What, When, Where And How | Ancient History Of India | New 2020

कैसे पता लगाएँ? (How to find out?)

यह जानने के लिए कि कल क्या हुआ था, तुम रेडियो सुन सकते हो, टेलीविजन देख सकते हो या फिर अखबार पढ़ सकते हो। साथ ही यह जानने के लिए कि पिछले साल क्या हुआ था, तुम किसी ऐसे व्यक्ति से बात कर सकते हो जिसे उस समय की स्मृति हो। लेकिन बहुत पहले क्या हुआ था यह कैसे जाना जा सकता है? (Ancient History Of India – Hindi Story)

अतीत के बारे में हम क्या जान सकते हैं? (What can we know about the past?)

अतीत के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है-जैसे लोग क्या खाते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, किस तरह के घरों में रहते थे? हम आखेटकों (शिकारियों), पशुपालकों, कृषकों, शासकों, व्यापारियों, पुरोहितों, शिल्पकारों, कलाकारों, संगीतकारों या फिर वैज्ञानिकों के जीवन के बारे में जानकारियां हासिल कर सकते हैं। यही नहीं हम यह भी पता कर सकते हैं कि उस समय बच्चे कौन-से खेल खेलते थे, कौन-सी कहानियां सुना करते थे, कौन-से नाटक देखा करते थे या फिर कौन-कौन से गीत गाते थे। 

लोग कहाँ रहते थे? (Where did people live?)

कई लाख वर्ष पहले से लोग इस नदी के तट पर रह रहे हैं। यहाँ रहने वाले आरंभिक लोगों में से कुछ कुशल संग्राहक थे जो आस-पास के जंगलों की विशाल संपदा से परिचित थे। अपने भोजन के लिए वे जड़ों, फलों तथा जंगल के अन्य उत्पादों का यहीं से संग्रह किया करते थे। वे जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे।

उत्तर-पश्चिम की सुलेमान और किरथर पहाड़ियों का क्षेत्र में कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ लगभग आठ हजार वर्ष पूर्व स्त्री-पुरुषों ने सबसे पहले गेहूँ तथा जौ जैसी फ़सलों को उपजाना आरंभ किया। उन्होंने भेड, बकरी और गाय-बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाना शुरू किया। ये लोग गाँवों में रहते थे। उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विंध्य पहाड़ियां ये कुछ अन्य ऐसे क्षेत्र थे जहाँ कृषि का विकास हुआ। जहाँ सबसे पहले चावल उपजाया गया वे स्थान विंध्य के उत्तर में स्थित थे। (Ancient History Of India – Hindi Story)

Ancient History Of India - Hindi Story
उपमहाद्वीप का प्राकृतिक मानचित्र (Ancient History Of India - Hindi Story)

सहायक नदियाँ उन्हें कहते हैं जो एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं। लगभग 4700 वर्ष पूर्व इन्हीं नदियों के किनारे कुछ आरंभिक नगर फले-फूले। गंगा व इसकी सहायक नदियों के किनारे तथा समुद्र तटवर्ती इलाकों में नगरों का विकास लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ।

गंगा के दक्षिण में इनके नदियों के आस-पास का क्षेत्र प्राचीन काल में ‘मगध’ (वर्तमान बिहार में) नाम से जाना जाता था। इसके शासक बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने एक विशाल राज्य स्थापित किया था। देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे राज्यों की स्थापना की गई थी।

लोगों ने सदैव उपमहाद्वीप के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक यात्रा की। कभी-कभी हिमालय जैसे ऊँचे पर्वतों, पहाड़ियों, रेगिस्तान, नदियों तथा समुद्रों के कारण यात्रा जोखिम भरी होती थी, फिर भी ये यात्रा उनके लिए असंभव नहीं थीं। अतः कभी लोग काम की तलाश में तो कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे। 

कभी-कभी सेनाएँ दूसरे क्षेत्रों पर विजय हासिल करने के लिए जाती थीं। इसके अतिरिक्त व्यापारी कभी काफ़िले में तो कभी जहाज़ों में अपने साथ मूल्यवान वस्तुएँ लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाते रहते थे। धार्मिक गुरू लोगों को शिक्षा और सलाह देते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव तथा एक कसबे से दूसरे कसबे जाया करते थे।

 कुछ लोग नए और रोचक स्थानों को खोजने की चाह में उत्सुकतावश भी यात्रा किया करते थे। इन सभी यात्राओं से लोगों को एक-दूसरे के विचारों को जानने का अवसर मिला। (Ancient History Of India – Hindi Story)

आज लोग यात्राएँ क्यों करते हैं? (Why Do People Travel Today?)

पहाड़ियाँ, पर्वत और समुद्र इस उपमहाद्वीप की प्राकृतिक सीमा का निर्माण करते हैं। हालांकि लोगों के लिए इन सीमाओं को पार करना आसान नहीं था, जिन्होंने ऐसा चाहा वे ऐसा कर सके, वे पर्वतों की ऊँचाई को छू सके तथा गहरे समुद्रों को पार कर सके। उपमहाद्वीप के बाहर से भी कुछ लोग यहाँ आए और यहीं बस गए। लोगों के इस आवागमन ने हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को समृद्ध किया। कई सौ वर्षों से लोग पत्थर को तराशने, संगीत रचने और यहाँ तक कि भोजन बनाने के नए तरीकों के बारे में एक-दूसरे के विचारों को अपनाते रहे हैं।

देश के नाम (Country Names)

अपने देश के लिए हम प्रायः इण्डिया तथा भारत जैसे नामों का प्रयोग करते हैं। इण्डिया शब्द इण्डस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है। 

लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर-पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु को हिंदोस अथवा इंदोस और इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा। 

भरत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए किया जाता था। इस समूह का उल्लेख संस्कृत की आरंभिक (लगभग 3500 वर्ष पुरानी) कृति ऋग्वेद में भी मिलता है। बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा। (Ancient History Of India – Hindi Story)

अतीत के बारे में कैसे जानें ? (How to Know About The Past?)

अतीत की जानकारी हम कई तरह से प्राप्त कर सकते हैं। इनमें से एक तरीका अतीत में लिखी गई पुस्तकों को ढूँढना और पढ़ना है। ये पुस्तकें हाथ से लिखी होने के कारण पाण्डुलिपि कही जाती हैं। अंग्रेजी में ‘पाण्डुलिपि’ के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘मैन्यूस्क्रिप्ट’ शब्द लैटिन शब्द ‘मेनू’ जिसका अर्थ हाथ है, से निकला है। ये पाण्डुलिपियाँ प्रायः ताड़पत्रों अथवा हिमालय क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष तरीके से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती हैं।

Ancient History Of India - Hindi Story
ताड़पत्रों से बनी पाण्डुलिपि का एक पृष्ठ (Ancient History Of India - Hindi Story)

यह पाण्डुलिपि लगभग एक हजार वर्ष पहले लिखी गई थी। किताब बनाने के लिए ताड़ के पत्तों को काटकर उनके अलग-अलग हिस्सों को एक साथ बाँध दिया जाता था। भूर्ज पेड़ की छाल से बनी ऐसी ही एक पाण्डुलिपि को आप यहाँ देख सकते हैं।

इतने वर्षों में इनमें से कई पाण्डुलिपियों को कीड़ों ने खा लिया तथा कुछ नष्ट कर दी गईं। फिर भी ऐसी कई पाण्डुलिपियाँ आज भी उपलब्ध हैं। प्रायः ये पाण्डुलिपियाँ मंदिरों और विहारों में प्राप्त होती हैं। इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यताओं व व्यवहारों, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों की चर्चा मिलती है। इनके अतिरिक्त हमारे यहाँ महाकाव्य, कविताएँ तथा नाटक भी हैं।

इनमें से कई संस्कृत में लिखे हुए मिलते हैं जबकि अन्य प्राकृत और तमिल में हैं। प्राकृत भाषा का प्रयोग आम लोग करते थे।

हम अभिलेखों का भी अध्ययन कर सकते हैं। ऐसे लेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किए गए मिलते हैं। कभी-कभी शासक अथवा अन्य लोग अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हें देख सकें, पढ़ सकें तथा उनका पालन कर सकें।

कुछ अन्य प्रकार के अभिलेख भी मिलते हैं जिनमें राजाओं तथा रानियों सहित अन्य स्त्री-पुरुषों ने भी अपने कार्यों के विवरण उत्कीर्ण  करवाए हैं। उदाहरण के लिए प्रायः शासक लड़ाइयों में अर्जित विजयों का लेखा- जोखा रखा करते थे। (Ancient History Of India – Hindi Story)

Ancient History Of India - Hindi Story
Ancient History Of India - Hindi Story

इसके अतिरिक्त अन्य कई वस्तुएँ अतीत में बनीं और प्रयोग में लाई जाती थीं। ऐसी वस्तुओं का अध्ययन करने वाला व्यक्ति पुरातत्त्वविद् कहलाता है। पुरातत्त्वविद् पत्थर और ईंट से बनी इमारतों के अवशेषों, चित्रों तथा मूर्तियों का अध्ययन करते हैं।

वे औज़ारों, हथियारों, बर्तनों, आभूषणों तथा सिक्कों की प्राप्ति के लिए छान-बीन तथा खुदाई भी करते हैं। इनमें से कुछ वस्तुएँ पत्थर, पकी मिट्टी तथा कुछ धातु की बनी हो सकती हैं। ऐसे तत्त्व कठोर तथा जल्दी नष्ट न होने वाले होते हैं।

पुरातत्त्वविद् जानवरों, चिड़ियों तथा मछलियों की हड्डियाँ भी ढूँढ़ते हैं। इससे उन्हें यह जानने में भी मदद मिलती है कि अतीत में लोग क्या खाते थे। वनस्पतियों के अवशेष बहुत मुश्किल से बच पाते हैं। यदि अन्न के दाने अथवा लकड़ी के टुकड़े जल जाते हैं तो वे जले हुए रूप में बचे रहते हैं।

पाण्डुलिपियों, अभिलेखों तथा पुरातत्त्व से ज्ञात जानकारियों के लिए इतिहासकार प्रायः स्रोत शब्द का प्रयोग करते हैं। इतिहासकार उन्हें कहते हैं जो अतीत का अध्ययन करते हैं। स्रोत के प्राप्त होते ही अतीत के बारे में पढ़ना बहुत रोचक हो जाता है, क्योंकि इन स्रोतों की सहायता से हम धीरे-धीरे अतीत का पुनर्निर्माण करते जाते हैं। 

अतः इतिहासकार तथा पुरातत्त्वविद् उन जासूसों की तरह हैं जो इन सभी स्रोतों का प्रयोग सुराग के रूप में कर अतीत को जानने का प्रयास करते हैं। (Ancient History Of India – Hindi Story)

अतीत, एक या अनेक? (Past, One Or Many?)

यहाँ ‘अतीत’ शब्द का प्रयोग बहुवचन के रूप में किया गया है। ऐसा इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाने के लिए किया गया है कि अलग-अलग समूह के लोगों के लिए इस अतीत के अलग-अलग मायने थे। उदाहरण के लिए पशुपालकों अथवा कृषकों का जीवन राजाओं तथा रानियों के जीवन से तथा व्यापारियों का जीवन शिल्पकारों के जीवन से बहुत भिन्न था।

जैसाकि हम आज भी देखते हैं, उस समय भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग अलग-अलग व्यवहारों और रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे।

उदाहरण के लिए आज अंडमान द्वीप के अधिकांश लोग अपना भोजन मछलियाँ पकड़ कर, शिकार करके तथा फल-फूल के संग्रह द्वारा प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत शहरों में रहने वाले लोग खाद्य आपूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करते हैं। इस तरह के भेद अतीत में भी विद्यमान थे।

इसके अतिरिक्त एक अन्य तरह का भेद है। उस समय शासक अपनी विजयों का लेखा-जोखा रखते थे। यही कारण है कि हम उन शासकों तथा उनके द्वारा लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के बारे में काफी कुछ जानते हैं। जबकि शिकारी, मछुआरे, संग्राहक, कृषक अथवा पशुपालक जैसे आम आदमी प्रायः अपने कार्यों का लेखा-जोखा नहीं रखते थे। 

पुरातत्त्व की सहायता से हमें उनके जीवन को जानने में मदद मिलती है। हालांकि अभी भी इनके बारे में बहुत कुछ जानना शेष है। (Ancient History Of India – Hindi Story)

तिथियों का मतलब (Dates mean)

अगर कोई आपसे तिथि के विषय में पूछे तो आप शायद उस दिन की तारीख, माह, वर्ष जैसे कि 2000 या इसी तरह का कोई और वर्ष बताएं। वर्ष की यह गणना ईसाई धर्म-प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म की तिथि से की जाती है।

अत: 2000 वर्ष कहने का तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष के बाद से है। ईसा मसीह के जन्म के पूर्व की सभी तिथियाँ ई.पू. (ईसा से पहले) के रूप में जानी जाती हैं। इसमें हम 2000 को अपना आरंभिक बिन्दु मानते हुए वर्तमान से पूर्व की तिथियों का उल्लेख करेंगे। (Ancient History Of India – Hindi Story)

इतिहास और तिथियाँ (History And Dates)

अंग्रेज़ी में बी.सी. (हिंदी में ई.पू.) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) होता है।

कभी-कभी तुम तिथियों से पहले ए.डी. (हिंदी में ई.) लिखा पाती हो। यह ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।

कभी-कभी ए.डी. की जगह सी.ई. तथा बी.सी. की जगह बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। सी.ई. अक्षरों का प्रयोग ‘कॉमन एरा’ तथा बी.सी.ई. का ‘बिफोर कॉमन एरा’ के लिए होता है। हम इन शब्दों का प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि विश्व के अधिकांश देशों में अब इस कैलेंडर का प्रयोग सामान्य हो गया। भारत में तिथियों के इस रूप का प्रयोग लगभग दो सौ वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।

कभी-कभी अंग्रेज़ी के बी.पी. अक्षरों का प्रयोग होता है जिसका तात्पर्य ‘बिफोर प्रेजेन्ट’ (वर्तमान से पहले) है। (Ancient History Of India – Hindi Story)

जैसाकि हमने पहले पढ़ा, अभिलेख कठोर सतहों पर उत्कीर्ण करवाए जाते हैं। इनमें से कई अभिलेख कई सौ वर्ष पूर्व लिखे गए थे। 

सभी अभिलेखों में लिपियों और भाषाओं का प्रयोग हुआ है। समय के साथ-साथ अभिलेखों में प्रयुक्त भाषाओं तथा लिपियों में बहुत बदलाव आ चुका है। विद्वान यह कैसे जान पाते हैं कि क्या लिखा था? इसका पता अज्ञात लिपि का अर्थ निकालने की एक प्रक्रिया द्वारा लगाया जा सकता है।

इस प्रकार से अज्ञात लिपि को जानने की एक प्रसिद्ध कहानी उत्तरी अफ़्रीकी देश मिस्र से मिलती है। लगभग 5000 वर्ष पूर्व यहाँ राजा-रानी रहते थे।

Ancient History Of India - Hindi Story
Ancient History Of India - Hindi Story

मिस्र के उत्तरी तट पर रोसेट्टा नाम का एक कसबा है। यहाँ से एक ऐसा उत्कीर्णित पत्थर मिला है जिस पर एक ही लेख तीन भिन्न-भिन्न भाषाओं तथा लिपियों (यूनानी तथा मिस्री लिपि के दो प्रकारों) में है।

कुछ विद्वान यूनानी भाषा पढ़ सकते थे। उन्होंने बताया कि यहाँ राजाओं तथा रानियों के नाम एक छोटे से फ्रेम में दिखाए गए हैं। इसे ‘कारतूश’ कहा जाता है।

इसके बाद विद्वानों ने यूनानी तथा मिनी संकेतों को अगल-बगल रखते हुए मिस्री अक्षरों की समानार्थक ध्वनियों की पहचान की। जैसाकि तुम देख सकते हो यहाँ एल अक्षर के लिए शेर तथा ए अक्षर के लिए चिड़िया के चित्र बने हैं।

एक बार, जब उन्होंने यह जान लिया कि विभिन्न अक्षर किनके लिए प्रयुक्त हुए हैं, तो वे आसानी से अन्य अभिलेखों को भी पढ़ सके। (Ancient History Of India – Hindi Story)

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-धन्यवाद 

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