
नमस्कार दोस्तों! कैसे हैं आप अभी? आशा करता हूँ कि सभी अच्छे ही होंगे।
आज मैं आप सबके सामने बहुत ही मज़ेदार कहानी लेकर आया हूँ। जिसमें बहुत हँसी आएगी और बहुत कुछ सिखने को भी मिलेगा।
तो मैं कुछ इसके बारे में बता देता हूँ, ये एक बहुत ही कंजूस आदमी की कहानी है जो कुछ ही पैसे बचने के चक्कर में खतरा मोल ले लेता है।
बहुत ही मज़ेदार कहानी है जिससे आप उभेंगे नहीं और मुझे बताइयेगा कि इस कहानी से आपको क्या सिखने को मिलता है? हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बतायें जो आपको सबसे निचे मिलेगा।
तो आज का शीर्षक है – मुफ़्त ही मुफ़्त – हिंदी कहानी (Hindi Story For Kids With Moral)
मुफ़्त ही मुफ़्त – हिंदी कहानी 2020
(Hindi Story For Kids With Moral)

एक समय की बात है, एक दिन भीखूभाई को नारियल खाने का बहुत मन हो रहा था। और वो भी ताज़ा-मुलायम, कसा हुआ, शक्कर के साथ। भीखूभाई को उसके बारे में सोचते ही अपने होठों को चटकारा और बोला, “वाह क्या कितना मीठा-मीठा स्वाद होगा इसका! मजा ही आ जायेगा।”
लेकिन वहाँ पर एक छोटी-सी समस्या भी थी। उनके घर में तो नारियल था ही नहीं। उसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी लाभुबेन से बोला, “ओहो! बहुत ही दिक्कत की बात है अब मुझे चलकर बाज़ार जाना पड़ेगा, तब जाकर मुझे ये नारियल खाने को मिलेगा।”
तभी लाभुबेन ने अपने कंधे उचकाकर उनसे बोली, “अगर नारियल खाना है तो बाजार जाना ही होगा ना। घर में नही है तो।”
वहाँ एक समस्या और भी थी। भीखूभाई ने कहा, “पर इसके लिए तो पैसे खर्च करने पड़ेंगे ना।” लाभुबेन बोली, “हाँ तो क्या पैसे तो खर्च करने ही पड़ेंगे। कोई मुफ़्त में थोड़ी ना दे देगा।”
अब तो आपलोगों को पता चल ही गया होगा कि भीखूभाई ज़रा कंजूसी करते थे। वे सीधे खेत में बूढ़े बरगद पेड़ के नीचे जा कर बैठ गए और वहाँ सोचने लगे, “मैं क्या करू? मैं क्या करूं? जिसे मेरे पैसे भी नहीं लगे और नारियल भी खा लूँ।”
मगर नारियल खाने के लिए उनका जी ऐसा ललचाया कि वे तुरंत ही घर वापस लौटकर लाभुबेन से बोले, “अच्छा, मैं बाज़ार से थोड़ा देखकर आ जाता हूँ। पता तो चले कि नारियल आजकल बाजार में कितने की बिक रही हैं।”
उन्होंने जूते पहना, छड़ी उठाई, और निकल पड़े बाज़ार की ओर। जब वे बाजार पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उस बाज़ार में सभी अपने-अपने कामों को करने में लगे हुए थे। तभी भीखूभाई ने वहाँ कुछ देखा, और दाम पूछा और देखते-पूछते, वे एक नारियल वाले के पास पहुँच गए।

“अरे ओ नारियल वाले, तुम एक नारियल कितने में बेच रहे हो?” भीखूभाई ने नारियल वाले से पूछा। तो नारियल वाले ने कहा, “बस, एक का दाम दो रुपए हैं काका।”
“बस, दो रुपए!” भीखूभाई ने अपने दोनों आँखों को फैलाते हुए कहा, “ये तो बहुत ज़्यादा दाम में बेच रहे हो। मुझे एक रुपए में एक दे दो।”
तभी नारियल वाले ने उनसे कहा, “नहीं काका नहीं। एक का दो रुपए ही सही दाम हैं। अगर आपको लेना है तो लो, नहीं तो छोड़ दो, इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है।”
“ठीक है! ठीक है!” भीखूभाई बड़बड़ाते हुए कहा। तो उन्होंने नारियल वाले से पूछा कि “अच्छा तो एक बात बताओ कि एक रुपए में नारियल कहाँ पर मिलेगा?” तो नारियल वाले ने उनसे कहा, “यहाँ से थोड़ी ही दूर जो एक मंडी है, वहाँ पर आपको मिल जाए।”
तो भीखूभाई उसी तरफ मंडी की ओर चल पड़े। उन्होंने कहा, “चलो तो देख लेते हैं कि मंडी में कैसे दे रहा है इतना महँगा कौन देता है भला। मुझे ठगने चला है।”
उन्होंने अपने आप से बोलते हुए जा रहे थे कि, “चलो टहलने का यह एक मौका है और कुछ रुपयों की बचत भी हो जाएगी।” तो खुशी से घुरघुराते हुए भीखूभाई ने अपनी छड़ी को ज़मीन पर थपथपाया और जब वे मंडी की ओर देखा तो उनकी आँख फटी की फटी रह गयी।

वहाँ मंडी में तो पूरी तरह से कोलाहल फैला हुआ था। वहाँ मंडी में व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें चारो ओर गूंज रही थीं।
तब अपने माथे का पसीना पोंछकर भीखूभाई ने मंडी के इधर-उधर ताकना शुरू किया। एक नारियल वाले को देखकर उन्होंने पूछा, “अरे ओ भाई, एक नारियल तुम कितने में बेच रहे हो और मुझे कितने की दोगे?”
“सिर्फ एक रुपये में एक, मालिक,” नारियल वाले ने जवाब दिया, “जो चाहो वो आप यहाँ से ले जाओ। जल्दी।”
तभी नारियल वाले से भीखूभाई ने कहा, “यह क्या कह रहे हो तुम? मैं जो इतनी दूर से तुम्हारे पास आया हूँ और तुम मुझसे इसका पूरा एक रुपया माँग रहे हो। ये तो बहुत ज्यादा माँग रहे हो तुम। इसके तो पचास पैसे ही काफ़ी हैं। मैं इस एक नारियल को लेता हूँ और तुम, ये लो, पचास पैसे।”
तभी नारियल वाले ने झट से भीखूभाई के हाथ से वो नारियल को छीन लिया और उनसे बोला कि, “माफ़ करो, मालिक! इसका एक रुपया दो या फिर चले जाओ।”
लेकिन भीखूभाई का निराश चेहरा को देखकर नारियल वाले ने उनसे बोला, “आप बंदरगाह पर जाकर देख सकते हैं, तो हो सकता है वहाँ आपको पचास पैसे में दे दे।”

तब भीखूभाई अपनी छड़ी से टेक लगाकर सोचा, “ये पचास पैसे तो पूरे पचास पैसे हैं। वैसे भी मेरी टाँगों में अभी भी इतना दम है की मैं अभी भी उतना दूर चल कर जा सकूँ।”
अपने पैरों को घसीटते हुए, भीखूभाई उसी दिशा में चलना शुरू कर दिया। वो हर दो कदम पर रुक जाते और अपनी पॉकेट में से बड़ा सा ऊजला रुमाल निकालकर, वे अपना पसीने को पोंछते हुए चले जा रहे थें।
तभी सागर के पास जब वे पहुँचे तो सागर किनारे एक नाववाला बैठा मिला। नारियाल वाले के सामने सिर्फ दो-चार नारियल ही पड़े हुए थे।
“अरे भाई, मुझे एक नारियल कितने पैसे में दोगे?” नारियल को उन्होंने देखा, तब भीखूभाई ने कहा कि, “ये तो काफी अच्छे दिखते हैं। कितने की बेच रहे हो तुम?”
“काका, यह भी कोई पूछने वाली बात होती है? एक नारियल का केवल पचास पैसे” नाववाले ने कहा।
“पचास पैसे!” मानो भीखूभाई हैरानी से हक्के-बक्के हो गए हो। “मैं जो इतनी दूर से पैदल आया हूँ और इतना थक भी गया हूँ और, तुम कहते हो एक का पचास पैसे पड़ेगा? तो मेरी मेहनत तो बेकार ही हो गई। नहीं भाई नहीं! ये पचास पैसे तो बहुत ही ज्यादा है। मैं तुम्हें एक नारियल के सिर्फ पच्चीस पैसे दूंगा। यह लो पैसे और रख लो।”
ऐसा कहते हुए, भीखूभाई झुककर नारियल उठाने ही वाले थे कि तभी नाव वाले ने कहा, “आप इसे नीचे रख दो काका। यहाँ मेरे साथ कोई सौदाबाजी नहीं चलेगी।”
नाव वाले ने थोड़ी देर बाद भीखूभाई की ओर ध्यान से देखा और बहुत ही ठंडे दिमाग से उसने बोला, “क्या आपको सस्ते में चाहिए? तो आप नारियल के बगीचे में चले जाओ। वहाँ पर आपको बहुत सारे मिल जाएँगे, और मनपसंद दाम में मिल जायेंगे।”
तो भीखूभाई ने फिर अपने आप को समझाया कि, “मैं इतनी दूर से यहाँ आया हूँ। तो अब बगीचे तक जाने में दिक्कत ही क्या है?” लेकिन सच बात तो यह थी कि वे बहुत ही थक गए थे। लेकिन पैसे बचाने के चक्कर में उनमें बहुत तेजी से फुर्ती आ गई थी।
तभी भीखूभाई ने सोचा कि, “मुझे तो यहाँ से दोगुना ज़्यादा चलना पड़ेगा, लेकिन इससे मेरे चार आने बच भी तो जाएँगे और फिर भी कोई चीज़ मुफ़्त में थोरे ना मिलती है?”
ऐसे ही सोचते-सोचते भीखूभाई नारियल के बहुत बड़े बगीचे में जा पहुँचे। उन्होंने वहाँ के माली को देखकर माली से पूछा कि, “यह नारियल तुम कितने में बेच रहे हो?”
तो माली ने उनको जवाब दिया, “आपको जो पसंद आए ले आप ले सकते हो, काका, बस, पच्चीस पैसे का एक पड़ेगा। देखो, कितने बड़े-बड़े नारियल हैं!”
“हे भगवान! पच्चीस पैसे! मेरे पूरा रास्ता पैदल यहाँ आने के बाद भी! मेरे जूते घिस गए है, मेरे पैर भी थक गए और अब मुझे तुम्हें पैसे भी देने पड़ेंगे? तुम मेरी बात मानो, मुझे तुम एक नारियल मुफ्त में ही दे दो, हाँ। देखो, मैं कितना थक गया हूँ यहाँ आते आते! हालत खराब हो गयी है मेरे तो।”
तभी भीखूभाई की बात सुनकर वहाँ के माली ने उनसे कहा, “अरे, काका आप भी ना। आपको नारियल मुफ़्त में चाहिए ना? तो यह रहा नारियल का पेड़ और वह रहा आपका नारियल। आप पेड़ पर चढ़ जाओ और आपको जितना लेने का मन हो उतना तोड़ लो। वहाँ पर नारियल की कोई कमी ही नहीं है। यहाँ पैसे तो मेहनत के लगते हैं।”
“क्या सच में? मैं जितना चाहूँ उतना ले सकता हूँ?” तभी तो भीखूभाई खुशी से फूले न समा पा रहे थे। और उन्होंने अपने आप से बोला कि, “मेरा यहाँ तक आना जरा सा भी बेकार नहीं गया! मुफ़्त ही मुफ़्त मिलेगा।”
उन्होंने झट से जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया। पेड़ पर चढ़ते-चढ़ते उन्होंने सोचा कि, “बहुत अच्छे! मेरी तो किस्मत ही खुल गई। जितने नारियल चाहे उतना मैं तोड़ सकता हूँ और पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे। वाह! क्या बात है!”
ऐसे ही सोचते सोचते भीखूभाई ऊपर नारियल के पर पहुँच गए। फिर वे वहाँ पर टहनी और तने के बीच बहुत ही आराम से बैठ गए और अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाने लगे क्योंकि उनको वहाँ की सबसे बड़ी नारियल जो तोड़नी थी। तभी उनका जज़्क से पैर फिसल गया। तभी भीखूभाई ने एकदम से नारियल को पकड़ लिया और वहाँ हवा में झूलने लगे।
“ओ माँ! अब मैं क्या करूँ?” भीखभाई चिल्लाने लगे, “अरे भाई! कोई है? मेरी मदद करो कोई!” उन्होंने नीचे खड़े वहीं के माली से विनती करने लगे।

तो माली ने उनसे कहा, “ये मेरा काम नहीं है, काका। मैंने आपसे सिर्फ नारियल लेने की बात की थी। उसके बाद सब तुम्हारे और तुम्हारे नारियल के बीच का मामला है। पैसे नहीं हैं, खरीदना नहीं है, बेचना नहीं है, और मदद भी नहीं करनी है। वहाँ सब कुछ मुफ़्त में है।” तभी ऊँट पर सवार एक आदमी वहाँ से गुज़र रहा था।
“अरे ओ!” भीखूभाई उस ऊँट वाले को ज़ोर-ज़ोर से बुलाने लगे, “ओ ऊँट वाले! मेरे पैर वापस इस पेड़ पर टिका दोगे क्या? तो आपकी बहुत बड़ी मेहरबानी होगी।”
तो ऊँटवाले ने सोचा कि, “चलो, इसकी मदद कर देता हूँ। इसमें मेरा क्या जाता है।”
तो ऊँट वाला ऊँट की पीठ पर खड़े होकर भीखूभाई के पैरों को पकड़ लिया। और ठीक उसी वक़्त ऊँट को वहाँ हरे-हरे पत्ते नज़र आए और पत्ते को खाने के लालच में ऊँट ने अपनी गर्दन झुकाई और अपनी जगह से हट गया।

बस अब क्या था? वह आदमी उस ऊँट की पीठ से फिसल गया। अब वह अपनी जान बचाने के लिए उसने भीखूभाई के पैरों को जोड़ से पकड़ लिया। और अब दोनों क्या ही करते? इतने में वहाँ से एक घुड़सवार गुजड़ रहा था।
पेड़ से लटके दोनों पुकारने लगे। “अरे ओ भाई,सुनो भाई, कोई बचाओ मुझे! बचाओ! घुड़सवार को देखकर भीखूभाई ने दुहाई दी, “ओ मेरे भाई, मुझे पेड़ पर वापस पहुँचा दो।”
“हाँ! एक मिनट भी नहीं लगेगा, तुरंत हो जायेगा। मैं घोड़े की पीठ पर चढ़कर इनकी दोनों की मदद कर देता हूँ।” यह सोचकर घुड़सवार अपने घोड़े पर उठ खड़ा हुआ।
लेकिन कौन कहता है कि घोड़ा ऊँट से बेहतर है? हरी-हरी घास दिखाई देने पर तो दोनों एक जैसे ही हैं। घास के चक्कर में घोड़ा ज़रा आगे बढ़ा और छोड़ चला अपने मालिक को ऊँटवाले के पैरों से लटकते हुए। एक, दो और अब तीनों के तीनों-झूलते रहे नारियल के पेड़ से।
“काका! काका! कसके पकड़े रहना, हाँ”, घुड़सवार ने पसीना-पसीना होते हुए कहा, “जब तक कोई बचाने वाला न आए, कहीं छोड़ न देना। मैं आपको सौ रुपए दूंगा।”
“काका! काका!” अब ऊँटवाले की बारी थी। “मैं आपको दो सौ रुपए दूंगा, लेकिन नारियल को छोड़ना नहीं।”

“सौ और दो सौ! बाप रे बाप, तीन सौ रुपए!” भीखूभाई का सिर चकरा गया। “इतना! इतना सारा पैसा!” खुशी से उन्होंने अपनी दोनों बाहों को फैलाया… और नारियल गया हाथ से छूट। और धड़ाम से तीनों ज़मीन पर गिरे-घुड़सवार, ऊँटवाला और भीखूभाई।
भीखूभाई अपने आप को सँभाल ही रहे थे कि तभी एक बहुत बड़ा नारियल उनके सिर पर आ फूटा। वो भी बिल्कुल मुफ़्त ही मुफ़्त।
तो आज कैसी लगी आपको ये कहानी? और क्या सब सिखने को मिला इस कहानी से ये भी जरुर बतायें। कमेंट बॉक्स आपको सबसे निचे मिलेगा। अपना सुझाव हमें जरुर से जरुर दें।
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-धन्यवाद
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बहुते मजेदार रहा
बहुतें मजेदार कहानी रहा