हम पंछी उन्मुक्त गगन के – हिंदी कविता: नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने एक हिंदी कविता पेश करने जा रहा हूँ. उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों को हमारा या पोस्ट अच्छा लगेगा. इस कविता का नाम है- “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” और इस कविता को शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी ने लिखा है. तो शुरू करते हैं आज का पोस्ट.

हम पंछी उन्मुक्त गगन के – हिंदी कविता
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी
कनक-कटोरी की मैदा से।

स्वर्ण-शृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नीले नभ की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
नीड न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
– शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
Image Source: Pixabay
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