स्वरों का समर्पण | श्रीकांत वर्मा | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “स्वरों का समर्पण” लेकर आया हूँ और इस कविता को श्रीकांत वर्मा  (18 सितम्बर 1931- 25 मई 1986) जी ने लिखा है. आपका जन्म बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हुआ.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता “स्वरों का समर्पण” पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

स्वरों का समर्पण | श्रीकांत वर्मा | हिंदी कविता

स्वरों का समर्पण | श्रीकांत वर्मा | हिंदी कविता


डबडब अंधेरे में, समय की नदी में
अपने-अपने दिय सिरा दो;

शायद कोई दिया क्षितिज तक जा,
सूरज बन जाए!!

हरसिंगार जैसे यदि चुए कहीं तारे, 
अगर कहीं शीश झुका
बैठे हों मेड़ों पर
पंथी पथहारे,


अगर किसी घाटी भटकी हों छायाएं,
अगर किसी मस्तक पर
जर्जर हों जीवन की
त्रिपथगा ऋचाएं:

पीड़ा की यात्रा के ओ पूरब-यात्री!
अपनी यह नन्ही-सी आस्था तिरा दो
शायद यह आस्था किसी प्रिय को
तट तक ले जाए!!

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता स्वरों का समर्पण  अच्छा लगा होगा जिसे श्रीकांत वर्मा जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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