नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “विश्व व्याप्ति” लेकर आया हूँ और इस कविता को सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) जी ने लिखा है.
आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).
विश्व व्याप्ति – सुमित्रानंदन पंत – हिन्दी कविता
स्पृहा के विश्व, हृदय के हास !
कल्पना के सुख, स्नेह विकास !
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल ?
अनिल में ? बनकर ऊर्मिल गान,
स्वर्ण किरणों में कर मुसकान,
झूलते हो झोंकों की झूल;
फूल । तुम कहाँ रहे अब फूल ?
अवनि में ? बन अशोक का फूल,
विलम अलि ध्वनि में, लिपटा धूल,
गए क्या मेरी गोदी भूल ?
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल ?
सलिल में ? उछल-उछल, हिल-हिल,
लहरियों में सलील खिल-खिल,
थिरकते, गह-गह अनिल दुकूल?
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल ?
अनल में ? ज्वाला बन पावन,
दग्ध कर मोह मलिन बंधन,
जला सुधि मेरी चुके समूल?
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल?
गगन में ? बन शशि कला शकल,
देख नलिनी-सी मुझे विकल,
बहाते ओस अश्रु या स्थूल ?
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल?
स्वप्न थे तुम, मैं थी निद्रित,
सुकृत थे तुम, मैं हूँ कलुषित,
पा चुके तुम भव सागर कूल,
फूल, तुम कहाँ रहे अब फूल ?
Conclusion
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