नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “नारी-रूप” लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.
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नारी-रूप – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता
घने लहरे रेशम के बाल
धरा है सिर में मैंने, देवि !
तुम्हारा यह स्वर्गिक श्रृंगार,
स्वर्ण का सुरभित भार.
मलिन्दों से उलझी गुंजार,
मृणालों से मृदु तार;
मेघ से संध्या का संसार
वारि से ऊर्मि उभार;
-मिले हैं इन्हें विविध उपहार,
तरुण तम से विस्तार:
स्नेहमयि ! सुंदरतामयि !
तुम्हारे रोम रोम से, नारि !
मूझे है स्नेह अपार;
तुम्हारा मृदु उर ही, सुकुमारि !
मूझे है स्वर्गागार !
तुम्हारे गुण हैं मेरे गान,
मृदुल दुर्बलता, ध्यान;
तुम्हारी पावनता, अभिमान,
शक्ति, पूजन सम्मान;
अकेली सुन्दरता कल्याणि !
सकल ऐश्वर्यों की संधान !
स्वप्नमयि । हे मायामयि !
तुम्हीं हो स्पृहा, अश्रु औ’ हास,
सृष्टि के उर की सांस;
तुम्हीं इच्छाओं की अवसान,
तुम्हीं स्वर्गिक आभास;
तुम्हारी सेवा में अनजान
हृदय है मेरा अंतर्धान ?
देवि ! मा ! सहचरि ! प्राण !
Conclusion
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Pixabay: [1]
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