तुम तूफान समझ पाओगे | ऐसे मैं मन बहलाता हूँ | आत्‍मपरिचय | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने तीन हिंदी कवितायें (Hindi Poems)तुम तूफान समझ पाओगे”, “ऐसे मैं मन बहलाता हूँऔर आत्‍मपरिचय लेकर आया हूँ और इन तीनो कविताओं को हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. 

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

तुम तूफान समझ पाओगे | ऐसे मैं मन बहलाता हूँ | आत्‍मपरिचय | हरिवंशराय बच्चन | हिंदी कविता

तुम तूफान समझ पाओगे – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता ‘हरहर’–इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?

तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे ?

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आत्‍मपरिचय – हरिवंशराय बच्चन – हिंदी कविता

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;
जग भाव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,
उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कवितातुम तूफान समझ पाओगे”, “ऐसे मैं मन बहलाता हूँऔर आत्‍मपरिचयअच्छा लगा होगा जिसे हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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