क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली | हंसराज रहबर

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली” लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

(Click Here to download in PDF format)

क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली | हंसराज रहबर
क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली | हंसराज रहबर

क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली – हंसराज रहबर (हिन्दी कविता) – (Including PDF)

क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली
खौफ़ से कांप उठी बाग में हर कली

लोग-बाग आज हैं इस कदर बदहवास
ढूंढते हैं अपना घर इस गली उस गली

ढेर की ढेर फुटपाथ पर रेंगती
जिन्दगी दोस्तो ! लाश है अधजली

जुस्तजू जिस की थी ग़ैर वो ले गये
तुम उठा लाये हो सांप की केंचली

अर्श से फ़र्श तक यकबयक कौंधती
आग-सी इक सदा “दिल जली दिल जली”

कुछ अजब-सी बला जान पर आ बनी
शहर में गांव में मच गई खलबली

ये किस रहनुमा का करिश्मा है ‘रहबर’
देश भर का चलन बन गई धांधली

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “क्या चली क्या चली ये हवा क्या चली” अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

Image Source

Pixabay[1]

इसे भी पढ़ें

Leave a Reply