छाया काल | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) छाया काल लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

छाया काल - सुमित्रानंदन पंत - हिन्दी कविता
छाया काल – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता

छाया काल – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता

स्वस्ति, जीवन के छाया काल.
सुप्त स्वप्नों के सजग सकाल!
मूक मानस के मुखर मराल!
स्वस्ति, मेरे कवि बाल!

तुम्हारा मानस था सोच्छ्वास,
अलस पलकों में स्वप्न विलास;
आँसुओं की आँखों में प्यास,
गिरा में था मधुमास!

बदलता बादल- सा नित वेश
तुम्हारा जग था छाया शेष;
निशा, अपलक नक्षत्रोन्मेष,
दिवस, छवि का परिवेश !

दिव्य हो भोला बालापन,
नव्य जीवन, पर, परिवर्तन,
स्वस्ति, मेरे अनंग नूतन !
पुरातन मदन दहन.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता छाया काल अच्छा लगा होगा जिसे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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