विसर्जन | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) विसर्जन लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.

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विसर्जन | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता
विसर्जन | सुमित्रानंदन पंत | हिन्दी कविता

विसर्जन – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता

अनुपम ! इस सुंदर छवि से
मैं आज सजा लूँ निज मन,
अपलक अपार चितवन पर
अर्पण कर दूं निज यौवन !

इस मंद हास में बह कर
गा लूँ मैं बेसुर-‘प्रियतम’,
बस इस पागलपन में ही
अवसित कर हूँ निज जीवन.

नव कुसुमों में छिप छिप कर
जब तुम मधु पान करोगे,
फूली न समाऊँगी मैं
उस सुख से है जीवन धन !

यदि निज उर के कांटों को
तुम मुझे न पहनाऔगे,
उस विरह वेदना से मैं
नित तड़पूँगी कोमल तन !

अवलोक अल्पता मेरी
उपहार न चाहे दो तुम,
पर कुपित न होना मुझ पर
दो चाहे हार दया धन !

तुम मुझे भूना दो मन से
मैं इसे भूल जाऊंगी,
पर वंचित मुझे न रखना
अपनी सेवा से पावन !

मैं सखियों से कह आऊँ-
प्रस्तुत है पद की दासी;
वे चाहें मुझ पर हँस लें
मैं खडी रहूँगी सनयन ।

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता विसर्जन अच्छा लगा होगा जिसे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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Pixabay: [1]

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