मेरा नया बचपन | बालिका का परिचय | इसका रोना |सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता | Hindi Poem

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems) “मेरा नया बचपन”, बालिका का परिचय” और “इसका रोना” लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

मेरा नया बचपन | बालिका का परिचय | इसका रोना |सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता | Hindi Poem

मेरा नया बचपन – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी.
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी.

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद.
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी.

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया.
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया.

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे.
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे.

मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया.
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया.

दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे.
धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे.

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई.
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई.

लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमँग रँगीली थी.
तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी.

दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी.
मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी.

मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने.
अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने.

सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी हैं.
प्यारी, प्रीतम की रँग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं.

माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है.
आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहनेवाला है.

किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना.
चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना.

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति.
व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति.

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप.
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?

मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी.
नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी.

‘माँ ओ’ कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आई थी.
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लाई थी.

पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा.
मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा.

मैंने पूछा ‘यह क्या लाई?’ बोल उठी वह ‘माँ, काओ’.
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा – ‘तुम्हीं खाओ’.

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया.
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया.

मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ.
मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ.

जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया.
भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया.

बालिका का परिचय – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली
शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली

दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली
उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली

सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की
जीवित ज्योति नष्ट नयनों की, सच्ची लगन मनस्वी की

बीते हुए बालपन की यह, क्रीड़ापूर्ण वाटिका है
वही मचलना, वही किलकना, हँसती हुई नाटिका है

मेरा मंदिर,मेरी मसजिद, काबा काशी यह मेरी
पूजा पाठ, ध्यान, जप, तप, है घट-घट वासी यह मेरी

कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को अपने आंगन में देखो
कौशल्या के मातृ-मोद को, अपने ही मन में देखो

प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास
जीव-दया जिनवर गौतम की,आओ देखो इसके पास

परिचय पूछ रहे हो मुझसे, कैसे परिचय दूँ इसका
वही जान सकता है इसको, माता का दिल है जिसका

इसका रोना – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

तुम कहते हो – मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है.
मैं कहती हूँ – इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है.
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे.
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे.

ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो.
यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो.
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है.
छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है.

हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है.
पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है.
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है.
छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है.

मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा! बुलाता है.
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है.
मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में.
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में.

मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ.
वह मेरी प्यारी बिटिया है मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ.
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान.
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “मेरा नया बचपन”, बालिका का परिचय” और “इसका रोना” अच्छा लगा होगा जिसे  सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

Image Source

Pixabay[1]

इसे भी पढ़ें

Leave a Reply