नमस्कार दोस्तों आज मैं आपके सामने एक हिंदी कहानी फिर से लेकर आगया हूँ जिसका नाम है: बालक नानक की दयालुता. आशा करता हूँ कि आप लोगों को यह कहानी बहुत पसंद आयेगी. इसी तरह के और भी हिंदी कहानियां पढने के लिए यहाँ क्लिक करें. (Click Here)
बालक नानक की दयालुता
दरवाजे पर एक भिखारिन खड़ी थी. दरवाजा खोलकर एक बारह वर्ष का बालक बाहर आया और बोला-‘क्या बात है माई ?’
भिखारिन ने उत्तर दिया- ‘बेटा दो दिन से भूखी हूं.’
भूख तो उसे भी लगी थी, पर भिखारिन की भूख सुनकर वह विचलित हो गया. बालक ने उसे अन्दर बुलाया. उसे आदरपूर्वक बिठाया. अंदर माँ ने जो थाली उसके लिए परोसी थी, वह उसे उठा लाया. उसने उस थाली को भिखारिन के सामने रख दिया. माँ एक-एक कर रोटी देती जाती थी और वह भिखारिन की थाली में रखता जाता था. माँ समझती थी कि रोटी नानक ही खा रहा है. जब भिखारिन का पेट भर गया तो वह नानक को आशीष देकर चली गई. नानक उस थाली को उठाकर रसोई में ले गया.
थाली लौटाते हुए वह माँ से बोला- ‘मां, बस कर, मेरा पेट भर गया है. आज खाना बड़ा स्वादिष्ट बना था. मुझे ऐसा लग रहा था, मानो मैं दो दिन से भूखा था.’
माँ ने मुस्कराकर कहा-‘और ले लो बेटा, भगवान ने बहुत दिया है हमें.’
बालक ने भगवान का नाम सुना तो उसे संतोष हुआ. वह बोला-‘भगवान सबको देता है ?’
माँ ने कहा-‘हां बेटा, उसके राज्य में कोई जीव भूखा नहीं रहता.’
नानक ने माँ को भिखारिन के दो दिन भूखे रहने की बात नहीं बताई.
आज उसने कुछ नहीं खाया. माँ से आज्ञा लेकर वह अपने पिता के खेतों और बागों में घूमने निकल पड़ा. वह मन-ही-मन सोचता जा रहा था-‘ये सब खेत व बाग मेरे पिता को भगवान ने दिए हैं. ये सब तो भगवान के ही. इसलिए इन खेतों का अन्न भी भगवान का है.’
नानक ने देखा कुछ चिड़िया खेत में बिखरे दाने खा रही हैं. उसने उन्हें मारा नहीं. वह मुस्कुरा दिया. उसके मुंह से निकल पड़ा
‘रामजी की चिड़िया, रामजी का खेत,
खाओ री चिड़िया, भर-भर पेट.
यह गीत गुनगुनाता हुआ नानक शाम को घर लौटा. रात को उसे बहुत कम नींद आई. वह चिड़ियों और भिखारिन के बारे में सोचता रहा. अब तो वह भिखारियों, बीमारों और जीवों की खोज करता और उनके दुखों को दूर करने के लिए कार्य करता. उसका मन और कहीं न लगता. वह जहां भी जाता, वहीं लोगों के दुखों को देखता और उन्हें दूर करने का चेष्टा भी करता. कभी-कभी तो उसकी आँखों में आँसू भी आ जाते. वह रो पड़ता.
एक दिन नानक के पिता ने नानक को चालीस रुपए दिए और नानक से कहा-‘नानक, बेटा अब तुम बड़े हो गए हो. तुम्हें कुछ काम-धंधा करना चाहिए. ये लो चालीस रुपए और बाजार में जाकर खरा सौदा करो.’
नानक चालीस रुपए लेकर चल दिया. बाजार पहुंचने से पहले ही नानक को साधुओं की एक टोली मिली, जो दो दिनों से भूखी थी. नानक ने चालीस रुपए का भोजन उस टोली को खिला दिया. नानक खुश होकर अपने घर लौट आया. पिताजी को पूरी घटना सुनाकर नानक ने पिता से कहा-“पिताजी, आज मैंने खरा सौदा किया है.’
हृदय में दया का भाव रखने वाले बालक के लिए इससे बड़ा खरा सौदा और क्या हो सकता था. नानक का मन एक संत का मन था. उसका मन व्यापारी का मन नहीं था. दया रखने वाले बालक ही बड़े होकर महान बनते हैं.
बालक नानक की दयालुता (हिंदी कहानी)
Conclusion
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बालक नानक की दयालुता (हिंदी कहानी)
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बालक नानक की दयालुता (हिंदी कहानी)
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