बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता.
गुज़र जाती है सारी ज़िंदगी आहिस्ता आहिस्ता.

अज़ल से सिलसिला ऐसा है ग़ुंचे फूल बनते हैं,
चटकती है चमन की हर कली आहिस्ता आहिस्ता.

बहार-ए-ज़िंदगानी पर ख़ज़ाँ चुपचाप आती है,
हमें महसूस होती है कमी आहिस्ता आहिस्ता.

सफ़र में बिजलियाँ हैं, आंधियाँ हैं और तूफ़ाँ हैं,
गुज़र जाता है उनसे आदमी आहिस्ता आहिस्ता.

हो कितनी शिद्दते-ए-ग़म वक़्त आख़िर पोंछ देता है,
हमारे दीदा-ए-तर की नमी आहिस्ता आहिस्ता.

परेशाँ किसलिए होता है ऐ दिल बात रख अपनी
गुज़र जाती है अच्छी या बुरी आहिस्ता आहिस्ता.

तबीयत में न जाने खाम ऐसी कौन सी शै है,
कि होती है मयस्सर पुख़्तगी आहिस्ता आहिस्ता.

इरादों में बुलंदी हो तो नाकामी का ग़म अच्छा,
कि पड़ जाती है फीकी हर ख़ुशी आहिस्ता आहिस्ता.

छुपाएगी हक़ीक़त को नमूद-ए-जाहिरी कब तक,
उभरती है शफ़क से रोशनी आहिस्ता आहिस्ता.

ये दुनिया ढूँढ़ लेती है निगाहें तेज़ हैं इसकी
तू कर पैदा हुनर में आज़री आहिस्ता आहिस्ता.

तख़य्युल में बुलन्दी और ज़बाँ में सादगी ‘रहबर’
निखर आई है तेरी शायरी आहिस्ता आहिस्ता.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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