तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर” लेकर आया हूँ और इस कविता को हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता
तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर | हंसराज रहबर | हिन्दी कविता

तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर
खुदा को ढूंढता फिरता है खुद से बेखबर होकर

अनलहक कह दिया जिसने खुदी से बाखबर होकर
सज़ा मंसूर की मंज़ूर करता है निडर होकर

अंधेरों में उजालों की हमें है जुस्तजू पैहम
गुज़ारी रात आंखों में सहर के मुंतज़र होकर

यहां सब धान इक भाओ चलन इक चापलूसी का
हिदायत है नज़र वालो रहो तुम बेनज़र होकर

वह इंसां भी क्या इंसां वज़न क्या बात में उसकी
गुज़ारी ज़िन्दगी जिसने ग़ुबारे-रह-गुज़र होकर

न जाओ इनकी बातों पे बड़े पुरकार हैं ये लोग
उगाते हाथ पे सरसों हवा के हमसफ़र होकर

छिपाकर सात परदों में जिसे तुम राज़ कहते हो
वो किस्सा अब ज़माने की ज़बां पर है खबर होकर

सुनो यारो हमारी बेगुनाही हो गई साबित
रहे बदनाम होकर जा रहे हैं नामवर होकर

ग़ज़ल तेरी तेरा मूंहबोलता किरदार है ‘रहबर’
उतर जाता है हर इक शेर दिल में नेश्तर होकर

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता तअज्जुब है कि मकड़ी की तरह उलझा बशर होकर अच्छा लगा होगा जिसे हंसराज रहबर (Hansraj Rahbar) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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