आपको कई तरह की कहानियां देखने को मिलेगी. आप लिंक पर क्लिक करके वहाँ तक पहुँच सकते हैं. (यहाँ क्लिक करें)
तीन गाठों की एक रस्सी | गौतम बुद्ध | हिंदी कहानी

एक गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे थे. शिष्य उन्हें देखकर चकित थे, क्योंकि आज पहली बार बुद्ध अपने हाथ में कुछ लेकर आए थे. करीब आने पर शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी थी. बुद्ध आसन पर बैठे हुए रस्सी में गांठें लगा रहे थे.
तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, ‘मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं. मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या यह वही रस्सी है?
एक शिष्य ने कहा, ‘गुरुजी जवाब देना थोड़ा कठिन है। यह हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें तो रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है, पर अब इसमें तीन गांठे भी लगी हुई हैं. अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं।
पर ये बात ध्यान देने वाली है कि बाहर से भले ही ये बदली हुई प्रतीत हो, पर अंदर से तो ये वही है, जो पहले थी. इसका बुनियादी स्वरूप अपरिवर्तित है।’
बुद्ध ने कहा, ‘सत्य है! अब मैं इन गांठों को खोल देता हूं.’ यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक दूसरे से दूर खींचने लगे. उन्होंने पूछा, ‘इस प्रकार
इन्हें खींचने से क्या मैं इन्हें खोल सकता हूं?” ‘नहीं-नहीं, ऐसा करने से तो गांठे और भी कस जाएंगी.’, एक शिष्य ने शीघ्रता से उत्तर दिया. बुद्ध ने कहा, ‘ठीक है, तो बताओ कि इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा?’
शिष्य बोला, ‘हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा. यह जानना होगा कि इन्हें कैसे लगाया गया था. मैं यही सुनना चाहता था’, बुद्ध ने कहा. वे आगे बोले कि मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है? बिना कारण जाने हल असम्भव है. अधिकतर बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं.
कोई मुझसे ये नहीं पूछता कि मुझे क्रोध क्यों आता है, लोग पूछते हैं कि मैं क्रोध का अंत कैसे करूं? कोई यह नहीं पूछता कि मेरे अंदर अंहकार का बीज कहां से आया, लोग पूछते हैं कि मैं अहंकार कैसे खत्म करूं?
बुद्ध ने कहा कि जिस तरह गांठें लग जाने पर भी रस्सी का बुनियादी स्वरूप नहीं बदलता. उसी तरह मनुष्य में भी कुछ विकार आ जाने से अंदर से अच्छाई के बीज खत्म नहीं होते. हम सभी समस्याओं को हल कर सकते हैं।
Image Sources: Pixabay
Conclusion:
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रितेश कुमार सिंहा जी को हिंदी की किताबें पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता है और कुछ-कुछ कहानी खुद से भी लिखते हैं जो वो हमारे साथ इस ब्लॉग पर शेयर करते रहते हैं. ये हमारे साथ शुरुआत से जुड़े हुए हैं. और ये हमलोगों के सामने कई तरह से कहानी और अलग प्रकार के टॉपिक पर लिखते हैं. इन्होने कंप्यूटर एप्लीकेशन से ग्रेजुएशन किया हुआ है तो ये टेक्निकल ब्लॉग भी शेयर करते हैं.