तेरा हार | हरिवंशराय बच्चन | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) तेरा हार लेकर आया हूँ और इस कविता को हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

तेरा हार | हरिवंशराय बच्चन | हिन्दी कविता
तेरा हार | हरिवंशराय बच्चन | हिन्दी कविता

तेरा हार | हरिवंशराय बच्चन | हिन्दी कविता

स्वीकृत

(1)

घर से यह सोच उठी थी

उपहार उन्हें मैं दूँगी,

करके प्रसन्न मन उनका

उनकी शुभ आशिष लूँगी.

(2)

पर जब उनकी वह प्रतिभा

नयनो से देखी जाकर,

तब छिपा लिया अञ्चल में

उपहार हार सकुचा कर.

(3)

मैले कपड़ों के भीतर

तण्डुल जिसने पहचाने,

वह हार छिपाया मेरा

रहता कब तक अनजाने ?

(4)

मैं लज्जित मूक खड़ी थी,

प्रभु ने मुस्करा बुलाया,

फिर खड़े सामने मेरे

होकर निज शीश झुकाया !

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

आशे !

(1)

भूल तब जाता दुख अनन्त,

निराशा पतझड़ का हो अन्त

हृदय में छाता पुन: वसन्त,

दमक उठता मेरा मुख म्लान

देवि ! जब करता तेरा ध्यान.

(2)

पथिक जो बैठा हिम्मतहार,

जिसे लगता था जीवन भार,

कमर कसता होता तैयार,

पुन: उठता करता प्रस्थान,

देवि ! जब करता तेरा ध्यान.

(3)

डूबते पा जाता आधार,

सरस होता जीवन निस्सार,

सार मय फिर होता संसार,

सरल हो जाते कार्य महान,

देवि ! जब करता तेरा ध्यान.

(4)

शक्ति का फिर होता संचार,

सूझ पड़ता फिर कुछ-कुछ पार,

हाथ में फिर लेता पतवार,

पुन: खेता जीवन जल यान,

देवि ! जब करता तेरा ध्यान.

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

नैराश्य

(1)

निशा व्यतीत हो चुकी कब की !

सूर्य किरण कब फूटी!

चहल-पहल हो उठी जगत में,

नींद न तेरी टूटी!

(2)

उठा उठा कर हार गई मैं,

आँख न तूने खोली,

क्या तेरे जीवन-अभिनय की

सारी लीला हो ली ?

(3)

जीवन का तो चिन्ह यही है

सो कर फिर जग जाना,

क्या अनंत निद्रा में सोना

नहीं मृत्यु का आना ?

(4)

तुझे न उठता देख मुझे है

बार बार भ्रम होता–

क्या मैं कोई मृत शरीर को

समझ रही हूँ सोता !

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

कीर

(1)

“कीर ! तू क्यों बैठा मन मार,

शोक बन कर साकार,

शिथिल तन मग्न विचार !

आकर तुझ पर टूट पडा है किस चिंता का भार ?”

(2)

इसे सुन पक्षी पंख पसार,

तीलियों पर पर मार,

हार बैठा लाचार,

पिंजड़े के तारों से निकली मानो यह झङ्कार-

(3)

“कहाँ बन बन स्वच्छन्द विहार !

कहाँ वन्दी-गृह द्वार !”

महा यह अत्याचार-

एक दुसरे का ले लेना ‘जन्म सिद्ध अधिकार’.

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

झण्डा

(1)

हृदय हमारा करके गद्गद

भाव अनेक उठाता है,

उच्च हमारा होकर झण्डा

जब ‘फर-फर’ फहराता है!

(2)

अहे ! नहीं फहराता झण्डा

वायु वेग से चञ्चल हो,

हमें बुलाती है माँ भारत

हिला हिला कर अञ्चल को !

(3)

आओ युवको, चलें सुनें क्या

माता हमसे कहती आज.

हाथ हमारे है रखना माँ

भारत के अञ्चल की लाज.

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

वन्दी

(1)

“पड़े वन्दी क्यों कारागार ?

चले तुम कौन कुचाल ?

चुराया किसका माल ?

छीना क्या किसका जिस पर था तुम्हें नहीं अधिकार ?”

(2)

“न था मन में कोई कुविचार,

न थी दौलत की चाह,

न थी धन की परवाह,

था अपराध हमारा केवल किया देश को प्यार !

(3)

शीश पर मातृ भूमि-ऋण भार,

उसे हूँ रहा उतार.

देशहित कारागार-

कारागार नहीं, वह तो है स्वतन्त्रता का द्वार !”

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

वन्दी मित्र

(1)

जेल कोठरी के मैं द्वार

वन्दी ! तुझसे मिलने आया,

नतमस्तक मन में शर्माया,

मित्र ! मित्रता का मुझसे कुछ निभ न सका व्यवहार.

(2)

कैसे आता तेरे साथ ?

देश भक्ति करने का अवसर,

बड़े भाग्य से मिले मित्रवर !

मेरी किस्मत में वह कैसे लिखते विधि के हाथ !

(3)

मित्र ! तुम्हारे मंगल भाल

अंकित है स्वतन्त्र नित रहना,

मेरे, बंदीगृह दुख सहना,

“मैं स्वतन्त्र ! तू वन्दी ! कैसे ?”-तेरा ठीक सवाल.

(4)

मित्र ! नहीं क्या यह अविवाद ?

स्वतंत्र ही स्वतन्त्रता खोता,

वन्दी कभी न वन्दी होता,

अपने को वन्दी कर सकते जो स्वतन्त्र आजाद.

(5)

कम न देश का मुझको प्यार.

साथ तुम्हारा मैं भी देता,

अंग अंग यदि जकड़ न लेता,

मेरा, प्यारे मित्र ! जगत का काला कारागार.

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

कोयल

1

अहे, कोयल की पहली कूक !

अचानक उसका पड़ना बोल,

हृदय में मधुरस देना घोल,

श्रवणों का उत्सुक होना, बनाना जिह्वा का मूक !

2

कूक, कोयल, या कोई मंत्र,

फूँक जो तू आमोद-प्रमोद,

भरेगी वसुंधरा की गोद ?

काया-कल्प-क्रिया करने का ज्ञात तुझे क्या तंत्र ?

3

बदल अब प्रकृति पुराना ठाट

करेगी नया-नया श्रृंगार,

सजाकर निज तन विविध प्रकार,

देखेगी ऋतुपति-प्रियतम के शुभागमन की बाट.

4

करेगा आकर मंद समीर

बाल-पल्लव-अधरों से बात,

ढँकेंगी तरुवर गण के गात

नई पत्तियाँ पहना उनको हरी सुकोमल चीर.

5

वसंती, पीले, नील, लाले,

बैंगनी आदि रंग के फूल,

फूलकर गुच्छ-गुच्छ में झूल,

झूमेंगे तरुवर शाखा में वायु-हिंडोले डाल.

6

मक्खियाँ कृपणा होंगी मग्न,

माँग सुमनों से रस का दान,

सुना उनको निज गुन-गुन गान,

मधु-संचय करने में होंगी तन-मन से संलग्न !

7

नयन खोले सर कमल समान,

बनी-वन का देखेंगे रूप—

युगल जोड़ी सुछवि अनूप;

उन कंजों पर होंगे भ्रमरों के नर्तन गुंजान.

8

बहेगा सरिता में जल श्वेत,

समुज्ज्वल दर्पण के अनुरूप,

देखकर जिसमें अपना रूप,

पीत कुसुम की चादर ओढ़ेंगे सरसों के खेत.

9

कुसुम-दल से पराग को छीन,

चुरा खिलती कलियों की गंध,

कराएगा उनका गठबंध,

पवन-पुरोहित गंध सूरज से रज सुगंध से भीन.

10

फिरेंगे पशु जोड़े ले संग,

संग अज-शावक, बाल-कुरंग,

फड़कते हैं जिनके प्रत्यंग,

पर्वत की चट्टानों पर कूदेंगे भरे उमंग.

11

पक्षियों के सुन राग-कलाप—

प्राकृतिक नाद, ग्राम सुर, ताल,

शुष्क पड़ जाएँगे तत्काल,

गंधर्वों के वाद्य-यंत्र किन्नर के मधुर अलाप.

12

इन्द्र अपना इन्द्रासन त्याग,

अखाड़े अपने करके बंद,

परम उत्सुक-मन दौड़ अमंद,

खोलेगा सुनने को नंदन-द्वार भूमि का राग !

13

करेगी मत्‍त मयूरी नृत्य

अन्य विहगों का सुनकर गान,

देख यह सुरपति लेगा मान,

परियों के नर्तन हैं केवल आडंबर के कृत्य !

14

अहे, फिर ‘कुऊ’ पूर्ण-आवेश !

सुनाकर तू ऋतुपति-संदेश,

लगी दिखलाने उसका वेश,

क्षणिक कल्पने मुझे घमाए तूने कितने देश !

15

कोकिले, पर यह तेरा राग

हमारे नग्न-बुभुक्षित देश

के लिए लाया क्या संदेश ?

साथ प्रकृति के बदलेगा इस दीन देश का भाग ?

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

चुम्बन

(1)

ऐ छोटे विहग सुकुमार !

तेरे कोमल चंचु अधर से

निकल रहे स्नेहाप्लुत स्वर से

लगता, कोई करे किसी को निर्भय चुम्बन प्यार.

(2)

किसको करते चुम्बन प्यार ?

क्या मानव आंखों से देखी

गई ना बुद्धि-चक्षु अवरेखी

उसको ऊषा काल बहे जो शीतल मन्द बयार ?

(3)

या सुमनों में शिशु कुमार,

जो सुगंध का अब तक सोया,

रजनी के स्वप्नों में खोया,

उसे जगाते धीमे धीमे कर के चुम्बन-प्यार ?

(4)

या तुम शशि किरणों के तार

से जो चुम्बन कर

और सितारों का प्रकाश वर

चूमचूम सस्नेह विदा करते हो, अन्तिम बार ?

(5)

या तुम बाल सूर्य के हाथ,

स्वर्ण रंग में गए रंगाए,

गए तुम्हारी ओर बढ़ाए,

करते हो आभूषित अपने रजत-चुम्बनों साथ ?

(6)

या तुम उस चुम्बन का, तात !

पाठ याद करते उठ भोर,

जिसे लिटा अञ्चल पर छोर

अपने तुमको, मातृ विहगिनि ने सिखलाया रात !

(7)

या तुम वह चुम्बन प्रति भोर

उठ कर याद किया करते हो,

(मुझे बताते क्यों डरते हो?)

जिससे तुम्हें किसी ने भेजा जीवन के इस ओर ?

(8)

तब की तो है मुझे न याद,

पर अतीत जीवन के चुम्बन

कितने चमका करें हृद्गगन !

जिनकी मूकस्मृति मेरे मन भरती मधुर विषाद!

(9)

यदि न जगत के धंधे फन्द

होते, मानस-गगन घूमता,

प्रति चुम्बन को पुन: चूमता,

सदा बना मैं तुमसा रहता एक विहंग स्वच्छन्द !

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

दुख में

(1)

“पड़ी दुखों की तुझ पर मार !

दुखों में सुख भरा जान तू,

रो रो कर मुख न कर म्लान तू,

हँस, हँस, हलका हो जाएगा तेरे दुख का भार.

(2)

निज बल पर जिनको अभिमान

संकट में साहस दिखलाते,

दुखों को हैं दूर हटाते

दुख पड़ने पर जो हँसते हैं वही वीर बलवान”.

(3)

“मिले मुझे दुख लाखों बार,

पर, दुख में सुख सार समाया-

व्यंग, समझ मैं कभी न पाया.

सुख में हंसूं, दुखों में रोऊँ-सीधा सा व्यवहार.

(4)

कोमल से कोमल भी शूल

जब जब है तन मेरे गड़ता,

बच्चों सा मैं हूं रो पड़ता,

कांटों को मैं कभी न अब तक समझ सका हूँ फूल.

(5)

एक नियम जीवन में पाल

रहा सदा से हूँ मैं अविचल,

कोई कहे बली या निर्बल,

उन्हें चुभा रहने देता हूँ, देता नहीं निकाल !”

दुखों का स्वागत

(1)

नदियाँ नीर भरें जलनिधि में

जो जल राशि अघाए.

शुष्क, जल रहित मरुस्थली को

दिनकर और तपाए.

(2)

हृष्ट-पुष्ट नित स्वस्थ रहे, कृश

कौण रुग्न हो जाए,

लक्ष्मी के मन्दिर में स्वागत

धनी महाजन पाए.

(3)

अंधकार अंधों को मिलता,

उसे नयन जो पाए

ज्योति मिले, यह नियम जगत का

सम समान को धाए.

(4)

प्यार पास जाए प्यारों के,

सुख सुखियों पर छाए,

आशिष आशिष वानो पर, मुझ

दुखिया पर दुख आए !

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

आदर्श प्रेम

1

प्यार किसी को करना, लेकिन-

कह कर उसे बताना क्या ?

अपने को अर्पण करना पर-

औरों को अपनाना क्या ?

2

गुण का ग्राहक बनना, लेकिन-

गा कर उसे सुनाना क्या ?

मन के कल्पित भावों से

औरों को भ्रम में लाना क्या ?

3

ले लेना सुगंध सुमनों की,

तोड़ उन्हे मुरझाना क्या ?

प्रेम हार पहनाना लेकिन-

प्रेम पाश फैलाना क्या ?

4

त्याग-अंक में पलें प्रेम शिशु

उनमें स्वार्थ बताना क्या ?

दे कर हृदय हृदय पाने की

आशा व्यर्थ लगाना क्या ?

तेरा हार – हरिवंशराय बच्चन – हिन्दी कविता

तुमसे

(1)

नहीं चाहता तुलसी दल बन

शीश तुम्हारे चढ़ पाऊं,

नहीं, हार की कलियां बन कर

गले तुम्हारे पड़ जाऊं.

(2)

नहीं भुजायों में रख तुमको

इन हाथों को करूं पवित्र,

नहीं, हृदय के अन्दर वन्दी

कर के रखूं चित्र.

(3)

नहीं चाहता दिखलाने को

तव भक्तों का वेश धरूं,

नहीं, सखा बन सदा तुम्हारे

दाएँ बाएँ फिरा करूं.

(4)

इच्छा केवल रजकण में मिल

तव मन्दिर के निकट पड़ूं,

आते जाते कभी तुम्हारे

श्री-चरणों से लिपट पड़ूं.

मधुर स्मृति

(1)

याद मुझे है वह दिन पहले

जिस दिन तुझको प्यार किया,

तेरा स्वागत करने को जब

खोल हृदय का द्वार दिया.

(2)

मन मन्दिर में तुझे बिठा कर

तेरा जब सत्कार किया,

झुक झुक तेरे चरणों का जब

चुम्बन बारम्बार किया.

(3)

स्नेहमयी वह दृष्टि प्रथम ही

थी जिसने तुझको देखा,

याद नहीं है मुझे, तुझे

देखा पहले या प्यार किया !

(4)

हर्षित हो कर क्यों न सराहूं

बार बार उस दिन के भाग,

जिस दिन तूने प्रेम हमारा

खुले हृदय स्वीकार किया !

दुखिया का प्यार

(1)

“प्रेम का यह अनुपम व्यवहार !

पास न मेरे हैं वे आते,

मुझे न अपने पास बुलाते,

दूर दूर से कहते हैं, करता हूँ तुझको प्यार !!”

(2)

“आपदा के ऐसे आगार–

जहाँ किसी को छू हम देते,

घेर उसे दुख संकट लेते !

मिल कर तुझसे क्यों तुझ पर भी डालूं दुख का भार ?

(3)

विरह के दुख सौ नहीं, हजार

सहा करूं यदि जीवन भर मैं,

तुझे न दुखित बनाऊँ पर मैं,

‘तू है सुखी’-यही तो मेरे जीवन का आधार.

(4)

प्रेम का ही तोड़ूंगा तार-

( चाहे मृत्यु भले ही आए )

ज्ञात मुझे यदि यह हो जाए-

दुखी बना सकता है तुझको इस दुखिया का प्यार “.

कलियों से

1

अहे ! मैंने कलियों के साथ,

जब मेरा चंचल बचपन था,

महा निर्दयी मेरा मन था,

अत्याचार अनेक किए थे,

कलियों को दुख दीर्घ दिए थे,

तोड़ इन्हें बागों से लाता,

छेद-छेद कर हार बनाता !

क्रूर कार्य यह कैसे करता,

सोंच इन्हें हूँ आहें भरता.

कलियो ! तुमसे क्षमा माँगते ये अपराधी हाथ.

2

अहे ! वह मेरे प्रति उपकार !

कुछ दिन में कुम्हला ही जाती,

गिरकर भूमि समाधि बनाती.

कौन जानता मेरा खिलना ?

कौन, नाज़ से डुलना-हिलना ?

कौन गोद में मुझको लेता ?

कौन प्रेम का परिचय देता ?

मुझे तोड़ की बड़ी भलाई,

काम किसी के तो कुछ आई,

बनी रही दे-चार घड़ी तो किसी गले का हार.

3

अहे ! वह क्षणिक प्रेम का जोश !

सरस-सुगंधित थी तू जब तक,

बनी स्नेह-भाजन थी तब तक.

जहाँ तनिक-सी तू मुरझाई,

फेंक दी गई, दूर हटाई.

इसी प्रेम से क्या तेरा हो जाता है परितोष ?

4

बदलता पल-पल पर संसार

हृदय विश्व के साथ बदलता,

प्रेम कहाँ फिर लहे अटलता ?

इससे केवल यही सोचकर,

लेती हूँ सन्तोष हृदय भर—

मुझको भी था किया किसी ने कभी हृदय से प्यार !

विरह विषाद

(1)

चंद्र ! आते हो मृदुल प्रभात-

भू का रवि जब अञ्चल धरता,

किरण, कुसुम, कलरव से भरता

उसे, बना लेते क्यों अपना मलिन, हीन द्युति गात ?

(2)

निशा रानी का विरह विषाद ?

शोक प्रकट क्यों इतना करते ?

छिपते जाते आहें भरते.

मिलन प्रणयिनी से तो निश्चित एक दिवस के बाद !

(3)

नहीं कुछ सुनते मेरी बात ?

देव ! दुख विरह क्षणिक तुम्हें जब,

इतना होता, बतलायो अब,

धरें धैर्य्य मानव हम क्यों तब,

हो वियोग जिनका मिलना फिर दूर ? निकट ? अज्ञात !

मूक प्रेम

(1)

हमारी स्नेह मूर्ति ! कुछ बोल.

भावना के पुष्पों के हार,

गूंथ सुकुमार स्नेह के तार,

चढ़ाए मैंने तेरे द्वार,

भाए तुझे, न भाए-कह दे कुछ तो मुँह को खोल.

(2)

शास्त्र के सिद्ध, सत्य, अनमोल

वचन बतलाते युग प्राचीन

भक्त जब होता भक्ति विलीन,

श्रवण कर उसके सविनय, दीन

वचन, मूक पाषाण मूर्तियां भी पड़ती थीं बोल !

(3)

आ गया हाय ! समय अब कौन ?

हैं सजीव जो मधुर बोलतीं,

बात बात में अमृत घोलतीं,

सहज हृदय के भाव खोलतीं,

वे भी क्या भावना भक्ति से हो जायेंगी मौन !

(4)

नयन में स्नेह भरा, मत मोड़

आँख, कर प्रकटित अपना भाव,

भयकर मुझसे अधिक दुराव.

जानती अकथित प्रेम प्रभाव ?

प्रबल धार यह बाहर आती बाँध हृदय का तोड़ !

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता तेरा हार अच्छा लगा होगा जिसे हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

Image Source

Pixabay: [1]

इसे भी पढ़ें

Leave a Reply