Adhyay : 5 – Chanakya Niti In Hindi | Hindi Story | 7 Moral New 2020

Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story

अध्याय : 5 (Chanakya Niti In Hindi – Hindi Story)

1. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याऽभ्यागतो गुरुः।
गुरुग्नि द्विजातिनां वर्णानां ब्राह्मणे गुरुः।।

भावार्थ- इस श्लोक के द्वारा अतिथि या मेहमान ही महत्ता को बताया गया है, अतिथि सभी सांसारिक प्राणधारियों के लिए पूजक एवं सत्कार के योग्य होता है।

व्याख्या- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का गुरुदेव इष्टदेव अग्नि होता है और ब्राह्मण सभी वर्गों का गुरु यानि शिक्षक या अध्यापक होता है अतः पूजनीय है। नारियों या स्त्रियों का गुरु या जीवनसंगी उसका पति परमेश्वर होता है। अतिथि या मेहमान समस्त वर्गों या जातियों के नर-नारियों का गुरुजन यानि पूजनीय है। 

अभ्यागत या अतिथि या मेहमान वह ही होता है, जो गृहस्थी के गृह में अचानक प्रविष्ट होता है और उनका कोई भी स्वार्थ नहीं होता। वह तो अपने मेहमान का कल्याण या पूजन करना चाहता है, इसलिए आचार्य चाणक्य ने अतिथि को श्रेष्ठतम पुरुष माना है।

2. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः।
तथा चतुर्भिः पुरुष परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।

भावार्थ- किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्णय करने हेतु चार तत्त्व होते हैं, त्याग की भावना, ऊंचा चरित्र, उत्तम गुण तथा सत्कर्मों का अनुष्ठान । स्वर्ग के समान व्यक्तित्व की परख भी चार प्रकार की होती है।

व्याख्या- स्वर्ण की जांच का ज्ञान चार प्रकार से हो जाता है-कसौटी पर घिसकर काटकर तपाया तथा काट-पीटकर खरा या खोटा दोनों की पहचान की जाती है। इसी प्रकार से मनुष्य के वंश की भी परख चार प्रकार के तत्त्वों से की जाती है-त्याग, शील, गण तथा उसके द्वारा किए गए कार्यों से की जाती है।

3. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

तावद् भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं दृष्ट्वा प्रहर्तव्यमशङ्कया।।

भावार्थ- मुसीबतों के डर से न आने तक ही डरना चाहिए। डर आ जाने पर डर का डटकर संघर्ष करना चाहिए।

व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि बुद्धिमान मनष्य को तभी तक डर से घबराना चाहिए, जब तक डर उसके समक्ष उपस्थित न हो जाए, जब एक बार भय, डर, संकट कोई भी आ जाए तो उसके संग डटकर मुकाबला करना चाहिए। 

डर के आ जाने पर घबरा जाना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं होता। जब संकट सम्मुख खड़ा हो तो है होगा और देखा जाएगा’ वाले ऐसा न सोचकर उस पर प्रहार कर देना चाहिए यानि उसके उपाय के लिए शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। शक्ति से संकटों, दुःखों-बाधाओं, आपत्तियों का डटकर मुकाबला ही पुरुष की वीरता का प्रतीक है।

4. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

एकोदरसमुद्भूता एक नक्षत्रजातकाः।
न भवन्ति समाः शीले यथा बदरिकण्टकाः।। 

भावार्थ- बिल्कुल सही है कि जिस प्रकार से बेर की झाडियों पर उत्पत्तित बेर और कांटे सामान्यतः एक स्वभाव के नहीं होते हैं, ठीक उसी प्रकार एक ही समय एक ही.माता के जन्मे शिशु भी एक स्वभाव के नहीं होते।

व्याख्या- इस श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य ने कहा है कि एक नक्षत्र और एक ही मां के गर्भ से उत्पन्न जुड़वां शिशु भी एक समान स्वभाव के नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए बेर की झाड़ियों से बेर ही पैदा होते हैं और कांटे भी उत्पन्न होते हैं, मगर स्वभाव मूलत: भिन्न होता है, फल तो मनुष्य को स्वाद देते हैं, लेकिन कांटे चुभने से पीड़ा देते हैं।

5. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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निःस्पृहो नाऽधिकारी स्यान्नाकामी मण्डनप्रियः।
नाऽविदग्धः प्रियं ब्रूयात् स्फुटवक्ता न वञ्चकः।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि कभी-कभी अधिकारों के पीछे दौड़ लगाने की कोई इच्छा नहीं होती, जो किसी पद या पदार्थ के पाने की इच्छा नहीं रखता है, वह अपनी वेशभूषा के प्रति सतर्क नहीं होता। मूर्ख मनुष्य प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता तथा साफ बोलने वाला कभी कपटी, धूर्त, मक्कार तथा धोखेबाज नहीं होता। 

व्याख्या– प्रायः देखने में आया है कि महत्त्वाकांक्षी पुरुष ही अधिकारों के प्रति जागरूक रहता है तथा किसी को मिलने जाने पर या किसी को अपने गृह में बुलाने पर वेशभूषा और अपनी साज-सज्जा पर विशेष गौर रखता है, जिससे कछ लेना-देना नहीं होता, उसे साथ में किसी की भी क्या परवाह ? वह इन बातों की तरफ तवज्जो नहीं देता। 

अकुशल मनुष्य अपनी बात को मधुरतम ढंग का प्रयोग भी नहीं कर पाता या कह नहीं पाता तथा सचमुच कहने या बोलने वाला मनुष्य हृदय में कुछ भी छिपाकर नहीं रखता, वह सत्यवचन कहने का आदी रहता है। 

6. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
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मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः।
वाराऽऽङ्गनाः कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगाः।।

भावार्थ- कुछ स्वाभाविक क्रियाएं और विचार होते हैं, उनसे दूरी नहीं बनाई जा सकती। जिससे जो वंचित है, वही दूसरों में ढूंढ़ा करता है, फिर उसी से ईर्ष्या या जलता है। 

व्याख्या- इस श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यह तो जगत् का सबसे पुराना चलन है, कि पंडितों से मूर्ख सदैव ईर्ष्या रखते हैं । निर्धन या दरिद्र बड़े-बड़े धनपतियों या अमीरों से अकारण ही द्वेष भावना रखते हैं। 

वेश्याएं व्यभिचारिणी स्त्रियां सदैव पतिव्रता नारियों से तथा सौभाग्यवती नारियों से विधवाएं ईर्ष्या रखती हैं, वास्तव में होना तो यह चाहिए कि पंडित मूल् की, धनी निर्धनों की, कुल स्त्रियां वेश्याओं की ओर सौभाग्यवती स्त्रियां विधवाओं का तिरस्कार करें, परन्तु होता विपरीत है। 

वस्तुतः हीनभावना ग्रसित मनुष्य अपनी दीनता को ढकने के लिए, दूसरों पर दोषारोपण करके या उनमें दोष निकालते हैं, यही इस जगत् का चलन है।

7. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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आलस्योपहता विद्या परहस्तगताः स्त्रियः।
अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम् ।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य का मत है कि आलस्य के तथा अभ्यास की कमी से प्रायः विद्या का पतन हो जाता है। दूसरे के हाथ में पहुंचा धन कभी सहायता नहीं करता और न वापिस अपने हाथ में आता है। थोड़े बीज डाल देने से बाग फलता-फूलता नहीं तथा सेनापति के बिना सेना कभी विजयी होती नहीं।

व्याख्या- आलसी मनुष्य विद्या की रक्षा कदापि नहीं कर सकता, दूसरों के हाथ में पहुंचाया गया धन कभी आवश्यकता के समय मिलता नहीं। खेत में कम बीज डालने से खुशहाल फसल होती नहीं और सेनापति के बिना सेनाएं रणनीति बना सकती नहीं। 

स्पष्ट है कि विद्या के लिए मेहनत लगन अपेक्षित है, धन वही है जो अपने अधिकार या कब्जे में अपने पास रहे। फसल तभी खुशहाल होगी, जब उत्तम और पर्याप्त मात्रा में भूभाग में डाला जाएगा, जिसकी सेनाओं का संचालन कुशल बुद्धिमान सेनापति के हाथ में होगा, वही सेनाएं विजय पताका फहराएंगी।

8. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
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अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते।।

भावार्थ- इस श्लोक में कहा गया है कि नित्य अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। सदाचार की पनाह से वंश का नाम उज्जवल प्रकाशमान होता है, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठ होने का परिचय मिल जाता है तथा नेत्रों से क्रोध का ज्ञान हो जाता है।

व्याख्या- अभ्यास की कमी में ज्ञान प्राप्त की गई विद्या भी कण्ठस्थ नहीं होती। अभ्यास के बगैर अशिक्षित मनुष्य में आत्मविश्वास की झलक भी नहीं मिलती, इसलिए तो एक जगह पर कहा गया है कि बिना अभ्यास के अभाव में विद्या विषदंश बन जाती है या विष रसपान बन जाती है।

किसी भी वंश की प्रतिष्ठा धन-संपत्तियों से नहीं होती, अपितु आचरण की श्रेष्ठता से जानी जाती है। यदि चनपति मनुष्य का चरित्र पथभ्रष्ट है तो उसे समाज में कभी मान-सम्मान हासिल नहीं होता, ‘आर्य’ उपनाम रख लेने से कोई मनुष्य सर्वश्रेष्ठ नहीं बन जाता। 

मनुष्य की श्रेष्ठता की नाप-तौल का आधार उसके गुण होते हैं । जिस मनुष्य में उदारवादी गुणों की जितनी भी अधिकता होगी, वह व्यक्ति उतना श्रेष्ठ गुणी कहलाएगा। 

मनुष्य यत्न करने पर भी अपने मनोभावों को ढक नहीं सकता। व्यक्ति की देह के अंगों में जन्मे विकार उसके मन के भावों को उजागर कर देते हैं। इस मूल आधार पर आचार्य चाणक्य ने कहा है कि किसी अप्रिय एवं अवाञ्छनीय मनुष्य का आमना सामना हो जाने पर हृदय का रोष-आक्रोश उसके नेत्रों की विकृति से ज्ञात हो जाता है। 

इस प्रकार विद्या की रक्षार्थ हेतु अभ्यास वंश के गौरव की रक्षा के लिए शील की सुरक्षा अपेक्षित है। गुणों से मनुष्य की वास्तविक स्थिति का और नेत्रों या आंखों से मनुष्य के मनोभावों या हृदयभावों का परिचय मिल जाता है।

9. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।
मृदुना रक्ष्यते भूपः सस्त्रिया रक्ष्यते गृहम् ।। 

भावार्थ- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि धर्म की सुरक्षा धन के द्वारा, विद्या की सुरक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा राजनीति की सुरक्षा कोमल और दयापूर्ण . आचरण द्वारा तथा गृह-गृहस्थी की सुरक्षा कुलीन नारी के द्वारा होती है।

व्याख्या- यह सर्वजन विदित सच है कि सभी धर्म-कर्म धन से ही सम्पन्न हो जाते हैं। यज्ञ, योगादि, मंदिर, धर्मशाला, कूप, वापी तथा अन्यान्य समाजोपोगी एवं सार्वजनिक भवनों के निर्माण, तीर्थयात्रा और व्रतानुष्ठान आदि समस्त धर्म कर्मों के लिए धन की अपेक्षा रहती है, बिना धन के तो जीवन-रूपी गाड़ी भी नहीं चल सकती, धर्मानुष्ठान का तो फिर कहना ही क्या। 

योग का अर्थ कर्म विद्या में कौशल है. यदि कोई विद्वान मनुष्य व्यवहार-कुशल भी नहीं, लोक जीवन के निर्वाह योग्य भी नहीं तो उसका विद्या ज्ञान भी मजाक का विषय बन जाता है। कुशलता से ही विद्या की ख्याति की रक्षा होती है। 

प्रजा सम्राट को अपने पिताश्री रक्षक एवं परमेश्वर के रूप में पूजती है और उससे सदा ही अपने प्रति उदारता एवं क्षमाशीलता की आशा करती है, जब प्रजा सरकारी अफसर के अन्याय के विरुद्ध सम्राट से आवाज को बुलंद करती है, तो सम्राट का दायित्व बनता है कि प्रजा दोषी होने पर भी वह पिताश्री के समान रूप से उदारता वाला दृष्टिकोण बनाए, इसी में उसकी महिमा और गरिमा है। 

जब तक नारी अपने स्त्रीत्व पर अचल-दृढ़ रहती है, तब तक किसी पर-पुरुष का उसकी तरफ आंख उठाने का साहस नहीं बनता। यदि स्त्री ही पथभ्रष्ट हो जाए तो समस्त वंश या परिवार की इज्जत या प्रतिष्ठा मिट्टी में मिलते देर कदापि नहीं लगनी स्पष्ट है। 

धर्म पालन के लिए धन की, विद्या के गौरव हेतु सुरक्षा के लिए कार्य-कुशलता की, सम्राट की लोकप्रियता बनाए रखने के लिए कोमल आचरण की तथा परिवार के मान-सम्मान की रक्षा के लिए स्त्री का सच्चा चरित्र अनिवार्य है।

10. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा।
अन्यथा कुवचः शान्तं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य का कहना है कि वेदों के ज्ञानतत्त्व को शास्त्र विधान और सदाचार को तथा सन्तों के उत्तम चरित्र को मिथ्या कहकर कलंकित करने वाले लोक-परलोक में भारी पीड़ा पाते हैं। 

व्याख्या- मुनियों ने अनेक वर्षों की तपस्या के पश्चात् प्राप्त जिस तत्त्व ज्ञान का उजाला वेदशास्त्रों के रूप में प्रदान किया तथा जनसाधारण के कल्याणार्थ जिन आचरणों का विधान रचा उस तत्त्वज्ञान तथा आचार-परम्परा का निदिंत या विरोध कर्म करना एवं उन नि:स्पृह, तपोधर्मा, परोपकारी, साधुओं के प्रति अवज्ञा का भाव प्रकट करना, जहां मनुष्य की मूर्खता की पराकाष्ठा है, वहां परम्परागतं एवं लोकप्रतिष्ठित धर्म आचरण का उच्छेदन करके समाज को अधर्म के गहरे गर्त में धकेलना भी है। 

इसे कभी लोकहितार्थ भावना से अभिप्रेरित कर्म नहीं माना जा सकता। अत: वेदशास्त्र एवं महिमा विरोधी मनुष्य सर्वथा निन्दनीय एवं उपेक्षणीय है। समाज के व्यापक हितों की दृष्टि से ऐसे मनुष्य एक प्रकार से संकटमोचन ही होते हैं, अतः इनका त्याग करना ही समाज के भले में है। 

11. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
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दारिद्र्यनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्।
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी।। 

भावार्थ- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि दान से निर्धनता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से ज्ञान का तथा सद्भावना से भय का पता होता है।

व्याख्या- सम्पन्न मनुष्य द्वारा किए गए दान की अपेक्षाकृत अभाव मनुष्य द्वारा स्वयं अभावों को झेलते हुए दूसरों के सुख के लिए दान करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। जो मनुष्य स्वयं कष्टों को सहकर दूसरों के कष्टों का निवारण करने में जुड़ा रहता है, उसके त्याग की भावना सचमुच महत्त्वपूर्ण होती है। 

ऐसे उदार निर्धन मनुष्य के प्रति ईश्वर सहज ही द्रवित होकर उसकी निर्धनता का यथाशीघ निवारण करते हैं। सदाचार का इम्तिहान भी संकट आने पर होता है।

संकट के उपस्थित हो जाने पर अपने सदाचार की रक्षा में तत्पर मनुष्य दूसरों की दष्टि में निश्चित रूप से ही गगन से भी ऊपर उठ जाता है, उसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है, लोग उसे आदर का विशेष दर्जा देते हैं, उसे इष्ट मित्रों का सहयोग सलभ प्राप्त हो जाता है, इससे उसका संकट बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह पाता। 

जिस प्रकार प्रकाश और अंधेरा एक संग वास नहीं कर सकते, उसी प्रकार से ज्ञानअज्ञान भी एक साथ नहीं रह सकते। यदि बुद्धिमान व्यक्ति अज्ञानी मनुष्यों जैसा व्यवहार करता है तो उसे कोई बुद्धिमान नहीं कहता। तात्पर्य यह है कि उत्तम बुद्धि का कार्य ही अज्ञानता का पतन करना है। यदि अज्ञानता का नाश नहीं होता तो बुद्धि की सात्त्विकता शंका की वस्तुमात्र बनकर रह जाती है।

किसी भी प्राणी से डर की शंका का मूल कारण अविश्वास और सन्देह ही होता है। यदि एक-दूसरे के प्रति विश्वास की भावना जागृत हो जाए तो डर के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहता, उदाहरणार्थ शेर जैसे हिंसक प्राणी भी सद्भाव दिखाए जाने पर स्वामीभक्त सेवक के रूप में आचरण करते देखे जाते हैं। 

स्पष्ट है कि भय का मूल कारण दुर्भावना है और दुर्भावना को पृथक् कर ही भय के अंधेरे को मिटाया जा सकता है।

12. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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नाऽस्ति कामसमो व्याधिर्नाऽस्ति मोहसमो रिपुः।
नाऽस्ति कोपसमो वहिर्नाऽस्ति ज्ञानात् परं सुखम्।। 

भावार्थ- काम के समान कोई रोग, मोह के समान कोई दुश्मन और क्रोध के समान कोई अग्नि नहीं तथा ज्ञान से विशालतम कोई सुख नहीं है।

व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जगत् में कामवासना के सदृश कोई भयंकर रोग नहीं। काम एक ऐसा रोग है, जो मनुष्य की देह को खोखली बनाकर उसे सर्वथा अशक्त बना देता है। 

मोह, अन्धा, प्रेम जैसा जगत् में कोई दूसरा भयंकर अजेय दुश्मन नहीं। क्रोध जैसी दूसरी कोई आग नहीं जो मनुष्य को निरन्तर जलाती और राख बनाती है। 

ज्ञान से बड़ा कोई जगत् सुख नहीं कामवासना एक भयग्रस्त रोग है, मोह ऐसा शत्रु है, जिसे जीतना अत्यन्त कठिन है, क्रोध देह को भस्म करने वाली आग है और ज्ञान ही चरम सुख की प्रेरणा है।

13. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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जन्ममृत्यु हि चात्येको भुनक्त्येकः शुभाऽशुभम्।
नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्।।

भावार्थ- मनुष्य को जन्म, मौत, शुभ, अशुभ, कष्ट और मोक्ष स्वयं ही अकेले सहना पड़ता है।

व्याख्या- आचार्य चाणक्य का कहना है कि मनुष्य जगत् में अकेला ही जन्म लेता है तथा अकेला ही इस दुनिया से जाता है। उसके द्वारा कमाया धन संपत्ति, भाई-बन्धु सभी यहीं छोड़ना पड़ता है। इस जगत् में न कोई किसी के संग आता है और न जाता है। 

भला-बुरा सभी कुछ मनुष्य को अपने आप सहन करना पड़ता है, इसमें साथ कोई नहीं जाता। जग में मनुष्य पूर्व जन्म में किए अच्छे-बुरे कर्मों के अनसार अकेला ही फल भुगतता है, उसमें कोई हिस्सेदार नहीं बनता। 

सुख-दुःख में सहानुभूति रखना और उनको भुगतना दोनों ही पृथक्-पृथक् सी बातें हैं. परिवार के जो व्यक्ति, सदस्य या मित्रवर, उसके संग असविधाएं या पीडा. उठाते हैं, यह भी उनके कर्मफलों के अनुसार होता है, इस प्रकार से व्यक्ति निकृष्ट कर्मों के फलस्वरूप जिस अधोगति को प्राप्त हो जाता है उसे भी अकेला ही भुगतना पड़ता है इसके उल्टे यदि अच्छे कर्मों के लिए उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है तो उसमें भी कोई उसके संग नहीं जाता। 

ऐसी परिस्थिति में मुनष्य को धनसंपत्ति और सांसारिक मोह-माया के चक्कर में पड़ने की क्या आवश्यकता है? इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह निर्विकार भाव रूप से सांसारिक सम्बन्धों को देखे। जीवन का कल्याण इसी में निहित है।

14. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम्।
जिताऽशस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत्।।

भावार्थ- ब्रह्मज्ञानी के लिए स्वर्ग, शूरवीर के लिए जीवन, जितेन्द्रिय के .. लिए नारी और निर्लोभी के लिए जगत् तिनके के समान है।

व्याख्या- इस श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य ब्रह्मज्ञान रखता है, उसके लिए तो स्वर्ग भी तुच्छ है, क्योंकि वह स्वर्ग के सुखों की क्षणिकता और निरर्थकता से रूबरू होता है। अत: वह उसमें आसक्त नहीं होता। शूरवीर मनुष्य के लिए जीवन का कोई लालच नहीं होता क्योंकि यदि वह जी में मोह रखता है तो उसके लिए शुद्ध करना असम्भव होगा। 

वे सदैव अपनी की बाजी लगाए रखते हैं। इस प्रकार से इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाले पर के लिए नारी का कोई भी मोल या महत्त्व नहीं होता, उसका सौन्दर्य के एक लोन के अलावा और कुछ भी नहीं। इस प्रकार के नि:स्पृह मनुष्य के लिए जगत भरपूर सुन्दर खजाने तथा अन्य वस्तुएं भी तिनके के समान रूप तुच्छ होती है. ये पदार्थ उसे अपनी ओर नहीं खींच सकते।

15. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
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विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि परदेश में वास करने वाले मनुष्यों का सच्चा सखा उनकी विद्या होती है। अपने गृह में वास करने वाले के लिए उसका सच्चा मित्र प्रियतम उसकी पतिव्रता पत्नी होती है। 

रुग्ण मनुष्य का मित्र औषधि है और मृत्यु शैय्या पर लेटे मनुष्य का मित्र उसका धर्म और समस्त जीवन में किए गए सत्कर्म हैं। 

व्याख्या- परदेश में जहां मनुष्य का कोई परिचित भी मित्र नहीं होता। वहां विद्या ही उसका सदैव ऐसा परम सखा है जो उसे तनाव ग्रसता से मुक्ति प्रदान करने के अलावा राज्य का सम्मान भी दिलवाती है। 

विद्या के अलावा उसका विश्वस्त मित्र वहां और कोई नहीं होता। परिवार में जहां अनेक कलह और विवाद जन्म लेते हैं और अनेक बार धन के अभाव से समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वही पति-परायणा पत्नी ही पति की सबसे अच्छी श्रेष्ठ मित्र होती है। 

रोगी की सर्वप्रथम आवश्यकता रोग से मुक्ति पाना होती है। उसके लिए सबसे अधिक उपयोगिता औषधि की होती है, सबसे अच्छा मित्र औषधि ही है। 

आचार्य चाणक्य कहते हैं, मनुष्य जब जीवन से मुक्ति पाकर परलोक में वास करने को तैयार होता है तो केवल धर्म और सत्कर्म ही उसके संग होते हैं। जीवन समय में नहीं कर पाया तो वह अन्त काल में पीड़ित दिखाई पड़ता है।

16. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्।
वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवाऽपि च।। 

भावार्थ- वर्षा की आवश्यकता रेगिस्तान या सूखे मैदानों में पड़ती है। भोजन की आवश्यकता भूखे मनुष्य को पड़ती है, दान की आवश्यकता दरिद्र मनुष्य के लिए पड़ती है और दीपक की अवश्यकता रात्रि के अन्धकार में पड़ती है।

व्याख्या- इस श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य का मत है कि समुद्र में बादलों का वर्षा करना व्यर्थ होता है, जिसका पेट भोजन से तृप्त हो उसे भोजन कराना भी व्यर्थ होता है।

मालदार मनुष्य को दान देना उसी प्रकार से व्यर्थ होता है, जिस प्रकार दिन में (सूर्य के प्रकाश में) जलता दीपक दिखाना।

17. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्।
नास्ति चक्षुःसमं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम्।।

भावार्थ- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य के अनुसार मेघों से बरसते जल के समान कोई दूसरा स्वच्छ पानी नहीं होता। नेत्रों की ज्योति के समान दूसरा कोई उत्कृष्ट प्रकाश नहीं होता तथा अन्न के समान रूप दूसरा कोई भोजन नहीं हो सकता।

व्याख्या- क्षितिज स्थित मेघ के पानी को सर्वाधिक स्वच्छ शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक माना गया है। मनुष्य में यदि आत्मबल विद्यमान है तो बाहरी शक्तियां भी उसका संग करती हैं, इस प्रकार यदि आंखों में रोशनी है तो हम बाहर का प्रकाश भी देख सकते हैं, यदि अन्न हो तो अन्य किसी भी वस्तु से सन्तुष्टि नहीं हो सकती।

18. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।
मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का भाव यह है कि इस जग में सभी प्राणधारी किसी न किसी प्रकार के अभाव से दुखी हैं।

जो कुछ इन्हें प्राप्त है, वे उसको महत्त्व न देकर सदैव अप्राप्त वस्तु की इच्छा करते रहते हैं। 

व्याख्या- इस जगत् में यह एक सरल सत्य है कि जिस मनुष्य के पास जिस वस्तु की कमी होती है, वह उसे प्राप्त करने की कामना रखता है। उसी को अत्यधिक महत्त्व देता है। उदाहरणार्थ निर्धन मनुष्य सर्वप्रथम धन को महत्त्व देता है, वह उसकी प्राप्ति के लिए सदैव बेचैन रहता है।

पशुओं के लिए सबसे बड़ा अभाव उनकी वाणी है, वे उसे पाने की लालसा में व्याकुल रहते हैं, मनुष्य इस जग की अपेक्षाकृत स्वर्ग के सुखों की अभिलाषा करता है और स्वर्ग में वासी देवता मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।

19. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
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सत्येन धार्यते पृथिवी सत्येन तपते रविः।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्। 

भावार्थ- आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में सत्य के महत्त्व को प्रकट किया है, उन्होंने कहा है कि धरा सत्य के बल पर दृढ़ है, सत्य की ताकत से ही सूर्य में अग्नि है या तेज है। सत्य की ताकत से ही दिन-रात परिवर्तन और वायु निरन्तर बहती है, इस प्रकार से सम्पूर्ण सृष्टि सत्य पर ही विराजमान है।

व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने यहां सत्य की परिभाषा ब्रह्म से की है, उपनिषदों के अनुसार ज्ञान और अनन्त ब्रह्म का पर्याप्त सत्य है। 

चाणक्य ने यहां ईश्वर की महिमा का वर्णन किया है यानि भगवान की कृपा दृष्टि से ही धरा स्थिर है, उसकी असीम कृपा से ही सूर्य में तेज है। 

उसकी कृपा दृष्टि का फल है कि वायु की गति उत्पन्न है। वही इस जगत् का उत्पादक, संरक्षक और संहारक है। समस्त जग उसी के बल पर दृढ़ है, वह संसार का धारणकर्ता है।

20. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चलं जीवित-यौवनम्।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः।। 

भावार्थ- इस चराचर संसार में लक्ष्मी, यौवन तथा जीवन सभी कुछ नाशवान है, केवल एक धर्म ही निश्चल है।

व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि इस जगत् में लक्ष्मी का वास अस्थिर है। प्राण अनित्य रूप में है। जीवन भी सदैव साथ रहने वाला नहीं, गृह परिवार भी समाप्त होने वाली क्रिया है। 

सभी पदार्थ अनित्य और नश्वर हैं, केवल धर्म को ही सत्य और शाश्वत कह सकते हैं, इसलिए मनुष्य का दायित्व बनता है कि नश्वर संसार की अनित्य वस्तुओं में आसक्ति त्यागकर नित्य रहने वाली स्थिर धर्म का ही सेवन करें। 

सभी जानते हैं कि सभी कुछ अनित्य है, यहां तक कि हमारी देह भी। फिर भी मनुष्य शाश्वत सत्य यानि धर्म की ओर ध्यान आकृष्ट न करके नश्वर वस्तुओं की अभिलाषा करता है।

21. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

नराणां नापितो धूर्तः पक्षिणां चैव वायसः।
चतुष्पदां शृगालस्तु स्त्रीणां धूर्ता च मालिनी।। 

भावार्थ- मनुष्यों में नाई, पक्षियों में कौआ, चौपायों में सियार, नारियों में मालिन चालाक होते हैं।

व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्यजी ने कहा है कि मनुष्यों में नाई, पक्षियों में काला कौआ, पशुओं में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन को मूर्ख माना गया है। 

ये चारों बिना किसी कारण के दूसरों के कार्यों में विघ्न डालकर काम बिगाड़ते हैं, एक दूसरे से लड़ाई कराते हैं और व्यर्थ की परेशानियों में उलझाते हैं।

22. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पच्चैर्त पितरः स्मृताः।।

भावार्थ- आचार्य चाणक्य ने उपर्युक्त श्लोक में जन्म देने वाले पिता के अन्य चार अन्य पिताश्री भी बतलाए हैं, जो कि ये हैं-उपनयन, गुरुजन, अन्नदाता एवं भयों से सुरक्षा करने वाला।

व्याख्या- उपर्युक्त श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जन्म देने वाला पिताश्री तथा उपनयन संस्कार कराने वाला, गुरु जो विद्या प्रदान करता है यानि विद्यादाता गुरुजन, अन्न प्रदान करने वाला और डर से रक्षा करने वाला-ये पांच पिताश्री कहे गए हैं।

23. Adhaya Five – Chanakya Niti In Hindi – Moral Hindi Story
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )
अध्याय : 5 ( Chanakya Niti In Hindi - Hindi Story )

राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्र पत्नी तथैव च।
पत्नी माता स्वमाता च पच्चैता मातरः स्मृताः।।

भावार्थ- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य बता रहे हैं कि सम्राट की पत्नी या रानी, गुरुदेव की पत्नी और उस प्रकार से सखा की पत्नी, पत्नी की माताएं तथा अपनी पत्नी-ये पांच सिर्फ मां ही मानी गई हैं।

व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने उपर्युक्त श्लोक के द्वारा अपनी माता (जननी) के अन्य चार माताएं भी मानी गई हैं, जो ये होती हैं-राजा की रानी या पत्नी, गुरु की भार्या, पत्नी की माता (सास), मित्र की पत्नी इन पांचों के संग माता के समान व्यवहार करना चाहिए।


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-धन्यवाद 

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