पारितोषिक का मूल्य | चिंता | प्रियतम से | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता | Hindi Poem

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems) “पारितोषिक का मूल्य”, चिंता” और “प्रियतम से” लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

पारितोषिक का मूल्य | चिंता | प्रियतम से | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता | Hindi Poem

पारितोषिक का मूल्य – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

मधुर-मधुर मीठे शब्दों में
मैंने गाना गाया एक.
वे प्रसन्न हो उठे खुशी से
शाबाशी दी मुझे अनेक.

निश्चल मन से मैंने उनकी
की सभक्ति सादर सेवा.
पाया मैंने कृतज्ञता
का उसी समय मीठा मेवा.

नवविकसित सुरभित कलियाँ ले,
मैंने रुचि से किया सिंगार.
मेरी सुन्दरता की प्रिय ने
ली तुरन्त तस्वीर उतार.

हुई प्रेम-विह्वल मैं उनके
चरणों पर बलिहार गयी.
बदले में प्रिय का चुम्बन पा
जीत गयी या हार गयी.

उस शाबाशी से, कृतज्ञता से,
तस्वीर खिंचाने से.
हुई खुशी से मैं पागल-सी
प्रिय का चुम्बन पाने से.

घटने लगा किन्तु धीरे-
धीरे यह पागलपन मेरा.
एक नशा था, उतर गया, हो
गया दुखी-सा मन मेरा.

गाना एक और गाया, अब
केवल मन बहलाने को.
सेवा-भाव लिये निकली मैं
अब जन-कष्ट मिटाने को.

सुन्दर खिले हुए फूलों से
किया आज भी साज-सिंगार
अखिल विश्व के लिए समेटे
अपने नन्हें उर में प्यार.

मैं प्रसन्न थी, पर प्रसन्नता
मेरी आज निराली थी.
मैं न आज मैं थी यह कोई
विश्व-प्रेम-मतवाली थी.

सेवा और श्रृंगार प्रेम से
भरा हुआ मेरा गाना.
छिप कर सुना किसी ने
जिसका जान न पायी मैं आना.

सुनने वाला बोला, पर क्या
शब्द सुनाई देते थे.
करते हुए प्रशंसा, विकसित
नेत्र दिखायी देते थे.

‘पहिले में यह बात न थी,
यह है बेजोड़ निराला गीत.’
मेरी प्रसन्नता ने प्रतिध्वनि
किया कि प्यारे वह संगीत-

शाबाशी के पुरस्कार का
कोरा मूल्य चुकाती थी,
वही कमी उस पुरस्कार
की कीमत को दरशाती थी.

चिंता – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

लगे आने, हृदय धन से
कहा मैंने कि मत आओ.
कहीं हो प्रेम में पागल
न पथ में ही मचल जाओ.

कठिन है मार्ग, मुझको
मंजिलें वे पार करनीं हैं.
उमंगों की तरंगें बढ़ पड़ें
शायद फिसल जाओ.

तुम्हें कुछ चोट आ जाए
कहीं लाचार लौटूँ मैं.
हठीले प्यार से व्रत-भंग
की घड़ियाँ निकट लाओ.

प्रियतम से – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

बहुत दिनों तक हुई परीक्षा
अब रूखा व्यवहार न हो.
अजी, बोल तो लिया करो तुम
चाहे मुझ पर प्यार न हो.

जरा जरा सी बातों पर
मत रूठो मेरे अभिमानी.
लो प्रसन्न हो जाओ
गलती मैंने अपनी सब मानी.

मैं भूलों की भरी पिटारी
और दया के तुम आगार.
सदा दिखाई दो तुम हँसते
चाहे मुझ से करो न प्यार.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “पारितोषिक का मूल्य”, चिंता” और “प्रियतम से” अच्छा लगा होगा जिसे  सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

Image Source

Pixabay[1]

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