नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “स्याही का बूँद” लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.
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स्याही का बूँद – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता
गीत लिखती थी मैं उनके
अचानक, यह स्याही का बूँद
लेखनी से गिरकर, सुकुमार
गोल तारा-सा नभ से कूद,
सोधने को क्या स्वर का तार
सजनि, आया है मेरे पास ?
अर्ध निद्रित-सा, विस्मृत-सा,
न जागृत-सा, न विमूर्छित-सा,
अर्ध जीवित-सा औ’ मृत-सा,
न हर्षित-सा, न विषमित-सा,
गिरा का है क्या यह परिहास ?
एकटक, पागल-सा यह आज;
अपरिचित-सा, वाचक-सा कौन
यहाँ आया छिप-छिप निव्यजि,
मुग्ध-सा, चिन्तित-सा, जड़ मौन,
सजनि, यह कौतुक है या रास !
योग का-सा यह नीरव तार,
ब्रह्म माया का-सा संसार,
सिन्धु-सा घट में, -यह उपहार
कल्पना ने क्या दिया अपार,
कली में छिपा वसंत विकास !
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “स्याही का बूँद” अच्छा लगा होगा जिसे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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Pixabay: [1]
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