हार-जीत | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “हार-जीत” लेकर आया हूँ और इस कविता को अशोक वाजपेयी (Ashok Bajpayee) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

हार-जीत | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता
हार-जीत | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

हार-जीत | अशोक वाजपेयी | हिंदी कविता

वे उत्सव मना रहे हैं.

सारे शहर में रोशनी की जा रही है.

उन्हें बताया गया है कि

उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं.

नागरिकों में से ज्यादातर को पता नहीं है कि

किस युद्ध में उनकी सेना और शासक गए थे,

युद्ध किस बात पर था.

यह भी नहीं कि शत्रु कौन था

पर वे विजयपर्व मनाने की तैयारी में व्यस्त हैं.

उन्हें सिर्फ इतना पता है कि

उनकी विजय हुई.

उनकी से आशय क्या है

यह भी स्पष्ट नहीं है :

किसकी विजय हुई सेना की,

कि शासक की,

कि नागरिकों की ?

किसी के पास पूछने

का अवकाश नहीं है.

नागरिकों को नहीं पता कि

कितने सैनिक गए थे

और कितने विजयी वापस आ रहे हैं.

खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है.

सिर्फ एक बूढ़ा मशकवाला है

जो सड़कों को सींचते हुए कह रहा है कि

हम एक बार फिर हार गए हैं

और गाजे-बाजे के साथ

जीत नहीं हार लौट रही है.

उस पर कोई ध्यान नहीं देता है

और अच्छा यह है कि

उस पर सड़कें सींचने भर की जिम्मेवारी है,

सच को दर्ज करने या बोलने की नहीं.

जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं.

Image Sources: amarujala

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “हार-जीत” अच्छा लगा होगा जिसे अशोक वाजपेयी (Ashok Bajpayee) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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