नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “चिड़िया और चुरूंगुन” लेकर आया हूँ और इस कविता को हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है.
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चिड़िया और चुरूंगुन | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता
छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्ते हिलमिल,
करते हैं आपस में बात;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया’
डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झूककर जाना मूल;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया’
कच्चे-पक्के फल पहचाने,
खए और गिराए काट,
खने-गाने के सब साथी,
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया’
उस तरू से इस तरू पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया’
मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?’आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया’
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “चिड़िया और चुरूंगुन” अच्छा लगा होगा जिसे हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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Pixabay: [1]
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