Short Hindi Story For Kids New 2020

Short Hindi Story For Kids | Hindi Story For Child | Child Story

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दोस्त की पोशाक

एक बार नसीरूद्दीन अपने बहुत पुराने दोस्त जमाल साहब से मिले। अपने पुराने दोस्त से मिलकर वे बड़े खुश हुए। कुछ देर गपशप करने के बाद उन्होंने कहा, “चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएँ।”

जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया और कहा, “अपनी इस मामूली सी पोशाक में मैं लोगों से नहीं मिल सकता।”

नसीरूद्दीन ने कहा, “बस इतनी सी बात!” नसीरूद्दीन तुरंत उनके लिए अपनी एक भड़कीली अचकन निकाल कर लाए और कहा, “इसे पहन लो। इसमें तुम खूब अच्छे लगोगे। सब देखते रह जाएँगे।” बनठन कर दोनों घूमने निकले।

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दोस्त को लेकर नसीरूद्दीन पड़ोसी के घर गए। नसीरूद्दीन ने पड़ोसी से कहा, “ये हैं मेरे खास दोस्त, जमाल साहब। आज कई सालों बाद इनसे मुलाकात हुई है। वैसे जो अचकन इन्होंने पहन रखी है, वह मेरी है।”

यह सुनकर जमाल साहब पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। बाहर निकलते ही मुँह बनाकर उन्होंने नसीरूद्दीन से कहा, “तुम्हारी कैसी अकल है! क्या यह बताना ज़रूरी था कि यह अचकन तुम्हारी है? तुम्हारा पड़ोसी सोच रहा होगा कि मेरे पास अपने कपड़े हैं ही नहीं।”

नसीरूद्दीन ने माफ़ी माँगते हुए कहा, “गलती हो गई। अब ऐसा नहीं कहूँगा।”

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अब नसीरूद्दीन उन्हें हुसैन साहब से मिलवाने ले गए। हुसैन साहब ने गर्मजोशी से उनका स्वागत सत्कार किया। जब जमाल साहब के बारे में पूछा तो नसीरूद्दीन ने कहा, “जमाल साहब मेरे पुराने दोस्त हैं और इन्होंने जो अचकन पहनी है वह इनकी अपनी ही है।”

जमाल साहब फिर नाराज हो गए। बाहर आकर बोले, “झूठ बोलने को किसने कहा था तुमसे?”

“क्यों?” नसीरूद्दीन ने कहा, “तुमने जैसा चाहा, मैंने वैसा ही तो कहा।” 
“पोशाक की बात कहे बिना काम नहीं चलता क्या? उसके बारे में न कहना ही अच्छा है”, जमाल साहब ने समझाया।

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जमाल साहब को लेकर नसीरूद्दीन आगे बढ़े। तभी एक अन्य पड़ोसी मिल गए। नसीरूद्दीन ने जमाल साहब का परिचय उनसे करवाया, “मैं आपका परिचय अपने पुराने दोस्त से करवा दूं। यह हैं जमाल साहब और इन्होंने जो अचकन पहनी है उसके बारे में मैं चुप ही रहूँ तो अच्छा है।”

नसीरुद्दीन का निशाना 

एक दिन नसीरूद्दीन अपने दोस्तों के साथ बैठे बतिया रहे थे। बात ही बात में उन्होंने गप्प मारना शुरू कर दिया, “तीरंदाज़ी में मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। मैं धनुष कसता हूँ, निशाना साधता हूँ और तीर छोड़ता हूँ, शूं … ऊँ… ऊँ। तीर सीधे निशाने पर लगता है।”

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दोस्तों को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नसीरूद्दीन की परीक्षा लेने का फैसला किया। एक दोस्त भागा-भागा गया और तीर-धनुष खरीदकर ले आया। नसीरूद्दीन को थमाते हुए उसने कहा, “ये लो तीर-धनुष और अब साधो अपना निशाना उस लक्ष्य पर। देखते हैं कि तुम सच बोल रहे हो या झूठ।”

नसीरूद्दीन फँस गए। उन्होंने धनुष अपने हाथों में उठाया, डोर खींची, निशाना साधा और छोड़ दिया तीर को।

शूं… ऊँ… ऊँ…।

तीर निशाने पर नहीं लगा। बल्कि वह तो बीच में ही कहीं गिर गया। “हा! हा! हा! हा! हा!” सभी दोस्त हँसने लगे।

“क्या यही तुम्हारा बेहतरीन निशाना था?” उन्होंने कहा।

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“नहीं, नहीं! हरगिज़ नहीं! यह तो काज़ी का निशाना था। मैं तो तुम्हें दिखा रहा था कि काज़ी कैसे निशाना लगाता है”, इतना कहते हुए नसीरूद्दीन ने दुबारा धनुष उठाया, डोर खींची, निशाना साधा और तीर को छोड़ दिया।

छू… ऊँ… ऊँ…।

इस बार तीर पहले वाले तीर से तो थोड़ा आगे गिरा पर निशाना फिर भी चूक गया। दोस्तों ने कहा, “यह तो ज़रूर तुम्हारा ही निशाना था नसीरूद्दीन।”

“बिल्कुल नहीं”, नसीरूद्दीन ने कहा, “यह मेरा नहीं, सेनापति का निशाना था।”

एक दोस्त ने ताना कसा, “सूची में अब अगला कौन है?” इतना सुनते ही सबने जमकर ठहाका लगाया। नसीरूद्दीन खामोश रहा। उसने चुपचाप एक और तीर उठाया। नसीरूद्दीन ने एक बार फिर तीर चलाया।

शूं… ऊँ… ॐ… !

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इस बार तीर ठीक निशाने पर लग गया। सभी आश्चर्य से नसीरूद्दीन की ओर मुँह बाए ताकने लगे। इससे पहले कि कोई कुछ कह पाता नसीरूद्दीन ने एक विजेता के अंदाज़ में कहा, “देखा तुमने! यह था मेरा निशाना।”

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-धन्यवाद 

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