मुखिया ने कहा, “महाराज, मैं अपने सभी साथियों से सलाह करने के बाद अपनी इच्छा बताऊँगा।” मुखिया ने साथियों से सलाह करने के बाद कहा, “महाराज! यह वरदान दीजिए कि हमारे सिर पर आज से सोने की कलगी निकल आए।”
बादशाह हँसे और बोले-“मुखिया, इसका फल क्या होगा, यह तुमने सोच लिया है?” मुखिया बोला “हाँ, महाराज! मैंने ख़ूब परामर्श करके यह वर माँगा है।”
सुलेमान ने प्रार्थना स्वीकार कर ली। सभी हुदहुदों के सिर पर सोने की कलगी निकल आई। लोगों ने सोने की कलगी को देखा, तो वे हुदहुदों के पीछे पड़ गए। तीर से उन्हें मार-मारकर सोना इकट्ठा करने लगे। हुदहुदों का वंश समाप्त होने पर आ गया।
तब मुखिया घबराकर बादशाह सुलेमान के पास पहुँचा और बोला “इस सोने की कलगी के कारण तो हमारा वंश ही समाप्त हो जाएगा।”
सुलेमान ने कहा “मैंने तो शुरू में ही तुम्हें चेतावनी दी थी। खैर, जाओ, आज से तुम्हारे सिर का ताज सोने का नहीं, सुंदर परों का हुआ करेगा।” और तभी से हुदहुदों के सिर पर परों का यह ताज (कलगी) शोभा पा रहा है।