कलह-कारण – चलते समय – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने एक हिंदी कविता (Hindi Poem) “कलह-कारण” और “चलते समय” लेकर आया हूँ और इन दोनों कविताओं को सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

कलह-कारण – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

कलह-कारण - चलते समय - हिंदी कविता - सुभद्रा कुमारी चौहान

कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने.
पदों को पूजने के ही लिए थी साधना मेरी.
तपस्या नेम व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने.
पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी.

उन्हें सहसा निहारा सामने, संकोच हो आया.
मुँदीं आँखें सहज ही लाज से नीचे झुकी थी मैं.
कहूँ क्या प्राणधन से यह हृदय में सोच हो आया.
वही कुछ बोल दें पहले, प्रतीक्षा में रुकी थी मैं.

अचानक ध्यान पूजा का हुआ, झट आँख जो खोली.
नहीं देखा उन्हें, बस सामने सूनी कुटी दीखी.
हृदयधन चल दिए, मैं लाज से उनसे नहीं बोली.
गया सर्वस्व, अपने आपको दूनी लुटी दीखी.

चलते समय – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

कलह-कारण - चलते समय - हिंदी कविता - सुभद्रा कुमारी चौहान

तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’?
मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो!
’जा…’ कहते रुकती है जबान
किस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!!

सेवा करना था जहाँ मुझे
कुछ भक्ति-भाव दरसाना था.
उन कृपा-कटाक्षों का बदला
बलि होकर जहाँ चुकाना था.

मैं सदा रूठती ही आई,
प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना.
वह मान बाण-सा चुभता है,
अब देख तुम्हारा यह जाना.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “कलह-कारण” और “चलते समय” अच्छा लगा होगा जिसे  सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)  जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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