नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “जब कविता नहीं थी” लेकर आया हूँ और इस कविता को हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है.
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जब कविता नहीं थी | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता
क्या पानी तब भी
ऐसे ही लय में बरसता था
बारिश की शक्ल में
क्या तब भी नदियाँ
यूँ ही बहती थीं
चट्टानों पर मचलती-थिरकतीं
क्या पत्थरों के रंध्रों में
तब भी फूट आती थी घास
अनायास
क्या तब भी फूल खिलते थे
बिना यह देखे कि
कोई उन्हें देखता है कि नहीं
क्या तब भी पेड़ों की टहनियों पर
पक्षी चहचहाते थे
उड़ जाते थे स्वच्छंद आकाश में
जब कविता नहीं थी
जब कविता नहीं थी
क्या तब भी किसी के
छू देने भर से दिल धड़कता था
होंठ काँपते थे
क्या कोई ऐसा समय था
जब कविता नहीं थी?
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “जब कविता नहीं थी” अच्छा लगा होगा जिसे हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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