पिता की सीख | डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम | हिंदी कहानी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कहानी “पिता की सीख” लेकर आया हूँ. यह कहानी भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम के जीवन से सम्बंधित हैं

तो शुरू करते हैं आज का पोस्ट जिसका नाम है- “पिता की सीख”. अगर आपको कहानियां पढने में अच्छा लगता है तो मेरे ब्लॉग साईट पर आप पढ़ सकते हैं यहाँ आपको कई तरह की कहानियां देखने को मिलेगी. आप लिंक पर क्लिक करके वहाँ तक पहुँच सकते हैं. (यहाँ क्लिक करें)

पिता की सीख | डॉ  ए० पी० जे० अब्दुल कलाम | हिंदी कहानी
पिता की सीख | डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम | हिंदी कहानी

पिता की सीख | डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम | हिंदी कहानी

बात उन दिनों की हैं जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम रामेश्वरम के स्कूल में पढ़ते थे. उनके पिता श्रीजैनुलाबदीन रामेश्वरम्-पंचायत-मण्डलके अध्यक्ष चुने गये।

एक दिन की बात हैं अब्दुल कलाम जी शाम के समय अपने कमरे में बैठकर पढ़ रहे थे. तभी एक व्यक्ति उनके घर आया और पूछा-‘बेटा तुम्हारे पिताजी कहाँ हैं?’

उन्होंने उस सज्जन से कहा की पिताजी नमाज पढ़ने गये हुए हैं. तब उस सज्जन व्यक्ति ने एक उन्हे पैकेट देते हुए कहा की -‘जब तुम्हारे पिताजी आए तो उन्हे यह पैकेट दे देना. यह एक उपहार है जो मैं उन्हें देने के लिये आया था.’

जब उनके पिता आये तो उन्होंने चारपाई पर रखा पैकेट देखकर पुछा-‘ बेटा अब्दुल यह पैकेट कौन दे गया है?’ अब्दुल जी ने जवाब दिया, पिताजी कोई आपके लिये उपहार लेकर आया था, वह रख गया है.

पिता ने जब पैकेट खोला तो देखा उसमें मँहगी धोती, अंगवस्त्रम्, मिठाई का डिब्बा तथा ताज़े फल थे.

वे इन्हें देखकर क्रोधित हो गये तथा बेटे के मुँहपर एक थप्पर मारा और बोले-‘ बेटा यह बात जीवन भर के लिये याद कर लो कि किसी पद पर पहुँचने के बाद यदि कोई तुम्हे उपहार देता है तो उसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है.

यदि भविष्य में तुम्हें भी कोई ओहदा या पद मिले और इस प्रकार कोई लोभ और लालच देने का कोई कोशिश करे तो उसे कभी भी स्वीकार न करना।’ उस वक़्त श्री अब्दुल कलाम जी ने संकल्प लिया कि वे जीवन में अब कभी भी किसी से भी कोई भी उपहार नहीं करेंगे.

इसी घटना का असर था की श्रीअब्दुल कलामजी अपने कार्यकाल समाप्त होने पर राष्ट्रपति भवन से रवाना हुए तो वे अपने साथ केवल अपना सूटकेस तथा निजी पुस्तकें ही ले गये.

पाँच वर्ष के दौरान राष्ट्रपति के होने के नाते उन्हें जो भी हजारों कीमती उपहार, कलात्मक वस्तुएँ आदि मिली थीं। उन्होंने राष्ट्रपति भवन से विदा होने से हर पूर्व स्पष्ट घोषणा की थी कि ये सारे उपहार राष्ट्रपति होने के नाते उन्हें मिले थे. अतः ये सारे उपहार सब मेरी नहीं राष्ट्र की धरोहर हैं.

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dilshayrana.com

Conclusion:

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