नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “बस कि दुशवार है हर काम का आसां होना” लेकर आया हूँ और इस कविता को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
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बस कि दुशवार है हर काम का आसां होना – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी
बस कि दुशवार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इनसां होना
गिरीया चाहे है खराबी मिरे काशाने की
दरो-दीवार से टपके है बयाबां होना
वाए दीवानगी-ए-शौक कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
जलवा अज़-बसकि तकाज़ा-ए-निगह करता है
जौहरे-आईना भी चाहे है मिज़गां होना
इशरते-कतलगहे-अहले-तमन्ना मत पूछ
ईदे-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरीयां होना
ले गए ख़ाक में हम, दाग़े-तमन्ना-ए-निशात
तू हो और आप बसद रंग गुलिसतां होना
इशरते-पारा-ए-दिल, ज़ख़्म-तमन्ना खाना
लज़्ज़ते-रेशे-जिगर, ग़रके-नमकदां होना
की मिरे कतल के बाद, उसने जफ़ा से तौबा
हाय, उस जूद पशेमां का पशेमां होना
हैफ़, उस चार गिरह कपड़े की किस्मत ‘ग़ालिब’
जिसकी किस्मत में हो, आशिक का गिरेबां होना
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी “बस कि दुशवार है हर काम का आसां होना” अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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मुझे नयी-नयी चीजें करने का बहुत शौक है और कहानी पढने का भी। इसलिए मैं इस Blog पर हिंदी स्टोरी (Hindi Story), इतिहास (History) और भी कई चीजों के बारे में बताता रहता हूँ।