साधु का बोध (हिंदी कहानी)

नमस्कार दोस्तों आज मैं आपके सामने एक हिंदी कहानी फिर से लेकर आगया हूँ जिसका नाम है: साधु का बोध. आशा करता हूँ कि आप लोगों को यह कहानी बहुत पसंद आयेगी. इसी तरह के और भी हिंदी कहानियां पढने के लिए यहाँ क्लिक करें. (Click Here)

साधु का बोध (हिंदी कहानी)
साधु का बोध (हिंदी कहानी)

साधु का बोध (हिंदी कहानी)

किसी नगर में एक सेठ रहता था. उसके पास लाखों की संपत्ति थी, बहुत बड़ी हवेली थी, नौकर-चाकर थे. फिर भी सेठ को शांति नहीं थी. 

एक दिन किसी ने उसे बताया कि अमुक नगर में एक साधु रहता है. वह लोगों को | ऐसी सिद्धि प्राप्त करा देता है कि उससे मनचाही चीज मिल जाती है.

सेठ उस साधु के पास गया और उसे प्रणाम करके कोई निवेदन किया-‘महाराज, मेरे पास पैसे की कमी नहीं है, पर फिर भी मेरा मन बहुत अशांत रहता है. आप कुछ ऐसा उपाय बता दीजिए कि मेरी अशांति दूर हो जाए.’

सेठ ने सोचा कि साधु बाबा उसे कोई ताबीज दे देंगे, या और कुछ कर देंगे जिससे उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी, लेकिन साधु ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. 

अगले दिन उसने सेठ को धूप में बिठाए रखा और स्वयं अपनी कुटिया के अंदर छाया में जाकर चैन से बैठा रह गया.

गर्मी के दिन थे. सेठ का बुरा हाल हो गया. उसको बहुत गुस्सा आया, पर वह उसे चुपचाप पी गया.

दूसरे दिन साधु ने कहा-‘आज तुम्हें दिन-भर खाना नहीं मिलेगा.’

भूख के मारे दिन-भर सेठ के पेट में चूहे कूदते रहे, अन्न का एक दाना भी उसके मुंह में नहीं गया, लेकिन उसने देखा कि साधु ने तरह-तरह के पकवान उसी के सामने. बैठकर बड़े आनंद से खाए.

सेठ सारी रात परेशान रहा. उसे एक क्षण को भी नींद नहीं आई. वह सोचती रह कि साधु तो बड़ा स्वार्थी है.

तीसरे दिन सवेरे ही उठकर उसने अपना बिस्तर बांधा और चलने को तैयार हो गया. तभी साधु बाबा उसके सामने आकर खड़े हो गए और बोले- सेठ क्या हुआ ?’ 

सेठ ने कहा- ‘मैं यह बड़ी आशा लेकर आपके पास आया था, लेकिन मुझे यहां कुछ नहीं मिला उल्टे ऐसी मुसीबतें उठानी पड़ी, जो मैंने जीवन में कभी नहीं उठाई. मैं जा रहा हूं.’

साधु हंसकर बोले- “मैंने तुझे इतना कुछ दिया, पर तूने कुछ भी नहीं लिया.’

सेठ ने विस्मय भाव से साधु की ओर देखा और बोला-‘आपने तो मुझे कुछ भी नहीं दिया.’

साधु ने कहा-‘सेठ पहले दिन जब मैंने तुझे धूप में बिठाया और स्वयं छाया में बैठा – रहा तो इसके जरिए मैंने तुझे बताया कि मेरी छाया तेरे काम नहीं आ सकती. जब मेरी बात तेरी समझ में नहीं आई तो दूसरे दिन मैंने तुझे भूखा रखा और स्वयं खूब अच्छी तरह खाना खाया. उससे मैंने तुझे समझाया कि मेरे खा लेने से तेरा पेट नहीं भर सकता. सेठ, याद रख मेरी साधना से तुझे सिद्धि नहीं मिलेगी. धन तूने खुद अपने पुरुषार्थ से कमाया है और शांति भी तुझे अपने ही पुरुषार्थ से मिलेगी.’ 

सेठ की आंखें खुल गई और उसे अपनी मंजिल पर पहुचने का रास्ता मिल गया. साधु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हुआ वह घर लौट आया.

Conclusion

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