अग्निपथ | चल मरदाने | पथ की पहचान | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems) “अग्निपथ”, चल मरदाने” और “पथ की पहचान” लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

अग्निपथ | चल मरदाने | पथ की पहचान | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता
अग्निपथ | चल मरदाने | पथ की पहचान | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता

अग्निपथ – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.

चल मरदाने – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत.

एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत.

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत.

हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत.

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत.

जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत.
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत.

पथ की पहचान – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले.

है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले.

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले.

स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले.

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “अग्निपथ”, “चल मरदाने” और “पथ की पहचान” अच्छा लगा होगा जिसे हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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