नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “कांटों से घबराने वाले पग दो पग ही साथ चले” लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.
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कांटों से घबराने वाले पग दो पग ही साथ चले | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता
कांटों से घबराने वाले पग दो पग ही साथ चले
पिंजड़ों में है बन्द वे पंछी धूप से जिनके पंख जले
अपने देस के लोग हैं अपने जैसे भी हैं बुरे भले,
उन सांचों का रंग रूप हैं, जिन सांचों में ढले पले
मन का मन से मेल यही है प्रीत इसी को कहते हैं
राधा ने जब कृष्ण को देखा आंखों में सौ दीप जले
ॠषी मुनी तो बनवासी थे हम तुम नगर निवासी हैं
लेकिन अपना जीवन ये है घास उगी है पांव तले
बात बना लें लाख मगर ये उनके बस का रोग नहीं,
दलदल से वे क्या उभरेंगे डूब गये जो गले गले
और तो सब है इस बस्ती में एक फ़क़त विश्वास नहीं
छाछ फूंकते लोग यहां के दूध से उनके होंठ जले
कदम कदम पर मौत का खटका ग़ज़ल तुम्हारी कौन सुने
जुगत बता कोई ऐसी ‘रहबर’ जिससे आई बला टले
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “कांटों से घबराने वाले पग दो पग ही साथ चले” अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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