नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “तुम्हें बनाने में” लेकर आया हूँ और इस कविता को हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है.
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तुम्हें बनाने में | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता
मैंने देखा-
पहाड़ों पर बर्फ़ नहीं थी
ज्वालामुखियों में आग नहीं थी
न समुद्रों में नमक
मैं हैरान था-
पहाड़ों की बर्फ़ का क्या हुआ
ज्वालामुखियों की आग कहाँ गई
कहाँ ग़ायब हुआ समुद्रों का नमक
मैंने तुम्हें देखा और सोचा-
तुम्हें बनाने में कुदरत ने कितना कुछ गँवा दिया
पहली बार
मुझे कुदरत की
इस फ़िज़ूलख़र्ची पर गुस्सा नहीं आया.
Conclusion
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Pixabay: [1]
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