स्मृतियाँ | जाने दे | शिशिर-समीर | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems) “स्मृतियाँ”, “जाने दे” और “शिशिर-समीर” लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) जी ने लिखा है. आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

स्मृतियाँ | जाने दे | शिशिर-समीर | सुभद्रा कुमारी चौहान | हिंदी कविता

स्मृतियाँ – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

क्या कहते हो? किसी तरह भी
भूलूँ और भुलाने दूँ?
गत जीवन को तरल मेघ-सा
स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?

शान्ति और सुख से ये
जीवन के दिन शेष बिताने दूँ?
कोई निश्चित मार्ग बनाकर
चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?

कैसा निश्चित मार्ग? ह्रदय-धन
समझ नहीं पाती हूँ मैं
वही समझने एक बार फिर
क्षमा करो आती हूँ मैं.

जहाँ तुम्हारे चरण, वहीँ पर
पद-रज बनी पड़ी हूँ मैं
मेरा निश्चित मार्ग यही है
ध्रुव-सी अटल अड़ी हूँ मैं.

भूलो तो सर्वस्व! भला वे
दर्शन की प्यासी घड़ियाँ
भूलो मधुर मिलन को, भूलो
बातों की उलझी लड़ियाँ.

भूलो प्रीति प्रतिज्ञाओं को
आशाओं विश्वासों को
भूलो अगर भूल सकते हो
आंसू और उसासों को.

मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन
सुख या शांति नहीं होगी
यही बात तुम भी कहते थे
सोचो, भ्रान्ति नहीं होगी.

सुख को मधुर बनाने वाले
दुःख को भूल नहीं सकते
सुख में कसक उठूँगी मैं प्रिय
मुझको भूल नहीं सकते.

मुझको कैसे भूल सकोगे
जीवन-पथ-दर्शक मैं थी
प्राणों की थी प्राण ह्रदय की
सोचो तो, हर्षक मैं थी.

मैं थी उज्ज्वल स्फूर्ति, पूर्ति
थी प्यारी अभिलाषाओं की
मैं ही तो थी मूर्ति तुम्हारी
बड़ी-बड़ी आशाओं की.

आओ चलो, कहाँ जाओगे
मुझे अकेली छोड़, सखे!
बंधे हुए हो ह्रदय-पाश में
नहीं सकोगे तोड़, सखे!

जाने दे – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

कठिन प्रयत्नों से सामग्री
एकत्रित कर लाई थी.
बड़ी उमंगों से मन्दिर में,
पूजा करने आई थी.

पास पहुंकर देखा तो,
मन्दिर का का द्वार खुला पाया.
हुई तपस्या सफल देव के
दर्शन का अवसर आया.

हर्ष और उत्साह बढ़ा, कुछ
लज्जा, कुछ संकोच हुआ.
उत्सुकता, व्याकुलता कुछ-कुछ
कुछ सभ्रम, कुछ सोच हुआ.

किंतु लाज, संकोच त्यागकर
चरणों पर बलि जाऊंगी.
चिर संचित सर्वस्व पदों पर
सादर आज चढ़ाऊँगी.

कह दूंगी अपने अंतर की
कुछ भी नहीं छिपाऊँगी.
जैसी जो कूछ हूं उनकी ही
हूं, उनकी कहलाऊँगी.

पूरी जान साधना अपनी
मन को परमानन्द हुआ.
किंतु बढ़ी आगे, देखा तो
मन्दिर का पट बन्द हुआ.

निठुर पुजारी! यह क्या मुझ पर
तुझे न तनिक दया आई?
किया द्वार को बन्द और
मैं प्रभु को नहीं देख पाई?

करके कृपा पुजारी, मुझको
जरा वहां तक जाने दे.
प्रियतम के थोड़ी-सी पूजा
चरणों तक पहुँचाने दे.

जी भर उन्हे देख लेने दे,
जीवन सफल बनाने दे.
खोल, खोल दे द्वार पुजारी!
मन की व्यथा मिटाने दे.

बहुत बड़ी आशा से आई हूं,
मत कर तू मुझे निराश.
एक बार, बस एक बार, तू
जाने दे प्रियतम के पास.

शिशिर-समीर – हिंदी कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान

शिशिर-समीरण, किस धुन में हो,
कहो किधर से आती हो?
धीरे-धीरे क्या कहती हो?
या यों ही कुछ गाती हो?

क्यों खुश हो ? क्या धन पाया है?
क्यों इतना इठलाती हो?
शिशिर-समीरण! सच बतला दो,
किसे ढूँढने जाती हो?

मेरी भी क्या बात सुनोगी,
कह दूँ अपना हाल सखी?
किन्तु प्रार्थना है, न पूछना,
आगे और सवाल सखी.

फिरती हुई पहुँच तुम जाओ,
अगर कभी उस देश सखी!
मेरे निठुर श्याम को मेरा
दे देना सन्देश सखी!

मिल जावें यदि तुम्हें अकेले,
हो ऐसा संयोग सखी!
किन्तु देखना वहाँ न होवें
और दूसरे लोग सखी!!

खूब उन्हें समझा कर कहना
मेरे दिल की बात सखी.
विरह-विकल चातकी मर रही
जल-जल कर दिन रात सखी!!

मेरी इस कारुण्य दशा का
पूरा चित्र बना देना.
स्वयं आँख से देख रही हो
यह उनको बतला देना!!

दरस-लालसा जिला रही है,
कह देना, समझा देना.
नासमझी यदि कहीं हुई हो
तो उसको सुलझा देना.

कहना किसी तरह वे सोचें
मिलने की तदबीर सखी.
सही नहीं जाती अब मुझसे
यह वियोग की पीर सखी.

चूर-चूर हो गया ह्रदय यह
सह-सह कर आघात सखी!
शिशिर-समीरण भूल न जाना.
कह देना सब बात सखी.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता  “स्मृतियाँ”, “जाने दे” और “शिशिर-समीर”  अच्छा लगा होगा जिसे  सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)  जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay[1]

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