तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.

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तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता
तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था
हमें है याद वह चेहरा भला-भला-सा था

नज़र ढली है हमारी कुछ ऐसे सांचे में
कि रहज़न को भी देखा तो रहनुमा-सा था

तुम्हारे शहर में जिस हुक्मरां का चर्चा था
वो हुक्मरां भी सुना है कि बेहया-सा था

तो कौन आग थी जिसने ये कहर ढाया है
तमाम शहर में हर शख्स दिलजला-सा था

खता मुआफ़ कि हमको भी ये बात कहनी है
सुना जो आज तलक महज़ इक दिलासा था

पहाड़ हो कि नदी फांदते चले जाओ
यही तो जी में हमारे भी वलवला-सा था

तुम्हारी बात में ‘रहबर’ असर न क्यों होता
हर इक लफ़्ज तुम्हारा खरा-खरा सा था

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता तलाश करते हैं उसको जो हमनवा-सा था अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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