नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “विश्व-वेणु” लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.
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विश्व-वेणु – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता
हाँ, -हम मारुत के मृदुल झकोर,
नील व्योम के अंचल छोर;
बाल कल्पना-से अनजान
फिरते रहते हैं निशि भोर;
उर उर के प्रिय, जग के प्राण !
हरियाली से ढंक मृदु गात,
कानों में भर सौ सौ बात;
हमें झुलाते हैं अविराम
विश्व पुलक-से तरु के पात,
कुसुमित पलनों में अभिराम !
चारु नभचरों-से वय हीन,
अपनी ही मृदु छवि में लीन,
कर सहसा शीतल भ्रु पात,
चंचलपन ही में आसीन,
हम पुलकित कर देते गात !
गुंजित कुंजों में सुकुमार,
(भौरों के सुरभित अभिसार)
आ, जा, खोल, फेर, स्वच्छंद
पत्रों के बहु छिद्रित द्वार,
हम क्रीड़ा करते सानंद !
चूम मौन कलियों का मान,
खिला मलिन मुख में मुसकान,
गूढ़ स्नेह का सा नि:श्वास
पा कुसुमों से सौरभ दान,
छा जाते हम अवनि अकास !
चंचल कर सरसी के प्राण,
सौ सौ स्वप्नों सी छबिमान,
लहरों में खिल सानुप्रास,
गा वारिधि छंदों में गान,
करते हम ज्योत्सना का लास !
प्रैट्स वेणु वन में आलाप,
जगा रेणु के लोड़ित सांप;
भय से पीले तरु के पात
भगा बावलों-से वे – आप,
करते नित नाना उत्पात !
अस्थि हीन जलदों के बाल,
खींच मींच औ’ फेंक, उछाल,
रचते विविध मनोहर रूप
मार जिला उनको तत्काल,
फैला माया जाल अनूप !
निज अविरल गति में उड्डीन,
उच्छृंखलता में स्वाधीन;
वातायन से आ द्रुत भोर
लेते मृदु पलकों को छीन
हम सुखमय स्वप्नों के चोर !
चुन कलियों की कोमल सांस
किसलय अधरों का हिम हास;
चिर अतीत स्मृति सी अनजान
ला सुमनों की मृदुल सुवास
पिघला देते तन, मन, प्राण.
हर सुदूर से अस्फुट तान,
आकुल कर पथिकों के कान,
विश्व वेणु के – से झंकार
हम जग के सुख – दुखमय गान
पहुँचाते अनंत के द्वार !
हम नभ की निस्सीम हिलोर
डुबा दिशाओं के दस छोर
नव जीवन कंपन संचार
करते जग में चारों ओर,
अमर, अगोचर, औ’ अविकार !
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “विश्व-वेणु” अच्छा लगा होगा जिसे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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विश्व-वेणु – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता
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