प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें

नमस्कार दोस्तों! आज मैं आपके लिए प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi) लेकर आया हूँ. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कविता पढने की इच्छा हो तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)
प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन ज्यों काव्य सरल
भाई -बहनें ज्यों गीत- गजल

रक्षा बंधन है एक नदी
बहनें लहरें हैं, भाई जल

रक्षाबंधन खुशियों की खनक
बहनें रौनक, भाई संबल

रक्षा बंधन सुख का मौसम
बहनें बारिश, भाई बादल

रक्षाबंधन आँखों की तरह
बहनें दृष्टी, भाई काजल

नये वर्ष की नई सुबह

जीभ, मधुर फुलवारी रख.
कोमलता की क्यारी रख.
नये वर्ष की नई सुबह
शुभता की तैयारी रख.
सुख का साधक बन लेकिन
दुखियों से भी यारी रख.
मातृ -भूमि के चरणों में
तन, मन, पूंजी सारी रख.
वन है धरती की गर्दन
गर्दन पर मत आरी रख.
मिट्टी, पंछी, नदी बचा
पुण्य-कर्म यह जारी रख.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

अपना ही गणतंत्र है बंधु

अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘गांव का ग्वाला’ जैसा,
कभी ‘शहर की बाला’ जैसा,
कभी ‘जीभ पर ताला’ जैसा,
कभी ‘शोर की शाला’ जैसा,
रुकता-चलता यंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘पांव का छाला’ जैसा,
कभी ‘पांव का छाला’ जैसा,
कभी ‘एकदम आला’ जैसा,
‘उत्सव का उजियाला’ जैसा,
खट्टा मीठा तंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु !

कभी ‘धनिक का माली’ जैसा,
कभी ‘श्रमिक की थाली’ जैसा,
कभी ‘भोर की लाली’ जैसा
कभी ‘अमावस काली’ जैसा,
साझे का संयंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘जाप की माला’ जैसा,
कभी ‘प्रेम का प्याला’ जैसा,
‘बच्चन की मधुशाला’ जैसा,
‘धूमिल और निराला’ जैसा,
जन-गण-मन का मंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

चांद हैं, आफताब हैं बच्चे

चांद हैं, आफताब हैं बच्चे.
रोशनी की किताब हैं बच्चे.

अपने स्कूल जब ये जाते हैं,
ऐसा लगता गुलाब हैं बच्चे.

व्यास, सतलज सरीखे दरिया हैं,
रावी, झेलम, चिनाब हैं बच्चे.

अपनी मस्ती की राजधानी में,
अपने मन के नबाब हैं बच्चे.

जब कभी भी ये खिलखिलाते हैं,
ऐसा लगता रबाब हैं बच्चे.

जिनको संस्कार शुभ मिले हैं वे,
हर जगह कामयाब हैं बच्चे.

क्या फरिश्ते किसी ने देखे हैं?
कितना अच्छा जवाब हैं बच्चे.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

बाप

पर्वत – शिखर – सा बाप, है सिंधु सा गहन भी,
रिश्तों को निभाता है, निभाता है वचन भी.
झिड़की भी,नसीहत भी, मृदुल-मीठी डांट भी,
बच्चों के लिए बाप दुआओं का चमन भी.
परिवार के हित के लिए पीड़ा की पोटली,
नित बाप उठाता भी है,करता है वहन भी.
तूफान तनावों के मुस्कुराके झेलता,
माथे पे बाप के न कभी पड़ती शिकन भी.
यूं तो चलन समाज का माना है बाप ने,
बच्चों की खुशी के लिए तोड़ा है चलन भी.
हो सकता है अपवाद कहीं बाप, परंतु,
सच ये है बाप मित्र भी, सुख-चेन, अमन भी.
बच्चों के लिए आहुति देता है स्वयं की,
‘होता’ भी है, ‘हविष्य’ भी, खुद बाप ‘हवन’ भी.

घर-आंगन में दीप जलाकर

घर-आंगन में दीप जलाकर,
रचती है रांगोली बिटिया.

शुभ-मंगल की ‘मौली’ बिटिया,
हल्दी-कुमकुम – रौली बिटिया.
ईद, दीवाली, क्रिसमस जैसी,
हंसी-खुशी की झोली बिटिया.
सखी सहेली से घुल-मिलकर,
करती ऑख-मिचौली बिटिया
घर – आंगन में दीप जलाकर,
रचती है रांगोली बिटिया.

मन ही मन बांते करती है,
सीधी-सादी भोली बिटिया.
‘नहीं भ्रूण-हत्या हो मेरी’
‘मुझे बचाओ’ बोली बिटिया.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

गायब है गोरैया

चेतन-चिंतन ‘चह-चह’ का लेकर आती थी,
कुदरती घड़ी की ‘घंटी सदृश’ जगाती थी,
खिड़की से, कभी झरोखे से घुसकर घर में,
भैरवी जागरण की जो सुबह सुनाती थी,
गायब है गोरैया, खोजें, फिर घर लाएं.
रुठी है तो मनुहार करें, हम समझाएं.

गोरैया की चह-चह में मोहक गीत छिपा,
मीठा-मीठा सा राग छिपा, मनमीत छिपा,
कुदरती गायिका गोरैया की लय में तो,
ऐसा लगता जैसे सूफी-संगीत छिपा,
गोरैया के प्रति प्रेम-समपर्ण दिखलाएं.
रूठी है तो मनुहार करें, हम समझाएं.

गोरैया है चिड़िया, किंतु संदेश भी है,
गोरैया उल्लास, उमंग, उन्मेष भी है,
‘तिनका-तिनका गूथों तो घर बन जाएगा’,
गोरैया कोशिश का नीति-निर्देश भी है,
घर आने का उसको न्यौता देकर आएं.
रुठी है तो मनुहार करें हम समझाएं.

मां

मां बच्चों को सदा बचाती,
दुविधा-दिक्कत, कोप-कहर से.
बुरी नजर ‘छू-मंतर’ होती,
मां की ममता भरी नजर से.

बच्चों की खुशियों की खातिर,
मां ने मन्नत मान रखी है.
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे से,
और साथ में गिरजाघर से.

रोजगार के लिए सुबह जब,
शहर चले जाते हैं बच्चे.
मां तक तक पथ तकती रहती,
जब तक लौटें नहीं शहर से.

घर में मां है इसका मतलब,
दया का दरिया है घर में.
सदा स्नेह के मोती मिलते,
इस दरिया की लहर-लहर से.

जिसके साथ दुआ है मां की,
उसको मंजिलमिल जाती है.
चाहे समतल राह से गुजरे,
चाहे गुजरे कठिन डगर से.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

सत्य की जीत

दशहरा का तात्पर्य, सदा सत्य की जीत.
गढ़ टूटेगा झूठ का, करें सत्य से प्रीत.

सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल.
बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल.

क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली अत्याचार
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार.

राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य.
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य.

वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार.
दशहरा पर करें, हम इसका संहार.

वसंत

रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है
मन में न हो खटास तो समझो वसंत है.

आँतों में किसी के भी न हो भूख से ऐंठन
रोटी हो सबके पास तो समझो वसंत है.

दहशत से रहीं मौन जो किलकारियाँ उनके
होंठों पे हो सुहास तो समझो वसंत है.

खुशहाली न सीमित रहे कुछ खास घरों तक
जन-जन का हो विकास तो समझो वसंत है.

सब पेड़-पौधे अस्ल में वन का लिबास हैं
छीनों न ये लिबास तो समझो वसंत है.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

देश का गौरव मध्यप्रदेश

महाकाल की महिमा पावन
उज्जैनी शिप्रा मनभावन
कालिदास का कविता-कानन
सांदीपनि का शिक्षण- आसन
कृष्ण की कथा कहे परिवेश
देश का गौरव मध्यप्रदेश.

नदी नर्मदा,शिवना, चंबल
परशुराम का परशु, कमंडल
शुभ्र सतपुड़ा के सब जंगल
हरियाली ज्यों मॉ का ऑचल
विंध्याचल यानी उन्मेष,
देश का गौरव मध्यप्रदेश.

है भोपाल, ताल की बस्ती
जहॉ समन्वय-छटा विहंसती
नगर अहिल्या की भी हस्ती
तानसेन की अपनी मस्ती,
सरलता वनवासी- संदेश,
देश का गौरव मध्यप्रदेश

बेटियां शुभकामनाएं हैं

बेटियां शुभकामनाएं हैं,
बेटियां पावन दुआएं हैं.
बेटियां जीनत हदीसों की,
बेटियां जातक कथाएं हैं.

बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी,
बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं.
जिनमें खुद भगवान बसता है,
बेटियां वे वन्दनाएं हैं.

त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की
बेटियां गौरव कथाएं हैं.
मुस्कुरा के पीर पीती हैं,
बेटी हर्षित व्यथाएं हैं.

लू-लपट को दूर करती हैं,
बेटियाँ जल की घटाएं हैं.
दुर्दिनों के दौर में देखा,
बेटियां संवेदनाएं हैं.

गर्म झोंके बने रहे बेटे,
बेटियां ठंडी हवाएं हैं.

प्रो. अजहर हाशमी की हिंदी कवितायें (Hindi Poems of Prof. Azhar Hashmi)

नदी – जंगल बचे रहेंगे तो

न तो काटें, न कटने दें जंगल,
तब ही दुनिया को मिल सकेगा जल.
जंगलो का हरा – भरा रहना,
जैसे धरती पे नीर के बादल.
वन की ‘हरियाली’ से ही तो नदियां
अपनी आंखों में आंजती ‘काजल’,

बहती नदिया धरा की धड़कन है
यानी धरती का दिल सघन जंगल
नदी – जंगल बचे रहेगे तो
लाभ – शुभ – स्वास्थ्य, सर्वदा मंगल.

Conclusion

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