उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता
उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है.
क्यों मुंह का मीठा वो न हो जब पेशा ही बटमारी है.

रूप कोई भी भर लेता है पांचों घी में रखने को,
तू इसको होशियारी कहता लोग कहें अय्यारी है.

जनता को जो भीड़ बताते मंझधार में डूबेंगे,
कागज़ की है नैया उनकी शोहरत भी अखबारी है.

सुनकर चुप हो जाने वाले बात की तह तक पहुंचे हैं,
कौवे को कौवा नहीं कहते यह उनकी लाचारी है.

पेड़ के पत्ते गिनने वालो तुम ‘रहबर’ को क्या जानो,
कपड़ा-लत्ता जैसा भी हो बात तो उसकी भारी है.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता उसका भरोसा क्या यारो वो शब्दों का व्यापारी है अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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