नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “परवरिश” लेकर आया हूँ और इस कविता को हरभगवान चावला (Harbhagwan Chawla) जी ने लिखा है.
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परवरिश | हरभगवान चावला | हिन्दी कविता
मैंने अपनी कविता को हमेशा
धूप, धूल और धुएँ से बचाया
कभी उसके सामने नहीं आने दिए
भूखे, नंगे, बदबू उगलते लोग
किसी मलिन बस्ती का साया भी
उस पर नहीं पड़ने दिया
कि कहीं सिद्धार्थ की तरह
विरक्त न हो जाए मेरी कविता
मेरी कविता ने नहीं धरे
किसी कँटीली पगडंडी पर पाँव
चाँदनी-सी गोरी, उजली कविता
उजले रेशमी वस्त्र पहन
बग्घी में बैठ भ्रमण करती रही
राजमार्गों और मनोहारी उद्यानों का
मैंने उसे राजकुमारी की तरह पाला
पर इतने लाड़-प्यार और ऐश्वर्य के होते भी
निरंतर पीली पड़ती जा रही है
मेरी राजकुमारी
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ
कहाँ कमी रही उसकी परवरिश में.
Conclusion
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