नमस्कार दोस्तों! आज कि ये हिंदी कविता “कन्यादान ” है. इस कविता के कवि ऋतुराज जी हैं जिनका जनम राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ. इनकी अन्य कविता रचना हैं –‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल और पानी’, ‘सुरत और निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि. इस कविता मे एक मां की वेदना प्रकट होती हैं और वह अपनी बेटी को सीख भी दे रही हैं और कदम कदम पर उस का शोषण और अधिकारों का दमन होगा उसके लिये उसे सचेत भी कर रही हैं .
तो शुरू करते हैं आज का ये एक छोटी सी हिन्दी कविता. अगर आपको हिंदी कविता पढने में अच्छा लगता है तो मेरे ब्लॉग साईट पर आप पढ़ सकते हैं यहाँ आपको कई तरह की कविताये देखने को मिलेगी. आप लिंक पर क्लिक करके वहाँ तक पहुँच सकते हैं. (यहाँ क्लिक करें)
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कन्यादान- हिन्दी कविता
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक़्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
की उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बांचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
मां ने कहा पानी में झांककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिये हैं
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
मां ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिन्दी कविता कन्यादान पढकर अच्छा लगा होगा जिसे कवि ऋतुराज जी ने लिखा है. अगर आपको जरा सा भी अच्छा लगा तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
Image Source: Pixabay
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रितेश कुमार सिंहा जी को हिंदी की किताबें पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता है और कुछ-कुछ कहानी खुद से भी लिखते हैं जो वो हमारे साथ इस ब्लॉग पर शेयर करते रहते हैं. ये हमारे साथ शुरुआत से जुड़े हुए हैं. और ये हमलोगों के सामने कई तरह से कहानी और अलग प्रकार के टॉपिक पर लिखते हैं. इन्होने कंप्यूटर एप्लीकेशन से ग्रेजुएशन किया हुआ है तो ये टेक्निकल ब्लॉग भी शेयर करते हैं.